कांग्रेस पार्टी ने हमेशा फ़िलिस्तीन का समर्थन किया है। कांग्रेस संसदीय दल (CPP) की अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनकी बेटी और पार्टी सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा, गाज़ा में इजरायल-हमास के बीच चल रहे युद्ध के बीच फ़िलिस्तीनी मुद्दे की मजबूत आवाज़ बनकर उभरी हैं। फ़्रांस द्वारा यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ फ़िलिस्तीनी स्टेट को मान्यता देने के कुछ दिनों बाद सोनिया गांधी ने गुरुवार को द हिंदू के लिए एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने गाज़ा में इजरायल के विनाशकारी हमले के बीच फ़िलिस्तीन के संबंध में नरेंद्र मोदी सरकार के रुख की आलोचना की।

भारत को फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर नेतृत्व दिखाने की जरूरत- सोनिया

‘भारत की दबी हुई आवाज़, फ़िलिस्तीन से उसका अलगाव’ नाम के टाइटल से अपने लेख मे सोनिया गांधी ने तर्क दिया कि भारत को फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर नेतृत्व दिखाने की ज़रूरत है, जो अब न्याय, पहचान, सम्मान और मानवाधिकारों की लड़ाई है। सोनिया ने कहा कि पिछले दो वर्षों में अक्टूबर 2023 में इजरायल और फ़िलिस्तीन के बीच शत्रुता शुरू होने के बाद से भारत ने अपनी भूमिका लगभग त्याग दी है। उन्होंने कहा कि 7 अक्टूबर 2023 को इजरायली नागरिकों पर हमास के क्रूर और अमानवीय हमलों के बाद इजरायल की प्रतिक्रिया नरसंहार से कम नहीं रही। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, 55,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी नागरिक मारे गए हैं, जिनमें 17,000 बच्चे भी शामिल हैं।

सोनिया ने कहा कि मोदी सरकार की प्रतिक्रिया गहरी चुप्पी और मानवता व नैतिकता दोनों का त्याग रही है। उन्होंने आरोप लगाया, “ऐसा लगता है कि उसकी कार्रवाई मुख्य रूप से इजरायली प्रधानमंत्री और मोदी के बीच व्यक्तिगत मित्रता से प्रेरित है, न कि भारत के संवैधानिक मूल्यों या उसके रणनीतिक हितों से। व्यक्तिगत कूटनीति की यह शैली कभी भी स्वीकार्य नहीं है और यह भारत की विदेश नीति का मार्गदर्शक नहीं हो सकती।”

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प्रियंका का रुख क्या है?

कांग्रेस शुरू से ही फ़िलिस्तीनी आकांक्षाओं का समर्थन करती रही है, और नेहरू-गांधी परिवार दिवंगत फ़िलिस्तीनी नेता यासर अराफात के साथ घनिष्ठ संबंधों के लिए जाना जाता है। अराफ़ात ने इंदिरा गांधी को अपनी बहन माना था और उनके अंतिम संस्कार में सार्वजनिक रूप से रोए थे। वह राजीव गांधी के अंतिम संस्कार में भी शामिल हुए थे, जबकि सोनिया गांधी राजनीति में आने के बाद कई बार अराफात से मिलीं।

अक्टूबर 2023 में इजरायल और हमास के बीच शत्रुता भड़कने के बाद से कांग्रेस ने फ़िलिस्तीनियों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करते हुए इस संघर्ष पर सतर्क रुख अपनाया है। हालांकि प्रियंका इजरायली सरकार की आक्रामकता की निंदा करने और मोदी सरकार की चुप्पी और निष्क्रियता के लिए लगातार मुखर रही हैं।

कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि सोनिया-प्रियंका की जोड़ी का फ़िलिस्तीन पर कड़ा रुख अपनाना उनके लिए ज़्यादा नैतिक विकल्प है। पार्टी के विदेश मामलों के विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, “हर कोई जानता है कि मौजूदा मोड़ पर फ़िलिस्तीन समर्थक रुख़ अपनाने से चुनावी फायदा नहीं होगा और भाजपा के हमले भी हो सकते हैं। लेकिन गांधी परिवार के पास एक नैतिक दिशा-निर्देश है जो चुनावी जीत और लाभ से कहीं आगे जाता है, और फ़िलिस्तीन मुद्दे पर यह बिल्कुल स्पष्ट है।”

शशि थरूर ने क्या सुझाव दिया था?

7 अक्टूबर 2023 को इजरायल में हमास के हमलों से शुरू हुए इजराइल-हमास युद्ध ने कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया है, जो ऐतिहासिक रूप से फ़िलिस्तीन के पक्ष में खड़ी रही है। कांग्रेस ने शुरुआत में हमास का नाम लेने और इज़राइल में उसके हमलों के लिए ‘आतंक’ शब्द का इस्तेमाल करने से परहेज किया। इसके बाद शशि थरूर जैसे कुछ पार्टी नेताओं ने 9 अक्टूबर, 2023 को हुई कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक में कहा कि सीडब्ल्यूसी के प्रस्ताव में इजराइल पर हमास के हमले की निंदा की जानी चाहिए, संगठन का नाम लिया जाना चाहिए और आतंक शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

कांग्रेस कार्यसमिति के प्रस्ताव में थरूर के सुझाव पर ध्यान नहीं दिया गया। हालांकि इसके तुरंत बाद संतुलन बनाने की कोशिश करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इजरायल के लोगों पर हमास द्वारा किए गए क्रूर हमलों की निंदा की और कहा कि इजरायली सैन्य बलों द्वारा नागरिक क्षेत्रों में की गई अंधाधुंध कार्रवाई (जिसमें गाजा पट्टी की घेराबंदी और उसमें बमबारी शामिल है) भी अस्वीकार्य है।

कांग्रेस और वामपंथी दलों ने की मोदी सरकार की आलोचना

हमास के हमले के कुछ हफ़्ते बाद कांग्रेस ने वामपंथी दलों के साथ मिलकर मोदी सरकार की आलोचना की। जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अरब देशों द्वारा तैयार किए गए एक प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया, जिसमें इजरायल और हमास के बीच तत्काल युद्धविराम और गाजा पट्टी तक सहायता पहुंचाने की मांग की गई थी। प्रियंका ने महात्मा गांधी की प्रसिद्ध पंक्ति ‘आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देती है’ का हवाला देते हुए कहा, “मैं स्तब्ध और शर्मिंदा हूं कि हमारे देश ने गाजा में युद्धविराम के लिए मतदान से परहेज किया है।”

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अक्टूबर 2023 में द हिंदू के लिए लिखे एक लेख में सोनिया ने हमास के हमले पर इज़राइल की सैन्य प्रतिक्रिया की कड़ी आलोचना की थी। जुलाई 2024 में प्रियंका ने इस युद्ध को बर्बर बताते हुए सभी देशों से इज़राइल सरकार की नरसंहारकारी कार्रवाइयों की निंदा करने और उन्हें इसे रोकने के लिए मजबूर करने का आग्रह किया। जहां गांधी परिवार मुखर रहा है, वहीं कांग्रेस ने भी बीच-बीच में मोदी सरकार पर फिलीस्तीन मुद्दे के प्रति भारत की ऐतिहासिक प्रतिबद्धता के अनुरूप इस मुद्दे पर पर्याप्त कदम न उठाने का आरोप लगाया है।

हालांकि कांग्रेस का एक वर्ग इज़राइल-फिलीस्तीन संघर्ष पर अधिक सूक्ष्म रुख अपनाने के पक्ष में प्रतीत होता है। कांग्रेस कार्यसमिति के एक सदस्य ने कहा, “इस मुद्दे पर कोई रुख अपनाने से हमें कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिलने वाला है क्योंकि हमारे लोगों का एक बड़ा वर्ग इजराइल का समर्थन करता है। फ़िलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन करने वालों में मुसलमान भी हैं, जो कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की ओर झुके हुए हैं। अतीत अलग था। राजनीति को वर्तमान और भविष्य के अनुसार ढालना होगा।”

दिसंबर 2024 में प्रियंका संसद में एक बैग लेकर गई थीं जिस पर फिलिस्तीन लिखा हुआ था। भाजपा ने तुरंत उन पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया था। इसके बाद उन्होंने संसद परिसर में ‘बांग्लादेश में अत्याचार झेल रहे हिंदुओं के लिए न्याय’ की मांग करते हुए एक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। भाजपा सांसद और प्रवक्ता संबित पात्रा ने तब कहा था कि उनका यह कदम आश्चर्यजनक नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया, “जहां तक गांधी परिवार के सदस्यों का सवाल है, यह कोई नई बात नहीं है। नेहरू से लेकर प्रियंका वाड्रा तक- गांधी परिवार के सदस्य तुष्टिकरण का बैग लेकर घूमते हैं। उन्होंने कभी देशभक्ति का बैग अपने कंधों पर नहीं लटकाया।”

दिसंबर 2024 में नई दिल्ली स्थित फिलीस्तीन दूतावास के प्रभारी अबेद एलराज़ेग अबू जाज़र ने केरल के वायनाड से चुनावी जीत पर बधाई देने के लिए प्रियंका से उनके आवास पर मुलाकात की थी। उस समय फिलिस्तीनी दूतावास द्वारा जारी एक बयान के अनुसार प्रियंका ने मुलाकात के दौरान कहा था कि वह बचपन से ही फिलिस्तीन के मुद्दे पर जीती रही हैं और उसके न्याय में विश्वास करती हैं।