Indian Railway: दो साल पहले चीनी कंपनी के कॉन्ट्रैक्ट को रद्द किए जाने को लेकर चीनी कंपनी ने अब अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत से 279 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की है। इसके बदले में भारतीय रेलवे के तहत डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (DFCCIL) ने उल्टा चीनी कंपनी पर ही 71 करोड़ रुपयों का दावा ठोक दिया है। भारतीय रेलवे ने उत्तर प्रदेश में कानपुर से मुगलसराय (अब दीन दयाल उपाध्याय) तक के बीच में सिग्नल और कम्युनिकेशन इक्विपमेंट्स के लिए साल 2016 में चीनी कंपनी को 471 करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट दिया था।
कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक इस काम को साल 2019 तक खत्म हो जाना था लेकिन ये काम 2020 तक भी खत्म नहीं हो पाया था जिसके बाद भारतीय रेलवे ने दो साल पहले ये अनुबंध खत्म कर दिया था। इसके खत्म होने के दो साल बाद चीनी फर्म ने भारतीय रेलवे को लेकर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में 279 करोड़ रुपये के मुआवजे का दावा किया है।
भारतीय रेलवे ने चीनी कंपनी पर किया पलटवार
चाइनीज कंपनी चाइना रेलवे सिग्नलिंग एंड कम्युनिकेशन (CRSC) रिसर्च एंड डिज़ाइन इंस्टीट्यूट ने हाल ही में सिंगापुर में इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स (ICC) नियमों के तहत इस मामले को रखा। वहीं इस मामले में भारतीय पक्ष ने कड़ा रुख अपनाते हुए पलटवार किया और रेलवे के तहत डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (DFCCIL) ने चीनी कंपनी पर 71 करोड़ रुपये का दावा जारी किया है। रेलवे के सूत्रों ने बताया कि अब ये मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जा रहा है।
साल 2020 में खत्म कर दिया गया था अनुबंध
इसके पहले साल 2020 में DFCCIL ने पूर्वी समर्पित फ्रेट कॉरिडोर के लिए ये अनुबंध समाप्त कर दिया था। ये काम उत्तर प्रदेश में कानपुर और मुगलसराय (अब दीन दयाल उपाध्याय) स्टेशनों के बीच 417 किलोमीटर की दूरी पर इंस्टॉलेशन सिग्नलिंग और टेलीकॉम सिस्टम के लिए किया जा रहा था। उसी समय लद्दाख में चीन के साथ सीमा विवाद चरम पर था तो भारत ने ये अनुबंध समाप्त कर दिया था। डीएफसीसीआईएल ने इस कदम के पीछे कारण के रूप में ठेकेदार द्वारा गैर-प्रदर्शन का हवाला दिया था। चूंकि ये अनुबंध 2019 तक के लिए ही था। साल 2020 तक पूरे काम का महज 20 फीसदी काम ही हो पाया था। इंडियन एक्सप्रेस ने सबसे पहले 2020 में इस अनुबंध की समाप्ति की खबर दी थी। चीनी कंपनी ने उस समय मामले को दिल्ली की हाई कोर्ट में उठाया था लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
चीनी कंपनी का दावा अनुबंध की समाप्ति अवैध थी
चीनी कंपनी ने अब उन कामों के बारे में दावा किया है जो अनुबंध के तहत लागू हो चुकी हैं लेकिन उनका अभी भी भुगतान नहीं हुआ है, बैंक गारंटी की वापसी, कई तरह की गारंटी की धनराशि पर ब्याज और कई तरह अतिरिक्त खर्च। चीनी कंपनी का तर्क है कि अनुबंध की समाप्ति अवैध थी, क्योंकि भारतीय पक्ष ने अनुबंध में समाप्ति के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया था। इसके जवाब में डीएफसीसीआईएल ने अग्रिम जमा धनराशि पर एक दावा किया है। अधिकारियों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि बैंक गारंटी की जब्ती को नियमित करने के अलावा टर्मिनेशन क्लॉज के तहत रिटेंशन मनी और बैलेंस बाकी है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में दोनों पक्षों ने रखी अपनी बात
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘दोनों पक्षों के दावों को सुनने के बाद अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने सभी डॉक्यूमेंट्स की मांग की है जो आदेशों के अनुसार दोनों पक्षों की ओर से कार्यप्रणाली में हैं।’ अधिकारी ने आगे बताया, ‘इस अनुबंध को खत्म करने की मुख्य वजहों में से एक ये भी थी कि चीनी पक्ष इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के डिजाइन जैसे तकनीकी दस्तावेज नहीं देना चाहता था।’ रेलवे ने बताया कि चीनी कंपनी ने कोई काम नहीं किया और चार साल बाद भी महज 20 फीसदी काम आगे बढ़ पाया था। अब ठेके के बारे में पूछे जाने पर डीएफसीसीआईएल के एक अधिकारी ने बताया कि बचे हुए काम के लिए एक बार फिर से टेंडर निकाला गया है। एक अलग ठेकेदार के तहत इस पर काम को फिर से शुरु किए जाने की प्रक्रिया की जा रही है।