दिल्ली में स्थित बीकानेर हाउस कुर्क किया जाएगा। राजस्थान में नोखा नगर पालिका के मालिकाना हक वाले इस हाउस को लेकर दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने आदेश जारी किया है। इस मामले में राजस्थान की नोखा नगर पालिका और एनवायरो इन्फ्रा इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड के बीच हुए मध्यस्थता समझौते का पालन नहीं करने पर अदालत ने यह आदेश जारी किया है। मामले में कोर्ट ने नोखा नगर पालिका को 50.31 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया था। आदेश चार साल पहले 21 जनवरी 2020 को दिया गया था। इसके बाद से अब तक नगर पालिका ने कंपनी को भुगतान नहीं किया। मामले में अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी। अदालत ने नोखा नगर पालिका के प्रतिनिधि को उस दिन अदालत में पेश होने का आदेश दिया है।
बार-बार समयसीमा देने के बाद भी नहीं पेश किया हलफनामा
जिला न्यायाधीश विद्या प्रकाश ने नगर पालिका को निर्देश दिया कि जब तक अदालत से कोई नया आदेश न आए, तब तक इस संपत्ति को बेचना, गिफ्ट करना या किसी भी प्रकार से स्थानांतरित करना प्रतिबंधित है। नगर पालिका ने कोर्ट द्वारा बार-बार दी गई समयसीमा के बावजूद अपनी संपत्तियों का हलफनामा पेश नहीं किया। कोर्ट ने यह भी कहा कि नगर पालिका द्वारा संपत्तियों के हलफनामे में देरी और गैरहाजिरी की वजह से यह मामला कुर्की के आदेश तक पहुंचा।
बीकानेर हाउस का ऐतिहासिक महत्व
बीकानेर हाउस का निर्माण बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह के शासनकाल (1887-1943) में हुआ था। यह दिल्ली में रॉयल फैमिली का निवास स्थान था और इसे 18 फरवरी 1929 को एक भव्य पार्टी के साथ औपचारिक रूप से खोला गया था। 1947 में भारत की आजादी के पहले, यह स्थान कई शाही परिवारों की महत्वपूर्ण बैठकों का केंद्र रहा। यहां भारत में रियासतों के विलय और उनके भविष्य को लेकर चर्चाएं हुई थीं।
मामले में डिक्री होल्डर एनवायरो इन्फ्रा इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने नगर पालिका की संपत्ति पर कुर्की का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि यह मामला नगर पालिका की ओर से बार-बार निर्देशों की अनदेखी और कोर्ट में अनुपस्थित रहने के कारण गंभीर हो गया। जज ने आदेश दिया, “नोखा नगर पालिका की दिल्ली स्थित बीकानेर हाउस संपत्ति पर कुर्की के वारंट जारी किए जाते हैं।”
इससे पहले हाल ही में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली के मंडी हाउस के नजदीक बने हिमाचल भवन को अटैच करने के आदेश दिए हैं। यह आदेश बिजली कंपनी की रकम वापस ना करने से जुड़े केस में दिए गए हैं। हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद राजनीतिक पारा काफी हाई हो गया है और भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे पर कांग्रेस की सुक्खू सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया है।
साल 2009 में सेली हाइड्रो कंपनी को हिमाचल प्रदेश सरकार ने 320 मेगावाट की बिजली परियोजना आवंटित की थी। यह प्रोजेक्ट लाहौल स्पीति में लगाया जाना था। सरकार ने उस समय प्रोजेक्ट को लगाने के लिए बीआरओ को सड़क बनाने का काम दिया था। इस समझौते के अनुसार, राज्य सरकार को हाइड्रो कंपनी को समय पर प्रोजेक्ट पर काम शुरू करने के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध देनी थीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।