पिछले तीन साल एक महीने के आंकड़ों से पता चला है कि एक से लेकर 17 साल के 161 लोग हताहत हुए हैं। तेज गति से गाड़ी चलाना, हेलमेट नहीं पहनना उनकी असमय मौत का कारण बना है।सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ इसके अन्य कारणों में एक कारण बच्चों के माता पिता की लापरवाही और पुलिस प्रशासन की सख्ती का पालन नहीं करना भी जिम्मेवार मानते हैं।
भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग विभाग के सड़क सुरक्षा परिषद के सदस्य डा कमल सोई मानते हैं कि सरकार को इन नौनिहालों की जान बचाने के लिए बच्चों के लिए बने हेलमेट को अनिवार्य करना चाहिए। साथ ही अभिभावकों को अकेले में बच्चों को सड़क पर खेलने के लिए नहीं छोड़ने और दोपहिया वाहनों पर तीन व्यक्तियों के बैठने पर भी रोक लगाने के लिए सरकार को कठोर कानून बनाना चाहिए।
पैदल चलने वालों के लिए सटीक रास्ते नहीं होना व बच्चों को छोड़कर माता-पिता का दूसरे कामों में व्यस्त होना भी उनकी जान जाने के एक कारण हैं। ताजा मामले में सूचना के अधिकार के तहत दिल्ली पुलिस यातायात मुख्यालय ने जो आंकड़े पेश किए हैं वह काफी चौंकाने वाले हैं। आंकड़े बच्चों के असमय काल के गाल में यानी सड़क दुर्घटनाओं में मौत से संबंधित हैं। आंकड़े बताते हैं कि साल 2020 में 61, 2021 में 60, 2022 में 77 और जनवरी 2023 में दो बच्चे सड़क दुर्घटनाओं के शिकार हुए।
यदि जिले और उम्र के हिसाब से इसे देखें तो सबसे ज्यादा बाहरी उत्तरी जिले में बीते चार सालों में 27 बच्चों ने अपनी जान गंवाई है। जबकि पूर्वी दिल्ली में यह संख्या सिर्फ एक ही है। दिल्ली पुलिस के दो जिलों दक्षिण-पूर्वी और उत्तर-पूर्वी ने आंकड़े देने से इसलिए मना कर दिया चूंकि इसे जुटाने में पुलिस बलों को अलग से लगाना पड़ता और पुलिस वालों की व्यस्तता में यह बहुत महत्वपूर्ण नहीं माना गया।
आरटीआइ कार्यकर्ता जीशान हैदर के मांगी गई जानकारी के जवाब में दक्षिण-पूर्वी जिला पुलिस ने कहा कि समय के कारण इसे उपलब्ध कराना मुश्किल हो रहा है लिहाजा इसे पुलिस मुख्यालय के वेबसाइट पर देखा जा सकता है जबकि उत्तर-पूर्वी जिला जन सूचना अधिकारी ने कहा कि व्यस्तता, समय खपाऊ और सभी थाने से मंगाने से अच्छा है कि इसे थाने जाकर जानकारी ली जानी चाहिए।
उन्होंने इस तरह की सूचना देने के माथापच्ची से पल्ला झाड़ लिया। लेकिन नई दिल्ली जिले में 11 महीने से लेकर छह साल और नौ साल के तीन बच्चे चार साल में मौत के मुंह में चले गए। इसी तरह दक्षिणी जिले में ढ़ाई साल से लेकर 12 साल के आठ बच्चों की मौत इन सालों में हुई। उत्तर-पश्चिम जिले में डेढ़ साल से लेकर 17 साल के 14 बच्चों ने चार सालों में अपनी जानें गंवा दी। उत्तरी जिला 13, शाहदरा में दो, बाहरी जिला में 11 महीने से लेकर 16 साल तक के 19, पश्चिमी जिला में दो, दक्षिण-पश्चिम में छह, मध्य जिले में दो और सबसे ज्यादा 27 बच्चे बाहरी-उत्तरी जिले में हताहत हुए।