Delhi Stray Dog Shelter: देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को सरकार नगर निकायों और दिल्ली-एनसीआर के प्राधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करें। अब सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश आसानी से लागू हो भी पाएगा या नहीं, क्योंकि राजधानी में हजारों आवारा कुत्तों को रखने के लिए सरकार के पास बुनियादी ढांचे का अभाव है।

एमसीडी ने पशु जन्म नियंत्रण और नसबंदी केंद्र चलाने के लिए जिस गैर सरकारी संगठन से समझौता किया था, वह संगठन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लागू करने को लेकर अनभिज्ञ नजर आता है। दक्षिण दिल्ली के लाजपत नगर में नसबंदी केंद्र चलाने वाली गैर-लाभकारी संस्था एनिमल इंडिया ट्रस्ट के एक अधिकारी ने इस आदेश को बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।

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एनजीओ के अधिकारी ने आदेश को बताया ‘दुर्भाग्यपूर्ण’

एमसीडी ने पशु जन्म नियंत्रण और नसबंदी केंद्र चलाने के लिए जिस गैर सरकारी संगठन से समझौता किया था, वह संगठन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लागू करने को लेकर अनभिज्ञ नजर आता है। दक्षिण दिल्ली के लाजपत नगर में नसबंदी केंद्र चलाने वाली गैर-लाभकारी संस्था एनिमल इंडिया ट्रस्ट के एक अधिकारी ने इस आदेश को बहुत ही ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया है।

नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “मुझे समझ नहीं आता कि यह कैसे संभव है। एमसीडी अपने फंड का इंतज़ाम कहां से करेगी, जबकि वे हम जैसे एनजीओ को हर आवारा कुत्ते के लिए सिर्फ़ 1,000 रुपये ही देते रहे हैं, जिसमें आवारा कुत्ते को पकड़ने से लेकर उसकी नसबंदी के बाद उसे छोड़ने तक का खर्च होता है।”

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कुत्तों की गिनती क्यों है जरूरी?

पिछले 23 साल से जल विहार कॉलोनी में एनजीओ का नसबंदी केंद्र चल रहा है। इसमें अधिकतम 400 कुत्तों को रखने की ही क्षमता है और यह महीने 100 सर्जरी करता है। एनजीओ के अधिकारी ने कहा कि सिर्फ़ एबीसी पद्धति से काम नहीं चलेगा, बल्कि एक नए सर्वेक्षण की ज़रूरत है। जानकारी के मुताबिक एमसीडी ने पिछली बार कुत्तों की गणना 2016 में करवाई थी।

पिछले महीने एक महत्वपूर्ण बैठक के बाद नगर निकाय ने कहा था कि राजधानी में जल्द ही आवारा कुत्तों की गिनती की जाएगी। अधिकारी ने कहा, “हमने सरकार और निगम से कई बार अनुरोध किया है कि वे आवारा कुत्तों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करें लेकिन वे सुनने को तैयार नहीं हैं। कुत्ता बिना उकसावे के कभी नहीं काटता, इसलिए लोगों को शिक्षित करने की ज़रूरत है।”

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बिना किसी व्यवस्था कैसे लागू हो सकता है फैसला? – NGO

अधिकारी ने यह भी कहा कि जिस कदम का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है, वह रातोंरात लागू नहीं हो सकता है। इसके अलावा एक अन्य गैर-लाभकारी संस्था सोनादी चैरिटेबल ट्रस्ट की संस्थापक बंदना सेन गुप्ता ने सवाल उठाया कि क्या एबीसी कार्यक्रम पूरी तरह से बंद हो जाएगा। उन्होंने कहा, “बिना किसी पूर्व व्यवस्था के यह फैसला कैसे लिया जा सकता है? अगर आने वाले दिनों में हमारे केंद्र के सामने 20-25 कुत्ते भी खड़े हो गए, और हमारे पास उन्हें रखने की जगह नहीं बची, तो हम क्या करेंगे? कई लोग मुझे फोन करके अपना डर बता चुके हैं।”

पश्चिमी दिल्ली के नजफगढ़ में पिछले 26 वर्षों से चल रहे इस एनजीओ के केंद्र में अधिकतम 360 कुत्तों को शेल्टर दिया जा सकता है। फ़िलहाल, इसमें 100 कुत्ते हैं। इस दौरान यह भी पूछा गया, “यहाँ आने वाले कुत्तों को कई तरह की बीमारियां होती हैं जैसे कैनाइन डिस्टेंपर, रेबीज़, पार्वो… और कुछ का इलाज चल रहा है। सभी बीमार और स्वस्थ कुत्ते एक साथ कैसे रहते हैं?”

नई दिल्ली नगर निगम (NDMC) दो पशु चिकित्सालयों और दो एबीसी नसबंदी केन्द्रों के साथ-साथ दो गैर-लाभकारी संस्थाओं का संचालन करता है। अस्पताल के एक डॉक्टर के अनुसार एक केंद्र पिछले कुछ समय से बंद पड़ा है। एक अधिकारी ने दावा किया KF एनडीएमसी के अनुसार इस वर्ष अब तक रेबीज का कोई मामला सामने नहीं आया है।

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