Delhi Election 2025: ‘मैं दिल्ली हूं’ के आठवें पार्ट में बात विधानसभा चुनाव 2020 की जिसमें आम आदमी पार्टी का जादू एक बार फिर चल गया था। एक ऐसा चुनाव जिसमें अरविंद केजरीवाल को शीला दीक्षित की बराबरी करने का मौका मिल गया, एक ऐसा चुनाव जिसमें आम आदमी पार्टी को अप्रत्याशित जनादेश मिला, एक ऐसा चुनाव जिसमें दिल्ली से बीजेपी को एक बार फिर दूर किया और एक ऐसा भी चुनाव जिसमें कांग्रेस को पूरी तरह राजधानी से आउट कर दिया।
CAA विरोध और सांप्रदायिक चुनाव
बात जब भी 2020 विधानसभा चुनाव की आती है, दिल्ली दंगे सबसे पहले याद किए जाते हैं। असल में जिस समय दिल्ली में विधानसभा चुनाव चल रहा था, शाहीन बाग में CAA खिलाफ कई महीनों से एक विरोध प्रदर्शन भी जारी था। एक ऐसा विरोध प्रदर्शन था जिसने सांप्रदायिक रूप ले लिया था। केंद्र की मोदी सरकार उस समय एक बड़े संकट से जूझ रही थी तो वहीं दूसरी तरफ दिल्ली में इसी मुद्दे को बीजेपी की लोकल लीडरशिप केजरीवाल को घेरने के लिए इस्तेमाल करने में लगी।
बीजेपी का प्रचार जो केजरीवाल को दिया फायदा
अब बीजेपी तो लगातार अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी कहकर संबोधित करती रही, कई मौके पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप भी लगा दिए लेकिन दिल्ली की जनता ने उन सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। जानकार तो अब यहां तक मानते हैं कि बीजेपी का यह सब एक नेगेटिव प्रचार था और उसका सीधा फायदा आम आदमी पार्टी को पहुंचा। ऐसा भी कहा गया कि केजरीवाल पर निजी हमले करने की वजह से जनता और मजबूती के साथ आप संयोजक के साथ जुड़ गई।
राष्ट्रीय बनाम स्थानीय मुद्दे का खेल
दिल्ली का जब 2020 वाला चुनाव शुरू हुआ था, बीजेपी ने पूरी ताकत उसमें झोंक दी थी। सभी बड़े मंत्री से लेकर कई राज्यों के मुख्यमंत्री तक चुनावी मैदान में उतर चुके थे। 2015 के विधानसभा चुनाव में जो गलतियां हुईं थी, उन्हें फिर दोहराने की गलती नहीं करनी थी। इसी वजह से पूर्वांचल वोटरों का दिल जीतने से लेकर जिन सीटों पर कम मार्जिन से हार हुई थी, सभी पर बीजेपी का स्पष्ट फोकस दिखाई दिया। इसके ऊपर राष्ट्रीय मुद्दों के जरिए दिल्ली का चुनाव बनाने का प्रयास हुआ। लेकिन देखा गया कि यह भी बीजेपी की एक बड़ी चूक रही क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने एक ऐसी रणनीति पर काम किया जिसके तहत लगातार वे स्थानीय मुद्दों का जिक्र करते रहे।
केजरीवाल की अचूक रणनीति
उन्होंने बार-बार अपने केजरीवाल मॉडल की बात की, उन्होंने दिल्ली की जनता को मोहल्ला क्लीनिक की याद दिलाई, उन्होंने फ्री बिजली वाला सपना दिखाया, उनकी तरफ से महिलाओं को फ्री बस यात्रा की बात भी हुई। अब क्योंकि कई योजनाओं का फायदा जमीन पर होता हुआ दिख रहा था, ऐसे में महिलाओं का वोट एकमुश्त तरीके से आम आदमी पार्टी के समर्थन में खड़ा हुआ। इसके ऊपर मिडिल क्लास से लेकर पूर्वांचल वोटर भी आम आदमी पार्टी के खाते में गए, दिल्ली की जितनी भी मुस्लिम बाहुल सीटें थीं, वहां भी आम आदमी पार्टी ने जीत का परचम लहराया।
कांग्रेस पूरी तरह साफ, ना चेहरा, ना रणनीति
एक तरफ मुकाबला 2020 में आम आदमी पार्टी बनाम बीजेपी का दिखाई दिया, लेकिन यह चुनाव कांग्रेस के लिए भी अस्तित्व की लड़ाई था। जिस कांग्रेस ने पूरे 15 सालों तक दिल्ली पर राज किया था, 2015 में एक शून्य ने उसकी हालत खस्ता कर दी। इसी वजह से 2020 आते-आते पार्टी को फिर उठने की जरूरत थी, लोकल लीडरशिप ने अपनी तरफ से प्रयास किया, बड़े नेताओं ने आकर जमीन पर प्रचार भी किया, लेकिन एक अच्छे चेहरे की कमी ने पार्टी को वापस मजबूत होने का मौका नहीं दिया। दिल्ली में एक बार फिर कांग्रेस को शून्य ही मिला। माना गया कांग्रेस का जितना भी वोट था, वह आम आदमी पार्टी की तरफ चला गया।
फ्री योजनाओं का बज गया डंका
दिल्ली के उस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर 62 सीटें हासिल की। बीजेपी को सिर्फ आठ से संतुष्ट करना पड़ा और कांग्रेस का तो खाता तक नहीं खुला। यह चुनाव बताने के लिए काफी रहा कि दिल्ली में स्थानीय मुद्दों का जोर था। अरविंद केजरीवाल का चेहरा था और फ्री वाली योजनाओं का असर साफ तौर पर दिखाई दे रहा था। दूसरी तरफ बीजेपी की जितने भी सांप्रदायिक मुद्दे रहे, बात चाहे फिर CAA आंदोलन की हो या फिर मुस्लिम तुष्टिकरण की या फिर अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी जैसा तमगा देने की, वो सभी पूरी तरह फेल हो गए और पार्टी दिल्ली की सत्ता से कोसो दूर रह गई।
शीला के महा रिकॉर्ड की केजरीवाल ने की बराबरी
बीजेपी को चुनाव में लक्ष्मी नगर, विश्वास नगर, रोहतास नगर, गांधीनगर, गोंडा, करावल नगर, रोहिणी, बदरपुर सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस का प्रदर्शन तो इतना खराब रहा कि उसने 66 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार रखे थे, लेकिन वहां 63 पर जमानत तक जब्त हो गई। उस चुनाव में कुल 672 उम्मीदवार खड़े हुए थे, 529 की जमानत जब्त हुई थी। वैसे इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को बड़ी जीत तो मिली ही थी, इसके साथ-साथ अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित के महा रिकॉर्ड की बराबरी की थी। दिल्ली में लगातार तीन बार सत्ता हासिल करने वाले अरविंद केजरीवाल दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री बन गए थे। उससे पहले शीला दीक्षित ने भी यही कारनामा कर दिखाया था। उन्होंने 1998, 2003, 2008 मैं स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। दिल्ली के 2015 चुनाव की कहानी यहां पढ़ें