बीते दिनों केन्द्र सरकार ने दावा किया था कि देश में यदि लॉकडाउन लागू नहीं होता तो देश में कोरोना संक्रमण के मामले 14-29 लाख होते और 37-78 हजार लोगों की जान जा सकती थी। अब सरकार के इस दावे पर एक्सपर्ट ने सवाल उठाए हैं। मैथमैटिकल मॉडलिंग के विशेषज्ञ प्रोफेसर गौतम मेनन का कहना है कि सरकार का यह निष्कर्ष पारदर्शी मॉडल पर आधारित नहीं है।
मशहूर पत्रकार करण थापर के साथ बातचीत में इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमैटिकल साइंसेज के प्रोफेसर गौतम मेनन ने बताया कि सरकार का निष्कर्ष उस मॉडल पर आधारित है, जो पारदर्शी नहीं है और देश से कहा जा रहा है कि वह इसे बगैर सवाल किए स्वीकार कर ले!
प्रोफेसर मेनन के अनुसार, मैथमैटिकल मॉडलिंग पूर्वानुमानों के आधार पर की जाती है लेकिन यहां इस बात की जानकारी नहीं है कि मॉडलिंग में किन पूर्वानुमानों का प्रयोग किया गया? उन्होंने बताया कि सरकार ने बॉस्टन कंसलटेंसी ग्रुप की सलाह ली है। बॉस्टन कंसलटेंसी ग्रुप एक बैंकिंग, वित्तीय मैनेजमेंट कंपनी है। स्वास्थ्य सेवाओं में इस कंपनी की सेवाएं क्यों ली गई? इस पर भी गौतम मेनन ने सवाल उठाए।
प्रोफेसर मेनन ने बातचीत में बताया कि प्रवासी मजदूरों के अपने गृह राज्य लौटने से उनमें कोरोना संक्रमित होने की दर कई गुना तक बढ़ गई है। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड आदि राज्यों में आजकल इस वजह से कोरोना के मामले तेजी से बढ़ भी रहे हैं।
गौतम मेनन का मानना है कि भारत में अगस्त माह में कोरोना संक्रमण अपने चरम पर पहुंचेगा। सरकार दावा कर रही है कि भारत में कोरोना से रिकवरी की दर भी ज्यादा है। हालांकि प्रोफेसर मेनन ने इस बात से इंकार किया है। उन्होंने बताया कि भारत में कोरोना मरीजों के ठीक होने की दर 42 फीसदी है, जो कि स्पेन की दर 69 फीसदी के मुकाबले काफी कम है।