Rekha Gupta Urdu Media Coverage: मुख्यमंत्री बनने के बाद रेखा गुप्ता ने दिल्ली को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का संकल्प लिया है। दिल्ली में साफ पानी, साफ हवा एक बहुत बड़ी चुनौती है। ऐसे में बीजेपी के द्वारा किया गया यह वादा कि दिल्ली को वर्ल्ड क्लास शहर बनाया जाएगा। इस काम में मुख्यमंत्री और नई सरकार के सामने कई तरह की चुनौतियां आएंगी। साथ ही बीजेपी को आम आदमी पार्टी के विरोध से भी जूझना होगा।
रेखा गुप्ता के सामने आम आदमी पार्टी ने विपक्ष के नेता के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी को चुना है। दिल्ली में नई सरकार के बनने को लेकर उर्दू अखबार ने क्या कुछ लिखा है, इस बारे में आपको बताते हैं।
उर्दू टाइम्स ने क्या लिखा?
मुंबई से छपने वाले अखबार उर्दू टाइम्स ने 21 फरवरी को लिखे अपने संपादकीय में कहा, ‘सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित और आतिशी के बाद रेखा गुप्ता दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री बन गई हैं। मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता का चुनाव बीजेपी की महिलाओं तक पहुंच बढ़ाने का संकेत है क्योंकि महिलाओं ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को हटाने और बीजेपी को लाने में अहम भूमिका निभाई है।’
अखबार कहता है कि महिला नेता नेतृत्व करने के लिए आगे आएं, ऐसा होना सुशासन के लिए जरूरी है। अखबार ने यह भी कहा है कि मुख्यमंत्री के तौर पर अपने 15 साल के कार्यकाल के दौरान शीला दीक्षित ने दिल्ली के बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के लिए काफी काम किया। लेकिन आम आदमी पार्टी ने भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस सरकार के खिलाफ ऐसा आंदोलन खड़ा किया जिससे उसे दिल्ली में बार-बार जीत मिली।
अखबार ने कहा है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली के मामले में आम आदमी पार्टी का मॉडल लोकप्रिय हुआ लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वह घिर गई और चुनाव हार गई। उर्दू टाइम्स ने संपादकीय में लिखा है, ‘रेखा गुप्ता बीजेपी आलाकमान के लिए सभी कसौटियों पर खरी उतरती हैं। रेखा गुप्ता बनिया समुदाय से आती हैं, जो बीजेपी के मुख्य वोट बैंक का हिस्सा है, वह राजनीति में आरएसएस की छात्र शाखा एबीवीपी से आगे बढ़ीं।’
संपादकीय कहता है कि सबसे बड़ा सवाल यही है कि बीजेपी सरकार किस तरह दिल्ली का विकास करेगी?
सियासत ने महायुति में चल रही ‘अनबन’ को उठाया
हैदराबाद से छपने वाले उर्दू अखबार सियासत ने महाराष्ट्र में भारी बहुमत से चुनाव जीतने के बाद महायुति के भीतर से आ रही खबरों पर संपादकीय लिखा है। अखबार ने 19 फरवरी को छपे संपादकीय में लिखा, ‘बीजेपी और एकनाथ शिंदे के अगुवाई वाली शिवसेना के बीच मतभेद बढ़ते दिख रहे हैं। शिंदे सेना के नेताओं में इस बात की बेचैनी है कि उनका कद कम किया जा रहा है हालांकि बीजेपी इससे इनकार कर रही है।’
लेख में कहा गया है कि देवेंद्र फडणवीस सरकार ने शिंदे सेना के लगभग 20 नेताओं की सुरक्षा में कटौती कर दी है हालांकि ऐसा अन्य दलों के नेताओं के लिए भी किया गया है लेकिन शिंदे कैंप के नेताओं की संख्या इसमें ज्यादा है। सियासत अखबार ने अपने संपादकीय में शिवसेना के मंत्रियों की इस चिंता के बारे में भी बात की है कि उनके विभागों के अफसर उन्हें भरोसे में लिए बिना ही अहम फैसले ले रहे हैं।
संपादकीय में कहा गया है कि विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही बीजेपी-शिवसेना के बीच खींचतान शुरू हो गई थी, जब बीजेपी ने शिंदे को फिर से सीएम पद देने से इनकार कर दिया था। संपादकीय में दावा किया गया है कि इससे यह धारणा भी मजबूत हुई है कि गठबंधन सरकार बनाने के बाद बीजेपी अपने सहयोगियों को कमजोर करने की कोशिश करती है।
उर्दू में अनुवाद का विरोध करने पर लिखा संपादकीय
उर्दू टाइम्स ने अपने संपादकीय में उत्तर प्रदेश विधानसभा में बजट सत्र के पहले दिन बीजेपी और सपा के सदस्यों के बीच सदन की कार्यवाही के अनुवाद में उर्दू को शामिल न करने और अंग्रेजी को रखने को लेकर हुआ। 20 फरवरी के अपने संपादकीय में उर्दू टाइम्स ने लिखा कि सदन में उर्दू अनुवाद का विरोध करने के लिए जो भाषा इस्तेमाल की गई, वह आपत्तिजनक और असंसदीय थी।
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संपादकीय में कहा गया है कि क्षेत्रीय भाषाओं- अवधी, भोजपुरी, ब्रज और बुंदेली के साथ-साथ अंग्रेजी में अनुवाद कराने के कदम का स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन उर्दू को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। संपादकीय कहता है कि सपा की आलोचना करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आरोप लगाया कि इसके नेता अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों में भेजते हैं लेकिन ये चाहते हैं कि दूसरे के बच्चे उर्दू सीखें और मौलवी बनें।
संपादकीय में कहा गया है कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि सत्ता की राजनीति ने उर्दू जैसी भारतीय भाषा को भी सांप्रदायिक बना दिया है। संपादकीय कहता है कि कई गैर-मुस्लिम उर्दू लेखक हुए हैं, इनमें- प्रेमचंद, कृष्ण चंदर, पंडित बृज नारायण चकबस्त, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, तिलोक चंद महरूम, कालिदास गुप्ता रिजा, राजिंदर सिंह बेदी, रघुपति सहाय (फिराक गोरखपुरी), गोपी चंद नारंग और गुलजार सहित कई नाम शामिल हैं। संपादकीय कहता है कि उर्दू का जन्म भारत में हुआ और यह एक बड़े वर्ग की भाषा बनी।
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संपादकीय में लिखा गया है कि भारत की आजादी की लड़ाई में उर्दू का योगदान रहा है। ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘सरफरोशी की तमन्ना’ जैसे क्रांतिकारी नारे भी उर्दू में ही हैं।
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