AAP, Purvanchal Voters, Arvind Kejriwal: दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार एक के बाद एक घोषणाएं कर रही है। पहले मैथिली भाषा की पढ़ाई दिल्ली के स्कूलों में करवाने का फैसला लिया और भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करवाने के लिए केन्द्र सरकार को पत्र लिखा। साथ ही दिल्ली की दो हजार से ज्यादा अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वालों की रजिस्ट्री शुरू करवाने की घोषणा की। अब महिलाओं को मेट्रो रेल और डीटीसी में मुफ्त यात्रा के अलावा हर महीने दो सौ यूनिट से कम उपभोग करने वालों को बिजली मुफ्त देने की बात हो रही है।
माना जा रहा है कि ‘आप’ ने अपना चुनावी एजंडा तय कर लिया है। इन घोषणाओं से भाजपा से ज्यादा छटपटाहट कांग्रेसी खेमे में हो रही है। बदलते राजनीतिक समीकरणों में दिल्ली की राजनीति में कुछ साल से निर्णायक माने जाने वाले पूर्वांचल के प्रवासी (बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश के मूल निवासी) सालों कांग्रेस के साथ रहे और वे इसी दम पर सालों राज करते रहे। उसी रास्ते पर चल रही ‘आप’ को जवाब देने के लिए भाजपा ने भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी को प्रदेश भाजपा की बागडोर सौंप दी लेकिन कांग्रेस कोई फैसला नहीं ले पा रही है।
अस्सी के दशक से दिल्ली का हर चौथा या पांचवां मतदाता पूर्वांचल का प्रवासी माना जाने लगा है। महाबल मिश्र के 1998 में विधायक बनने के बाद प्रवासियों की राजनीतिक अहमियत लोगों के समझ में आई। नौकरी में रहते हुए ही अजीत दूबे ने भोजपुरी समाज बनाकर लोगों को संगठित करना शुरू कर दिया। महाबल मिश्र आदि के दबाव और पूर्वांचल के मतदाताओं की बढ़ती संख्या के चलते वर्ष 2000 में दिल्ली की कांग्रेस सरकार ने छठ के दिन एच्छिक अवकाश घोषित किया। जिसे 2014 में राष्ट्रपति शासन में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया। शीला दीक्षित ने बिहार से बाहर पहली बार दिल्ली में मैथिली भोजपुरी अकादमी बनाया।
15 साल मुख्यमंत्री रहीं दिवंगत शीला दीक्षित खुद अपना चुनाव भी हार गईं। उनका कहना था कि इस चुनाव में विकास मुद्दा नहीं बना। चुनाव ‘बिजली हाफ और पानी माफ’ के नारे से ‘आप’ ने जीत लिया। लोकसभा चुनाव में दिल्ली में कोई सीट न जीतने के बाद ‘आप’ नेताओं ने फिर से वही तरीका अपनाया है और चर्चित अनधिकृत कॉलोनी मुद्दा उठा लिया है। कांग्रेस के नेताओं का दावा रहता है कि वे ही प्रवासियों के संरक्षक थे। प्रवासियों के बूते ही दिल्ली में लगातार तीसरी बार कांग्रेस की सरकार बनी। 2009 में महाबल मिश्र पश्चिमी दिल्ली से सांसद बने लेकिन कांग्रेस ने प्रवासियों की राजनीतिक भागीदारी नहीं बढ़ाई। यह काम ‘आप’ ने किया। दिल्ली में भाजपा 1998 में सरकार से बाहर हुई, तब से वह कभी विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाई। भाजपा खास वर्ग की पार्टी मानी जाती है।
गैर भाजपा मतों का ठीक से विभाजन होने पर ही भाजपा विधानसभा या नगर निगम चुनाव जीत पाती है। 1993 के बाद उसका वोट औसत कभी भी 36-37 फीसद से बढ़ा ही नहीं। मनोज तिवारी ने 2017 के निगमों के चुनाव में 32 बिहार मूल के उम्मीदवारों को टिकट दिलवाया जिसमें 20 चुनाव जीत गए। अगले कुछ महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में मनोज तिवारी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने के लिए भाजपा नेताओं पर भारी दबाव है।
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कॉलोनी पर अपनी-अपनी राजनीति
दिल्ली की एक तिहाई आबादी अनधिकृत कालोनियों, झुग्गी झोपड़ी और दिल्ली देहात में रहती है। उनमें ज्यादातर आबादी पूर्वांचल के प्रवासियों की है। कांग्रेस के महाबल मिश्र कहते हैं कि 80 के शुरुआत में जो जमीन हजारों में मिली, उसकी कीमत आज लाखों-करोड़ में हो गई। दिल्ली की सत्ता में रहने वाली कांग्रेस और भाजपा दोनों ने कॉलोनी वालों को अपने पक्ष में करने के लिए अपने शासन काल में तरह-तरह की घोषनाएं की। लोकसभा चुनाव से केंद्र की भाजपा की अगुआई वाली सरकार ने इन कॉलोनियों में स्वामित्व या हस्तांतरण माटर्गेज (रेहन) अधिकारों को प्रदान करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की सिफारिश करने के लिए उपराज्यपाल की अध्यक्षता में एक 10 सदस्य समिति का गठन किया था।
इससे पूर्व 2014 को भी फरवरी, 2015 में होने वाले विधानसभा चुनाव को नजर में रखते हुए केन्द्र सरकार ने 2000 अनधिकृत कॉलोनियों के नियमतिकरण की घोषणा की थी। 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले कॉलोनियों को नियमित करने की अधिसूचना जारी की गई थी। 2008 के विधानसभा चुनाव से दो माह पहले ही तब की कांग्रेस सरकार ने अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने के नाम पर एक रैली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथों अंतरिम प्रमाणपत्र वितरित कराए थे ।