दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में सेना के एक पूर्व मेजर को अपनी हाउस हेल्प के साथ बलात्कार के आरोप से बरी किया। अदालत ने 2018 के इस मामले में आरोपी को बरी करते हुए अभियोक्ता के खिलाफ झूठा बयान देने के लिए झूठी गवाही का मामला दर्ज करने का आदेश दिया। अदालत ने मेजर को बलात्कार के आरोपों से सम्मानपूर्वक बरी करते हुए कहा कि उसके खिलाफ दर्ज FIR झूठी थी और गलत मंशा से दर्ज की गई थी।

पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पवन कुमार ने 3 जनवरी को दिए अपने आदेश में कहा, “मौजूदा मामले में रिकॉर्ड पर यह साबित हो चुका है कि अभियोक्ता (शिकायतकर्ता) ने इस अदालत के समक्ष झूठा बयान दिया है। ऐसे में न्याय के हित में यह जरूरी होगा कि उसके खिलाफ झूठी गवाही देने के अपराध की धारा 340 सीआरपीसी के तहत शिकायत एलडी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, नई दिल्ली की अदालत में भेजी जाए।”

शिकायतकर्ता की एकमात्र गवाही के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराना सही नहीं- कोर्ट

अदालत ने कहा, “तथ्यों और साक्ष्यों की सावधानीपूर्वक जांच और स्थापित कानूनी प्रावधानों के मार्गदर्शन में, यह अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि अभियोक्ता की गवाही में कई विरोधाभास और सुधार हैं। अभियोक्ता ने जांच और सुनवाई के दौरान अपने बयानों में एकरूपता नहीं दिखाई।”

अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता की एकमात्र गवाही के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराना सही नहीं होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि सेना में कार्यरत आरोपी को झूठे मुकदमे के कारण प्रतिष्ठा की अपूरणीय क्षति हुई है। एएसजे कुमार ने अपने आदेश में कहा, “पीड़ित शब्द केवल शिकायतकर्ता तक सीमित नहीं है और ऐसे मामले भी हो सकते हैं जहां आरोपी ही वास्तविक पीड़ित हो सकता है।”

पढ़ें- देशभर के मौसम का हाल

न्यायाधीश ने कहा, “किसी भी व्यक्ति की प्रतिष्ठा वर्षों में बनती है और इसमें बहुत मेहनत लगती है। प्रतिष्ठा बनाने में पूरा जीवन लग जाता है और कुछ झूठ उसे नष्ट कर देते हैं। मौजूदा तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, अदालत का मानना ​​है कि केवल बरी कर देने से आरोपी की पीड़ा की भरपाई नहीं हो सकती, जिसे बलात्कार की झूठी कहानी के आधार पर ऐसे जघन्य अपराधों के लिए मुकदमे की पीड़ा से गुजरना पड़ा।”

‘पूर्व मेजर को पैसे ऐंठने के लिए झूठा फंसाया जा रहा’

आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता भरत चुघ ने अदालत में तर्क दिया कि पूर्व मेजर को उससे पैसे ऐंठने के लिए झूठा फंसाया जा रहा है। चुघ ने यह भी तर्क दिया कि अभियोक्ता ने कई बार अपने बयान बदले और नौ दिन की देरी के बाद बलात्कार का झूठा आरोप लगाया। अदालत ने निर्देश दिया कि झूठी गवाही की शिकायत को सक्षम अदालत में भेजा जाना चाहिए।

एफआईआर के अनुसार, कथित घटना 12 जुलाई, 2018 को हुई थी। उसी रात, अभियोक्ता के पति ने आरोपी के घर से लगे सर्वेंट क्वार्टर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। अभियोक्ता अपने पति और दो बच्चों के साथ पिछले तीन महीनों से यहीं रह रही थी।

राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली अतिरिक्त लोक अभियोजक मनीषा सिंह ने तर्क दिया कि एफआईआर दर्ज करने में नौ दिन की देरी उसके पति की मौत से हुए आघात के कारण हुई थी। जांच कार्यवाही के दौरान दर्ज किए गए अपने बयान में, अभियोक्ता ने कहा कि उसके पति ने उसके साथ झगड़े के कारण आत्महत्या कर ली। पढ़ें- देश-दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लेटेस्ट अपडेट्स