कोरोना संक्रमण के कारण भारत समेत दुनिया के विभिन्न देशों की घरेलू प्राथमिकताएं तो बदली ही हैं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर त्रिपक्षीय एवं गुटीय संबंधों के स्वरूप में भी बदलाव दिख रहा है। संक्रमण के पांव पसारने के साथ ही वैश्विक कूटनीति में तेजी से बदलाव हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर बड़े उतार-चढ़ाव हुए हैं। दुनिया की अर्थव्यवस्था चौपट हुई है, स्वास्थ्य सेवाएं बेहाल हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस समेत नाटो के मजबूत माने जाने वाले देशों में हालात बिगड़े दिख रहे हैं। दूसरी ओर, चीन ने अपने आप को संभाल लिया है और खुद के मजबूत होने के संकेत दे रहा है। रूस ने अपनी स्थिति बिगड़ने नहीं दी। कुछ मामलों में भारत की स्थिति विश्व मंच पर मजबूत दिखी है। भारत की पहल पर बीते कई साल से उपेक्षित पड़े संगठन दक्षेस के पुनरुद्धार के संकेत मिले हैं। इसके दूरगामी परिणाम होंगे।

बेपरदा अमेरिका
कोरोना संक्रमण ने अमेरिका को बेपरदा किया है- स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में। अमेरिकी स्वास्थ्य सेवाओं को वैश्विक स्वास्थ्य सूचकांक में पहला स्थान हासिल था। लेकिन वहां संक्रमण तेजी से फैला और अमेरिकी प्रशासन अपने नागरिकों की सुरक्षा के इंतजाम नहीं कर पाया। इससे अमेरिका की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति की कमियां सामने आईं। वहां सामाजिक सुरक्षा और बेरोजगारी की समस्या को लेकर राष्ट्रपति पर दबाव बढ़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। महामारी के कारण अमेरिका की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है। फौज, अंतरिक्ष विज्ञान या नई प्रौद्योगिकी पर अमेरिका का विशेष जोर रहा है। अब वहां जैविक महामारी से बचने की तैयारी को लेकर बहस तेज होने लगी है। जाहिर है, अमेरिका अपनी इन नीतियों की फिर से समीक्षा के संकेत दे रहा है।

चीन की बदलती भूमिका
चीन इन दिनों अपनी महात्त्वाकांक्षी बेल्ट रोड इनीशिएटिव (बीआरआइ) पर तेजी से आगे बढ़ रहा था। महामारी का संक्रमण शुरू में चीन समेत उन्हीं देशों में ज्यादा दिखा, जहां इस परियोजना को लेकर काम चल रहा था। इससे परियोजना को धक्का लगा। लेकिन मार्च के बाद हालात बदल गए। अब इस परियोजना का विरोध करने वाले देश, खासकर अमेरिका और नाटो के देश संक्रमण से बुरी तरह जूझ रहे हैं।

इन हालात में चीन की कई खामियों पर बहस आगे नहीं बढ़ी। सबसे बड़ा मुद्दा वुहान में कोरोना विषाणु के उद्भव को लेकर रहा। बाद में चीन के चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता का मुद्दा वैश्विक स्तर पर उठा। कोरोना से संभलने के बाद चीन ने जिन-जिन देशों को चिकित्सकीय उपकरण भेजे, उनकी गुणवत्ता 40 फीसद तक खराब पाई गई। कई यूरोपीय देशों ने तो खुलकर नाराजगी जाहिर की है। लेकिन यह बहस आगे नहीं बढ़ी। उलटे चीन की अर्थव्यवस्था के संभलने की खबरें आईं। इस मजबूती का लाभ उठाते हुए चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कोरोना का मुद्दा नहीं उठने दिया।

भारत और विश्व मंच
भारत की कूटनीति ने दुनिया के सामने एक नई मिशाल पेश की है। ईरान, इटली और यूरोप के तमाम देशों में रहने वाले भारतीयों को देश वापस लाया गया, जबकि उन्हें वहां से लाने में बहुत ज्यादा मुसीबतें सामने आई थीं। इसके अलावा भारत ने सार्क देशों की एक विशेष बैठक बुलाकर इस वैश्विक महामारी से लड़ने की साझेदारी का नेतृत्व किया है। भारत की सरकार ने अपने कूटनीतिक ढांचे को मजबूत करने के लिए दक्षेस संगठन को गतिशील बना दिया। इससे विश्व बिरादरी को यह संकेत गया कि आपदा और संकट के समय में भारत ही दक्षिण एशिया के देशों को निजात दिला सकता है।

भारत सरकार ने सार्क कोरोना आपात फंड की शुरुआत भी की है। इसका प्रयोग भारत के पड़ोसी देशों के हित के लिए किया जाएगा। वर्ष 2016 से सार्क ठंडे बस्ते में है। पाकिस्तान द्वारा आतंकी घटनाओं को जारी रखने के बीच पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन का भारत ने बहिष्कार किया था। उसके बाद बांग्लादेश, श्रीलंका समेत अन्य देशों ने भी वहां नहीं जाने का फैसला लिया था। अब कोरोना परिदृश्य में भारत ने सार्क ही नहीं, बिम्सटेक देशों को लेकर भी पहल की है। दक्षेस देश भारत की चौहद्दी हैं, जहां से भारत के नेतृत्व की शक्ति का आगाज होता है।