अगर कोविड-वैक्सीन के संदर्भ में बौद्धिक संपदा अधिकार (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट) कानून (वेवर) निलंबित हो गया तो फाइज़र, मॉडर्ना, ऐस्ट्राज़ेनका, नोवावैक्स, जॉन्सन एण्ड जॉन्सन और भारत बायोटेक आदि कंपनियों की वैक्सीन सिर्फ चंद देश नहीं वरन् दूसरे देश भी बना सकेंगे।
मगर इसमें वक्त लगने का अंदेशा है। तब तक हम यह समझते हैं कि इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स कानून क्या हैं। ये अधिकार किसी मौलिक सृजनकर्ता के काम को दूसरे व्यक्ति को उपयोग करने से रोकता है। प्रकाशन जगत का कॉपीराइट भी इस कानून का रूप है। इसमें लेखक या उसके वारिस के पास रचना के सारे अधिकार 70 साल तक बने रहते हैं। आपको याद होगा कि कुछ साल पहले प्रेमचंद की किताबों के प्रकाशन की बाढ़ आ गई थी। ऐसा 70 साल की अवधि बीतने के कारण हुआ था।
बौद्धिक संपदा कानून दरअसल वह कानूनी अधिकार है, जो किसी क्रिएटर, डिजाइनर, आविष्कारक या ओनर द्वारा बनाए गए विशेष उत्पाद, डिजाइन, क्रिएटिव एक्सप्रेशन, न्यू प्लांट वैरायटी, सेमीकंडक्टर चिप्स या ज्योग्राफिकल इंडिकेशन आदि को संरक्षित करता है। उस पर किसी दूसरे द्वारा अधिकार जमाने, उसका गलत इस्तेमाल करने से रोकता है।
विज्ञान जगत में भी यह चलता है। दरअसल, विज्ञान और आज के परिप्रेक्ष्य में दवाओं और वैक्सीन को विकसित करने में लाखों-करोड़ो डालर गलाने पड़ते हैं। यह काम गरीब देश कर ही नहीं सकते। अमीर देशों में भी यह काम प्राइवेट कंपनियां ही करती हैं। दवा बनते ही कंपनी उसे पेटेंट करा लेती है। फिर कोई दूसरा व्यक्ति उस दवा को तब तक नहीं बना सकता जब तक कि विकसित करने वाली कंपनी उसको अनुमति और तकनीक न दे दे। यह अनुमति अमूमन पैसा लेकर ही दी जाती है। बात सिर्फ इतनी सी है कि वैक्सीन विकसित करने वाली कंपनी अपनी गलाई हुई रकम पर अधिकतम प्रॉफिट चाहती है।

मतलब यह धंधा है। इसका मानव कल्याण से वास्ता केवल संयोग भर है। होता तो यहां तक है कि अमीर मुल्कों की ये कंपनियां उन बीमारियों की दवा बनाने के लिए काम ही नहीं करना चाहतीं जो यूरोप, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया में नहीं हैं। मलेरिया की वैक्सीन आज तक नहीं बनी क्योंकि यूरोप ने मच्छरों से निजात पा ली है। कालाज़ार की दवा भी नहीं बनी क्योंकि यह भारत के तराई क्षेत्रों में होता है।
लेकिन कोविड को लेकर मामला थोड़ा अलग है। सब जानते हैं कि इस बीमारी को बांधना नामुमकिन है। बीमारी 11 हजार किलोमीटर दूर से भी अमेरिका तक दौड़ आएगी।
संभवतः इसी नाते अब इटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी कानून को कोविड वैक्सीन के लिए निलंबित करने का उपक्रम चल रहा है। इसकी बात दरअसल पिछले साल डब्ल्यूटीओ की मीटिंग में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने रखी थी। अमेरिका ने इसका समर्थन किया था। भारत के प्रस्ताव में केवल वैक्सीन नहीं वरन् कोविड की दवाओं और जांच उपकरण भी शामिल थे।
मौजूदा प्रस्ताव को अमेरिका ने ओके कर दिया है। लेकिन सिर्फ अमेरिका से काम नहीं चलेगा। इसके लिए डब्ल्यूटीओ के सभी सदस्य देशों को समर्थन करना पड़ेगा। सो, अभी बहस चलेगी। मोल-भाव या लेन-देन के स्तर की बातें होंगी। मतलब मामला अभी खिंचेगा। तिस पर अमेरिका ने कहा है कि वह टेक्स्ट बेस्ड निगोशिएशन करेगा। इसका मतलब होता है कि एक देश एक ड्राफ्ट बनाएगा। उस पर बाकी देश काटम-पीटी करेंगे। नया ड्राफ्ट बनाएंगे। फिर आपस में बैठेंगे और कोशिश करेंगे आम सहमति बने। इस सब में कुछ महीने लग सकते हैं। कुछ जानकार लोगों का अनुमान है कि ठोस नतीजा नवंबर तक ही आ सकेगा।

