Delhi First Election 1952 Full Story: राजधानी दिल्ली का चुनाव सिर पर है, मुकाबला एक बार फिर केजरीवाल की आम आदमी पार्टी बनाम बीजेपी का है। कांग्रेस भी खुद को फिर अस्तित्व में लाने की कोशिश कर रही है। अब समय के साथ दिल्ली के चुनाव का भी काफी विकास हुआ है, मुद्दे बदल चुके हैं, समीकरण बदले हैं, डेमोग्राफी बदली है और लोग और नेताओं की प्राथमिकता में भी बड़ा अंतर आया है। लेकिन कभी सोचा है कि दिल्ली का पहला विधानसभा चुनाव कैसा था? दिल्ली के पहले विधानसभा चुनाव में कितनी सीटें थी?

दिल्ली का पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था। हैरानी की बात यह है कि तब राजधानी में कोई 70 सीटें नहीं हुआ करती थीं, मात्र 48 सीटें थीं। इसके ऊपर वो एक ऐसा चुनाव था जहां पर एक सीट से दो-दो विधायक तक जीतकर आए थे। आप कहेंगे कैसे, लेकिन सच्चाई यही थी, वो पहला चुनाव था और उसी में यह अनोखा प्रयोग देखने को मिला था।

पहले चुनाव में कितनी सीटें थीं?

अब पहले चुनाव में ना बीजेपी जैसी कोई पार्टी था ना केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ था। तब तो कांग्रेस का ही बोलबाला था, कांग्रेस का ही जोर था, ऐसे में प्रचंड लहर के साथ नेहरू की पार्टी ने जीत दर्ज की थी। पहले चुनाव में कांग्रेस ने 48 में से 36 सीटें अपने नाम की थीं। लेकिन 6 विधानसभा क्षेत्र तब ऐसे सामने आए थे जहां से दो-दो विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे।

असल में उस चुनाव में रीडिंग रोड, सीताराम बाजार तुर्कमान गेट, रहगर पुरा देव नगर, पहाड़ी धीरज बस्ती जुलाहा, नरेला और मेहरौली सीट से दो-दो विधायक जीते थे। वहां भी रीडिंग रोड तो एक ऐसी सीट थी जहां से जनसंघ के अमीन चंद भी जीते थे और कांग्रेस के प्रफुल्ल रंजन भी। अगर कुछ दूसरी जानकारी की बात करें तो दिल्ली के प्रथम चुनाव में 58.52 फीसदी वोट पड़े थे। तब दिल्ली के 5 लाख 21 हजार 766 वोटर्स ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। अकेले कांग्रेस को तब 52 प्रतिशत वोट मिले थे यानी कि आधे से भी ज्यादा।

पहला सीएम बनने की कहानी

अब पहले ही चुनाव में जब कांग्रेस को अप्रत्याशित जीत मिली थी, तब सीएम की कुर्सी चौधरी ब्रह्म प्रकाश को दी गई। चौधरी ब्रह्म प्रकाश एक काफी साधारण प्रष्ठभूमि से आते थे, आजादी में उनका योगदान था, पंडित नेहरू ने उनकी सियासी पारी को आगे बढ़ाने का काम किया था। ब्रह्म प्रकाश कहने को दिल्ली के पहले सीएम रहे, लेकिन कहा जाता है कि उस जमाने में उनका मुख्यमंत्री बनना एक एक्सीडेंट था। आज के समय में एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर के तौर पर मनमोहन सिंह को जाना जाता है, लेकिन पहले चुनाव के बाद ऐसा ही तमगा चौधरी ब्रह्म प्रकाश को मिला था।

अब ऐसा भी इसलिए कहा जाता है क्योंकि कांग्रेस पहले चौधरी ब्रह्म प्रकाश को मुख्यमंत्री नहीं बनाने वाली थी। जिनके नाम पर मुहर लगी थी, वो तो देशबंधु गुप्ता थे। लेकिन एक हादसे में उनकी मौत हो गई और कांग्रेस के सामने संकट खड़ा हो गया। उस संकट की वजह से ही नेहरू ने अपने करीबी नेता चौधरी ब्रह्म प्रकाश को आगे करने का फैसला किया। पूरी पार्टी ने तब उनके नाम का समर्थन किया और दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बनने का मौका उन्हें मिला।

मुगले आजम कौन था, दिल्ली से क्या कनेक्शन?

मूल रूप से हरियाणा के रेवाड़ी से आने वाले ब्रह्म प्रकाश काफी सरल जीवन के लिए जाने जाते थे। ऐसा कहा जाता है कि जब वे दिल्ली के मुख्यमंत्री भी थे, उन्होंने कभी कोई आलीशान महल नहीं बनवाय, वे खुद कभी सीएम आवास में नहीं रहे। वे तो जनता के बीच रहते थे, कहते थे कि उनकी समस्या सुनना और फिर उन्हें सुलझाना उनका धर्म है। उनकी सादगी ऐसी थी कि सीएम कुर्सी से हटने के बाद भी वे सरकारी बस से ही सफर करना पसंद करते थे। उनकी इसी सादगी ने उन्हें दो नाम दिए- शेर-ए-दिल्ली’ और ‘मुगले आजम’। दिल्ली चुनाव की दूसरी खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें