दिल्ली में सिख दंगे के 36 साल पूरा होने के मौके पर वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा ने उस खौफनाक मंजर को याद किया। रजत शर्मा ने ट्वीट में लिखा कि 36 साल पहले हुए सिख भाइयों के क़त्लेआम का मंज़र याद आता है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
शर्मा ने लिखा कि मैं और तवलीन सिंह दिल्ली की सड़कों पर निकले, दोनों तरफ़ अधजली लाशें,गले में टायर डाल कर सिखों को जलाती जल्लादों की भीड़। बेबस होकर रिपोर्टिंग करना बहुत दर्दनाक था। इस ट्वीट पर वरिष्ठ महिला पत्रकार तवलीन सिंह ने भी जवाब दिया। तवलीन ने अपने ट्वीट में लिखा कि सब याद है जरा, जरा मुझे भी। हालांकि, रजत शर्मा के ट्वीट पर लोगों ने उन्हें ट्रोल भी किया। एक यूजर ने लिखा कि कभी गुजरात में 18 साल पहले हुऐ मुस्लिम नरसंहार पर भी कुछ बोलो।
यूजर @SULTANK78964963 ने आगे लिखा कि जितना विध्वंसक वो कांड था उतना ही गुजरात कांड भी था। बस फर्क ये है कि उस कांड के आरोपियों को सजा मिल गई,जब कि गुजरात तथा दिल्ली में दंगा कराने वाले आज इज्जत से जी रहे हैं। एक अन्य यूजर @JSGURathore ने लिखा कि 2002 के गुजरात दंगो की रिपोर्टिंग नही करी आपने क्या मोदी राज में, याद है अशोक मोची और कुतुबउद्दीन।
यूजर @iamkk89 ने लिखा कि वो लोग कौन थे? हम मुसलमानों से भी कभी पूछ लीजिए हम बताने लगे तो पन्ने कम पड़ जाएंगे! खैर अपकी पत्रकारिता आपको मुबारक। वहीं, तवलीन शर्मा के जवाब पर लोगों ने उनसे सवाल पूछे। @SikhGenocide84 हैंडल से यूजर ने ट्वीट में लिखा कि बस याद ही रखा…36 साल हो गए 35 हजार बेगुनाह सिखों की हत्या कर दी गई।
सज्जन कुमार, जगदीश टाइटल और ऐसे ही कई लोग को फांसी हुई क्या? क्यों मीडिया की तरफ से सरकार पर कोई दबाव नहीं बनाया गया? क्यों उन लोगों ने सरकार को समर्थन किया? सिखों के दमन के लिए यह पूरी तरह से सुनियोजित जनसंहार था। यूजर @bndgormint ने लिखा कि तो उनके कातिल को अभी तक आपकी पार्टी ने इंसाफ़ क्यों नहीं दिलाया,खाली साहेब इलेक्शन के वक़्त अपने चाटुकारों को लोगों को पुराने ज़ख्म ताजा करने के लिए भेज देते है।
उन्होंने आगे लिखा कि खुद तुम्हारा मालिक कितने हिंदू मुसलमानों को गुजरात के दंगो में अपने शासन में मरवा चुका है, अभी तक माफ़ी तक नहीं मांगी। एक अन्य यूजर @kpoojakri ने लिखा कि क्या यह बेबसी सिर्फ़ छद्म राष्ट्रवादी को ही होता ! आजकल सड़क पर पैदल चल रहे मजदूर की मजबूरी को दिखाने वाले पत्रकार को सरकार सहित कुछ मीडिया समूह ने “गिद्ध” कहा। क्या तब के “गिद्ध” आपलोग थे, जो जलते हुए इन्सान की बस रिपोर्टिंग करते रहे?