कोरोना वायरस के चलते देशभर में लॉकडाउन को लेकर प्रभावित प्रवासी मजदूरों और छोटे कारोबारियों को न्यूनतम मजदूरी देने की याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार ने नोटिस जारी किया है। हर्ष मंदर और अंजलि भारद्वाज  ने कोर्ट में यह याचिका दायर की थी। हर्ष और अंजलि भारद्वाज ने कोरोना लॉकडाउन के चलते प्रभावित हुए प्रवासी मजदूरों को एक न्यूनतम राशि देने की दिशा में निर्देश देने की मांग की है। एक अन्य याचिका पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था  कि 22 लाख 88 हजार से अधिक लोगों को भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है और उनके रहने की व्यवस्था की गई है।

होटलों और रिजार्ट का आश्रय गृह बनाने की याचिका पर कोर्ट ने  केंद्र को ऐसा निर्देश देने से इंकार कर दिया और कहा कि सरकार को हर तरह के विचारों पर ध्यान देने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी उस वक्त की जब केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस संबंध में दायर एक अर्जी पर आपत्ति की।

मेहता ने कहा कि इन कामगारों के आश्रय स्थल के लिये राज्य सरकारों ने पहले ही स्कूलों और ऐसे ही दूसरे भवनों को अपने अधिकार में ले लिया है।न्यायालय में पेश आवेदन में आरोप लगाया गया था कि पलायन करने वाले कामगारों को जहां ठहराया गया है वहां सफाई की समुचित सुविधाओं का अभाव है। पीठ ने कहा कि सरकार को तमाम सारे विचारों को सुनने के लिये न्यायालय बाध्य नहीं कर सकता क्योंकि लोग तरह तरह के लाखों सुझाव दे सकते हैं।लॉकडाउन की वजह से शहरों से पैतृक गांवों की ओर पलायन करने वाले दैनिक मजदूरों का मुद्दा पहले से ही न्यायालय के विचाराधीन है।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने 31 मार्च को केन्द्र को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि पलायन कर रहे इन कामगारों को आश्रय गृह में रखा जाये और उनके खाने-पीने और दवा आदि का बंदोबस्त किया जाये।शीर्ष अदालत ने इन कामगारों को अवसाद और दहशत के विचारों से उबारने के लिये विशेष सलाह देने के लिये विशेषज्ञों और इस काम में विभिन्न संप्रदायों के नेताओं की मदद लेने का भी निर्देश दिया था।

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