एक तरफ दिल्ली बॉर्डर के उसपार से हो रही आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए इस्लामाबाद पर दबाव बना रही है। वहीं दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर से पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकी के केस की फास्ट ट्रैक सुनवाई सिर्फ इसलिए नहीं पा रही क्योंकि उसे पारिश्रमिक के रूप में काफी कम रुपए मिले हैं। 5 अगस्त, 2015 को कश्मीर के उद्धमपुर में बीएसएफ ने मोहम्मद नावेद नाम के आतंकी को पकड़ा था। उसने अपने एक साथी नोमान के साथ बीएसएफ के काफिले पर हमला किया था। उस हमले में सेना के दो जवान शहीद हो गए थे और साथ ही साथ नोमान भी मारा गया था। वहीं, नावेद को पकड़ लिया गया था। इसके बाद सरकार चाहती थी कि नावेद का ट्रायल फास्ट ट्रैक तरीके से हो। इसके लिए नावेद को सतिंदर गुप्ता नाम के वकील मुहैया करवाया गया। लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी कुछ साफ नहीं हुआ है। एनआईए ने चार्चशीट फाइल करके सतिंदर गुप्ता को नावेद का वकील बनाया था। सतिंदर गुप्ता का कहना है कि उन्हें पारीश्रमिक के रूप में बहुत कम पैसे मिले हैं। इस वजह से वह केस पर ज्यादा ध्यान और वक्त नहीं दे पा रहे। सतिंदर गुप्ता को वकील इसलिए बनाया गया था क्योंकि जम्मू कश्मीर के वकीलों ने नावेद का बचाव करने से मना कर दिया था।
गुप्ता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत करते हुए कहा, ‘पारिश्रमिक काफी कम है। यह 1500 या 3000 है। मैंने देखना भी जरूरी नहीं समझा। मैंने सोचा कि मैं केस देश के लिए लड़ रहा हूं। कोर्ट चाहता है कि मैं हर दो हफ्ते में तीन तारीख रखूं। लेकिन मैंने मना कर दिया। मैंने कोर्ट को बताया कि अगर मैं हर महीने चार-पांच दिन केस को दूंगा तो इसका मतलब है कि मुझे तैयारी के लिए और चार-पांच दिन चाहिए होंगे। यानी महीने के मेरे दस दिन ऐसे ही चले जाएंगे। ऐसे में मैंने केस से अलग होने का भी मन बना लिया था। लेकिन कोर्ट और एनआईए मेरी बात समझ गया।’
वहीं दूसरी तरफ गुप्ता को सही पारिश्रमिक ना मिलने से एनआईए भी परेशान है। क्योंकि यह केस उसके लिए काफी बड़ा है। इससे वह अपराध में पाकिस्तान की सहभागिता दिखा सकता है। फिलहाल एनआईए ने गुप्ता का पारिश्रमिक बढ़ाने के लिए जम्मू कश्मीर के चीफ सेक्रेटरी को खत लिखने के बारे में सोचा है। एनआईए अपनी तरफ से भी गुप्ता को पैसा देने के लिए तैयार था लेकिन कानून के हिसाब से राज्य सरकार को ही प्रतिवादी वकील को पैसा देना होता है।