प्रिवेंशन ऑफ करप्शन के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट को मजिस्ट्रेट का फैसला इस कदर नागवार गुजरा कि उसने आरोपी के दावे को सही मानकर उन्हें ही हद में रहने की नसीहत दे डाली। हाईकोर्ट का कहना था कि स्पेशल कोर्ट या ट्रायल कोर्ट का काम मजिस्ट्रेट न करें।

एक मामले में करप्शन के आरोपी ने जब अपना VOICE SAMPLE देने से इनकार कर दिया तो एडिशनल चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट को गुस्सा आ गया। उन्होंने ट्रायल कोर्ट से लिखित में आरोपी के खिलाफ एक्शन लेने की सिफारिश कर डाली। आरोपी ने उनके इस फैसले को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी।

आरोपी ने मजिस्ट्रेट के फैसले को मानने से इनकार कर दिया था

जस्टिस फरजंद अली का कहना था कि करप्शन के मामले की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनी हुई हैं। ऐसे में मजिस्ट्रेट उसे कैसे VOICE SAMPLE लेने के लिए मजबूर कर सकते हैं। इस मामले में जांच एजेंसी ने आरोपी की आवाज का नमूना लेने के लिए मजिस्ट्रेट से अनुमति मांगी थी। मजिस्ट्रेट ने अपने सामने आरोपी कीआवाज का सैंपल लिए जाने का फैसला किया था। आरोपी ने मजिस्ट्रेट के फैसले को मानने से इनकार कर दिया।

हाईकोर्ट बोला- VOICE SAMPLE देना या न देना आरोपी की इच्छा

राजस्थान हाईकोर्ट ने आरोपी के दावे को सही ठहराते हुए कहा कि VOICE SAMPLE देना या न देना आरोपी की अपनी इच्छा है। कानून उसे इस तरह के अख्तियार मिले हुए हैं। मजिस्ट्रेट उसे VOICE SAMPLE देने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। आरोपी की नाफरमानी को लेकर मजिस्ट्रेट ट्रायव कोर्ट से नहीं कह सकते कि वो उसे सबक सिखाए। हाईकोर्ट का मानना था कि मामले में अभी तक चार्जशीट भी दाखिल नहीं हुई है। लिहाजा VOICE SAMPLE इस मुकाम पर लिए जाने की कोई तुक भी नहीं थी। पहले जांच एजेंसी को चार्जशीट तो दाखिल कर लेने दो। VOICE SAMPLE लेना है या नहीं इसका फैसला ट्रायल कोर्ट को करने दो।

हाईकोर्ट के जस्टिस फरजंद अली ने कहा कि मजिस्ट्रेट को ये अधिकार था कि वो जांच एजेंसी की याचिका पर मामले की सुनवाई करे। आरोपी के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट की धारा 7 ए और 8 धारा के साथ 120 बी (आपराधिक षडयंत्र रचना) के तहत केस दर्ज किया गया था। जांच एजेंसी के वकील की हाईकोर्ट के सामने दलील थी कि मजिस्ट्रेट अपनी मौजूदगी में VOICE SAMPLE लेने का आदेश जारी कर सकते हैं।