विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की लेटेस्ट सूची के अनुसार दुनिया भर में 165 कोरोना वायरस के टीके विकसित किए जा रहे हैं। डबल्यूएचओ की सूची में शामिल सभी टीके शुरुआती चरणों में हैं, वहीं कुछ ह्यूमन ट्राइल के फाइनल स्टेज में हैं। भारत समेत दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिक अलग-अलग जगहों पर वैक्सीन को विकसित करने में लगे हैं।

लेकिन इतने सारे टीके क्यों विकसित किए जा रहे हैं? क्या हमें इतने सारे कोरोना वायरस टीकों की आवश्यकता है? क्या एक टीका पर्याप्त नहीं होगा? क्या बाजार में आने वाला पहला टीका दूसरों को निरर्थक नहीं बना देगा? ऐसे में क्या हम भारी मात्रा में धन और संसाधनों को बर्बाद तो नहीं कर रहे? क्या हर किसी को सिर्फ एक प्रभावी टीका तैयार करने में सहयोग नहीं करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह सभी के लिए उपलब्ध हो?

विश्व में बहुत सारी कंपनियां टीका बनाने की दौड़ में हैं। लेकिन टीका बनान इतना आसान काम नहीं है। यह बहुत समय लेता है, इसमें बहुत सारा धन और संसाधन लगता है। इसके अलावा, यह एक बहुत ही उच्च जोखिम वाली प्रक्रिया है। इसमें सफलता की संभावना बेहद कम है।

अनुसंधान प्रयोगशालाओं में संभावित उम्मीदवारों के रूप में माने जाने वाले 100 टीकों में से मात्र 20 प्री क्लीनिकल ट्राइल स्टेज तक पहुँच पाते हैं। इसका मतलब है कि लगभग 80 फीसदी उम्मीदवार एनिमल ट्राइल के लिए भी फिट नहीं हैं। चुने गए टीकों में से ज्यादा से ज्यादा 5 ह्यूमन ट्राइल तक पहुँच पाते हैं। इनमें से मुश्किल से एक या दो ही सार्वजनिक उपयोग के लिए अप्रूव किए जाते हैं।

वर्तमान में डबल्यूएचओ की सूची में शामिल सभी टीके शुरुआती चरणों में हैं, इन में से 23 ह्यूमन ट्राइल पर हैं। ये सभी सफल नहीं होंगे। पिछले रिकॉर्ड के आधार पर मात्र एक चौथाई टीके ही प्री क्लीनिकल ट्राइल से ह्यूमन ट्राइल तक पहुँचते हैं।