धर्म बदलने वाले दलितों के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा जांच कराई जा रही है। इसको लेकर जांच आयोग ने 1 साल का विस्तार दिया है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) ने धर्मांतरण करने वाले दलितों को मिलने वाले आरक्षण का विरोध करने की बात कही है। आयोग के अध्यक्ष किशोर मकवाना ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बताया कि संविधान में अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जातियों को रखा गया है। इसके तहत हिंदू, सिख और बैद्ध धर्म के अलावा किसी भी दूसरे धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है।
केजी बालकृष्ण की अगुवाई में गठित है आयोग
मकवाना ने कहा कि 1950 में राष्ट्रपति के आदेश में कहा गया था कि हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के दलितों को ही अनुसूचित जाति की सूची का सदस्य माना जा सकता है। इस मामले को लेकर केंद्र सरकार ने साल 2022 में भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे केजी बालकृष्ण की अगुवाई में जांच आयोग गठित किया था। इस मामले में केंद्र सरकार ने जांच आयोग को एक साल का समय और दे दिया है।
पढ़ें दिनभर की सभी बड़ी खबरें-
दरअसल इस आयोग का गठन इस बात को ध्यान में रखते हुए किया गया था कि जो लोग धर्म बदल चुके हैं ऐसे अनुसूचित समुदाय से आने वाले लोगों को एससी कैटेगरी का दर्जा दिया जा सकता है या नहीं। अभी तक 10 अक्टूबर 2024 तक रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश था। लेकिन अब केंद्र ने जांच समिति को एक साल बढ़ा दिया है।
संविधान की भावना के खिलाफ
इस बात को लेकर मकवाना ने बताया है कि आरक्षण जाति के आधारित है। क्योंकि धर्म बदलने से पहले जो हिंदू होते हैं। वो धर्म बदलने के बाद मुस्लिम, ईसाई बन जाते हैं। जिसकी व्याख्या संविधान में नहीं है। मतलब धर्मांतरण करने वाले लोगों को आरक्षण मिलता है तो ये संविधान की भावना के खिलाफ है। क्योंकि धर्मांतरण के बाद आरक्षण का मामला ही खत्म हो जाता है।
बैन के बावजूद राजधानी में जमकर हुई आतिशबाजी, सुप्रीम कोर्ट से दिल्ली सरकार को फटकार
हालांकि जो लोग हिंदू धर्म से बौद्ध और सिख में धर्मांतरण करने वाले लोगों को आरक्षण मिलता रहेगा। रिपोर्ट के मुताबिक मकवाना ने अगर धर्मांतरण करने वाले लोगों को एससी का दर्जा दिया जाता है तो ये बाबा साहब के प्रयासों का दुरुपयोग होगा। इसके साथ ही यह एससी समुदाय के लोगों के साथ धोखा होगा।