Yashee
अफगानिस्तान से आए अब्दुल बासिर अजीमी दिल्ली के लाजपत नगर में केमिस्ट की दुकान चलाते हैं। यह दुकान उन्होंने साल 2000 में शुरू की थी, जब वह अफगानिस्तान से दिल्ली आए थे। उनकी दिल्ली में दो और दुकानें हैं। इसके अलावा एक होटल, एक गेस्टहाउस के भी वह मालिक हैं। 5 साल पहले अजीमी ने भारत की नागरिकता ली थी।
द इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में अजीमी ने बताया कि काबुल में मेरे परिवार के पास दो मार्केट थीं, लेकिन वहां जारी हिंसा के चलते वह भारत आ गए। अजीमी के अनुसार, “अब मैं यहां शांति से काम कर सकता हूं, मेरी बेटियां बिना किसी डर के स्कूल जाती हैं।”
अजीमी की दुकान में दो सहायक भी काम करते हैं, जो कि मुस्लिम हैं और अफगानिस्तान से ही भारत आए हैं। बातचीत के दौरान अजीमी ने बताया कि “ये दोनों भी इसी वजह से भारत आए हैं। मेरे पास पैसे थे, तो मैंने यहां व्यापार शुरू कर दिया, लेकिन ऐसा करना इनके लिए मुश्किल है।”
जब अफगानी मूल के अजीमी से संशोधित नागरिकता कानून के बारे में सवाल किया गया कि क्या कानून आने के बाद मुस्लिम शरणार्थियों के लिए यहां की नागरिकता पाना क्या मुश्किल हो गया है? इस पर उन्होंने कहा कि वह भारत में नागरिकता नहीं चाहते हैं। लोग भारत आते हैं क्योंकि यहां से यूरोप या कनाडा का वीजा पाना आसान होता है।
अजीमी के अनुसार, “अफगानिस्तान से पश्चिम के देश जाना बेहद मुश्किल है। अफगानिस्तान में सभी धर्म के लोग प्रताड़ित हो रहे हैं। कई वहां से बाहर निकलना चाहते हैं, लेकिन भारत में भी नौकरियों की स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है।
पश्चिम के देशों में नौकरियों के मौके भी हैं और बेरोजगारी को मिलने वाले भत्ते भी अच्छे हैं। भारत इंग्लिश सीखने और संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी रजिस्टर में जगह पाने के लिए अच्छी जगह है।”
अजीमी ने कहा कि सरकार को अर्थव्यवस्था पर फोकस करना चाहिए। यदि शरणार्थियों को नौकरी ही नहीं मिलेगी तो उन्हें सीएए से कोई फायदा नहीं मिलेगा। अफगानिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिम शरणार्थियों का भी यही कहना है कि यहां नौकरियां नहीं हैं। इसलिए वह नागरिकता लेने के बजाय लॉन्ग टर्म वीजा ज्यादा बेहतर है।

