मेरे दिमाग में हिंदी और अंग्रेजी एक-दूसरे में नहीं बहतीं। इसीलिए जब मैं हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद कर रही होती हूं, तो मैं हर शब्द को एक नए संसार में ले जा रही होती हूं।’ यह कहना है अमेरिका में रहने वालीं चित्रकार, लेखक और अनुवादक डेजी राकवेल का। लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ का राकवेल ने ही ‘टूंूम आफ सैंड’ नाम से अंग्रेजी में अनुवाद किया है। इस उपन्यास को इस साल का बुकर पुरस्कार मिला है। यह पुरस्कार गीतांजलि श्री और डेजी राकवेल ने मिलकर ग्रहण किया। पुरस्कार की राशि भी दोनों के हिस्से में आधी-आधी गई। अमेरिका में रहने वालीं चित्रकार, लेखक और अनुवादक ने ‘रेत समाधि’ को ‘हिंदी भाषा के लिए प्रेम पत्र’ के रूप में वर्णित किया है। वे कहती हैं, हिंदी के साथ मेरा रिश्ता एक स्थानीय वक्ता से बिल्कुल अलग है।
मैं कोई भी भाषा तेजी से सीखती हूं। हालांकि, मैंने 19 साल की उम्र तक हिंदी सीखना शुरू नहीं किया था। वे कहती हैं, ‘हमारा दिमाग नई भाषाओं को सीखने में अच्छा समय लेता है। प्रवाह के साथ हिंदी पढ़ने या बोलने में मुझे काफी समय लगा। मैं अभी भी हास्यास्पद गलतियां करती हूं और मुहावरेदार वाक्यांशों और शब्दों के सामने फुस्स हो जाती हूं।’ पश्चिमी मैसाचुसेट्स में कलाकारों के एक परिवार में पली-बढ़ीं डेजी राकवेल। मां-पिता दोनों कलाकार थे। दादा, नार्मन राकवेल, बड़े चित्रकार और लेखक थे, जिन्होंने अमेरिकी साहित्य और इतिहास पर बारीकी से काम किया।
डेजी ने शुरुआती जीवन में अपने पारिवारिक विरासत से प्रेरित हुईं। बर्कले विश्वविद्यालय में कई साल तक हिंदी अध्यापन के बाद उन्होंने कला, अनुवाद और लेखन का रास्ता चुना है। दक्षिण एशियाई साहित्य में उन्होंने पीएचडी की हुई है-उपेंद्रनाथ अश्क के उपन्यास ‘गिरती दीवारें’ और उनके जीवन पर।डेजी को स्नातक की पढ़ाई के दौरान अनुवाद में रुचि होने लगी। वे अनुवाद को रचनात्मक लेखन कहती हैं। उन्होंने हिंदी और उर्दू की कई कृतियों का अनुवाद किया है। हिंदी लेखक उपेंद्रनाथ अश्क की लघु कथाओं का अनुवाद किया है। उनके मशहूर उपन्यास ‘गिरती दीवारें’ को ‘फालिंग वाल्स’ नाम से अनूदित किया है। डेजी ने 2004 में उपेंद्रनाथ अश्क की जीवनी भी लिखी। वे अश्क के अलावा भीष्म साहनी, श्रीलाल शुक्ल, उषा प्रियंवदा की रचनाएं भी अनूदित कर चुकी हैं।
हिंदी से अपने रिश्ते के बारे में वे कहती हैं, ‘हमारा दिमाग नई भाषाओं को सीखने में अच्छा समय लेता है। प्रवाह के साथ हिंदी पढ़ने या बोलने में मुझे काफी समय लगा। मैं अभी भी हास्यास्पद गलतियां करती हूं और मुहावरेदार वाक्यांशों और शब्दों के सामने फुस्स हो जाती हूं। जब मैं हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद कर रही होती हूं, तो मैं हर शब्द को एक नई दुनिया में ले जा रही होती हूं।’ डेजी का कहना है कि उनके पास अभी अनुवाद/प्रकाशन पाइपलाइन में पांच पुस्तकें हैं। एक अश्क की है। उनकी ‘फालिंग वाल्स’ (गिरती दिवारें) सीरीज का दूसरा भाग। इसके अलावा ‘शहर में घूमता आइना’ पर काम कर रही हैं। उनके पास उर्दू लेखिका खदीजा मस्तूर के दो उपन्यास हैं – ‘द वूमेन कोर्टयार्ड’ (आंगन), जो इस साल सितंबर में प्रकाशित किया जाएगा और ‘जमीन’ जिस पर वह अभी काम कर रही हैं।
