लंबी पूर्णबंदी के बावजूद भारत में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। बीते छह दिनों में ही 12 हजार से ज्यादा नए मामले सामने आए हैं। औसतन सवा दो हजार से ज्यादा मामले रोज आने लगे हैं। पूर्णबंदी के तीसरे चरण में केंद्र और राज्य सरकार ने कोरोना संक्रमण के हिसाब से इलाकों को लाल, नारंगी और हरित क्षेत्रों में बांटा है और कुछ आर्थिक-सामाजिक गतिविधियां शुरू की हैं। लेकिन बढ़ते मामले चिंता का सबब हैं। आॅक्सफोर्ड और बॉस्टन विश्वविद्यालयों ने कोरोना संक्रमण के प्रसार को देखते हुए विभिन्न देशों का चार्ट तैयार किया है। संकेत हैं कि आने वाले दिन भारत के लिए अच्छे नहीं रह सकते हैं। वजह, जिन देशों ने पूर्णबंदी के साथ स्वास्थ्य जांच और इलाज के पुख्ता कदम उठाए, वहां कोरोना की रफ्तार धीमी पड़ गई।
संक्रमण की जांच
पूर्णबंदी की लंबी अवधि के बाद भारत में मरीज तेजी से सामने आने लगे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, जांच अगर पहले बढ़ गई होती तो नए मरीज काफी समय पहले आ गए होते और भारत उन देशों में शामिल होता जहां पूर्णबंदी लागू होने के चंद दिनों में नए मरीज सामने आने लगे और फिर संख्या कम होने लगी। संक्रमण के लिहाज से शीर्ष 11 में से 10 देश पूर्णबंदी के बाद नए मरीजों की पहचान करने और उनकी संख्या को रोकने में कामयाब हुए। 11वां देश भारत है, जिसे कामयाबी अभी नहीं मिली है। आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने पूर्णबंदी कठोरता सूचकांक में भारत को सबसे निचले पायदान पर रखा है। जिसमें बताया है कि पूर्णबंदी के तीसरे चरण के बावजूद भारत में मरीजों की रफ्तार बढ़ रही है। जबकि, 22 मार्च को जर्मनी में पूर्णबंदी लागू होने के ठीक छह दिन बाद मरीजों की संख्या तेजी से सामने आने लगी थी।
ठीक इसी तरह फ्रांस (16 दिन), स्पेन (18), यूके (20), डेनमार्क (28) और बेल्जियम में 20 दिन बाद मरीज सामने आए और उनकी पहचान के साथ पूर्णबंदी में ही ग्राफ नीचे की ओर बढ़ने लगा। भारत में प्रति 10 लाख की आबादी पर जांच का आंकड़ा 722 है। जबकि, बहरीन में 89388, इटली में 33997, आॅस्ट्रिया में 30639, अमेरिका में 20030, इंग्लैंड में 15419, दक्षिण कोरिया में 12162, ताइवान में 2711 जांच प्रति 10 लाख की आबादी पर कराए गए।
संक्रमण की रफ्तार
चीन, रूस, बेल्जियम, जर्मनी, इंग्लैंड, डेनमार्क, आयरलैंड जैसे देशों में पूर्णबंदी लागू होने के कुछ रोज बाद ही मरीजों का ग्राफ नीचे आने लगा। वजह थी मरीजों की पहचान, जांच और पृथक करना। भारत में 21 दिन की पहली पूर्णबंदी में जांच की गति काफी मंद थी। दूसरे चरण में गति बढ़ी और मरीजों का आंकड़ा भी। फ्रांस, स्पेन और इटली में भी पूर्णबंदी के दौरान नए मरीजों की संख्या घटी, लेकिन भारत में 38 दिन बाद पहली बार 2411, फिर तीन हजार से ज्यादा मरीज सामने आए हैं। भारत में रोजाना 40 से 50 हजार सैंपल की जांच हो रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत महामारी से लड़ने में तैयार नहीं था। जब 25 मार्च को पूर्णबंदी हुआ, तब न ज्यादा कोविड अस्पताल तैयार थे और न ही जांच के लिए पर्याप्त प्रयोगशालाएं थीं। हर दिन महज चार से पांच हजार सैंपल की जांच हो रही थी। दूसरे चरण में भारत ने प्रयोगशालाओं के साथ जांच बढ़ाई।
जांच के दावे और हकीकत
सरकार हर दिन एक लाख सैंपल की जांच करने की बात कर रही है। मार्च के पहले सप्ताह से ही जांच बढ़ाने पर सवाल पूछे जा रहे हैं। एक लाख जांच पूर्णबंदी के साथ शुरू होती तो अब तक करीब आधी आबादी की जांच हो चुकी होती। 27 जनवरी को केरल में पहला मामला मिला था, इसके बाद ेक मार्च तक देश में सिर्फ तीन ही मामले थे। उस वक्त प्रयोगशालाओं की क्षमता और कोविड अस्पतालों को बढ़ाया जा सकता था। विश्व स्वास्थ्य संगठन कई बार कह चुका है कि सिर्फ पूर्णबंदी ही पर्याप्त नहीं है।
पूर्णबंदी कब तक
अमेरिका की बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप यानी बीसीजी ने जॉन हाप्किंस विश्वविद्यालय के आंकड़ों के आधार पर दुनिया के 20 देशों का कोराना चार्ट तैयार किया है। इसके मुताबिक किसी भी देश में जुलाई से पहले पूर्णबंदी हटने वाली नहीं है। अगर हटती है तो हालात बिगड़ सकते हैं। बीसीजी अनुमान लगा रही है कि भारत में पूर्णबंदी जून के आखिरी हफ्ते से लेकर सितंबर के दूसरे हफ्ते तक रह सकती है।
भारत ने कोरोना से निपटने के लिए जिस तरह वक्त रहते पूर्णबंदी की घोषणा की उससे उसने इस बीमारी से निपटने के लिए कुछ वक्त जरूर खरीद लिया, लेकिन अन्य उपाय नहीं किए गए। इस रिपोर्ट के मुताबिक जून के तीसरे हफ्ते तक भारत में कोरोना के मामले शीर्ष पर होंगे और जून के आखिरी हफ्ते तक ही भारत पूर्णबंदी हटाने की स्थिति में होगा।
क्या कहते हैं जानकार
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कभी भी पूर्णबंदी की बात नहीं की थी। डब्लूएचओ ने तमाम तरह के उपाय बताए थे, जिसमें संक्रमण की पहचान, परीक्षण और पृथक करना बताए गए थे। कई देशों ने कठोर उपाय किए और अपने यहां पूर्णबंदी की। अब पूर्णबंदी से बाहर निकलने के लिए एक-एक कदम सावधानी से उठाना होगा।
– डॉ. सौम्या स्वामीनाथन, मुख्य विज्ञानी, विश्व स्वास्थ्य संगठन
जिन भी देशों ने कोरोना संक्रमण से अपने यहां बड़े नुकसान रोके हैं, उन्होंने सटीक और कार्यकारी कदम उठाए। दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, हांगकांग, स्वीडन और जर्मनी जैसे देशों को आज कम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। भारत में भी जल्द कदम उठाए गए।
–डॉ. प्रिया बालासुब्रमण्यम, वरिष्ठ जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आॅफ इंडिया