देश में ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ (मनरेगा) की दशा बीते चार सालों में बेहद खस्ताहाल रही है। 100 दिन की न्यूनतम रोजगार का वादा करनी वाली इस योजना से लोगों को औसतन मात्र 47 दिन ही रोजगार मिल पाया। हालांकि, मंगलवार (2 अप्रैल) को जारी अपने घोषणा पत्र (Lok Sabha Election 2019) में कांग्रेस ने मनरेगा के तहत 150 दिन न्यूनतम रोजगार देने का वादा किया है। लेकिन, वर्तमान सरकार के आंकड़ों पर गौर करें तो यह लक्ष्य कांग्रेस लिए मुश्किल साबित हो सकता है।
सरकारी आंकड़े के मुताबिक मनरेगा के तहत प्रत्येक घर को वित्त वर्ष 2016 से लेकर 2019 तक सिर्फ 47 दिन ही रोजगार दिया जा सका। यह आंकड़ा योजना के मुताबिक 100 दिन के रोजगार गारंटी का पचास फीसदी भी नहीं है। ‘बिजनस टुडे’ के मुताबिक 2015 से लागू तमाम वित्त वर्ष में रोजगार देने की बात करें तो 2015-16 में 48. 85 दिन रोजगार मिले। वहीं, 2016-17 में 46, 2017-18 में 45.69 और 2018-19 में 50.48 दिन रोजगार मुहैया कराए गए। अगर इन सभी सालों के अंतर्गत दिए गए कुल रोजगार के दिनों का औसत निकालें तो चार सालों में यह 47.75 होते हैं।
आंकड़े बताते हैं कि 2018-19 में मनरेगा के तहत 265 करोड़ लोगों को रोजगार दिया गया। यह आंकड़ा मोदी सरकार के इसके पिछले वर्षों के मुकाबले ज्यादा था। 2016-17 में 235.64 करोड़ लोगों को रोजगार दिया गया, जबकि 2017-18 में 233.74 लोग रोजगार हासिल किए। आंकड़े यह भी दिखाते हैं कि वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान 5.25 करोड़ परिवारों को मनरेगा के तहत काम मिला। लेकिन, इनमें से सिर्फ 49 लाख परिवार ही 100 दिन रोजगार मिल पाया। हालांकि, मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी में संशोधन किए बगैर या फिर इस मद में पैसों की बढ़ोतरी किए बिना, कांग्रेस के लिए 150 दिन के रोजगार का वादा सच्चाई से काफी दूर है। कांग्रेस ने भी अपने घोषणा पत्र में मजदूरी में संशोधन या फंड में बढ़ोतरी का कोई जिक्र नहीं किया है।