भारतीय नौसेना से सेवानिवृत्त पूर्व कमांडर अभिलाष टामी ने समुद्र के रास्ते पुरी दुनिया 236 दिनों में नाप ली। वे इतने दिनों तक लगातार अपनी नाव चलाते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय ‘गोल्डन ग्लोब रेस’ (जीजीआर) शुरू होने के बाद उन्हें चोट भी लगी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। गोल्डन ग्लोब रेस को न सिर्फ दुनिया की सबसे खतरनाक प्रतियोगिता माना जाता है, बल्कि इसकी गिनती सबसे कठिन दौड़ में से एक में भी होती है।

जीजीआर दुनिया भर में नावों की इकलौती नान-स्टाप दौड़ है। 44 वर्षीय कमांडर टामी ने 29 अप्रैल को फ्रांस के लेस सेबल्स डी ओलोंने में दोपहर 1:30 बजे अपनी दौड़ पूरी की। दक्षिण अफ्रीका के नाविक कर्स्टन न्यूसचफर के बाद दौड़ पूरी करने वाले वे दूसरे नंबर के प्रतिभागी रहे। इस दौड़ में 11 देशों के 16 नाविकों हिस्सा लिया था। समुद्र की लहरों से जीत हासिल करने का कारनामा सिर्फ दो नाविकों को ही मिला। बाकी के नाविक किसी न किसी कारण से बीच रास्ते में ही प्रतियोगिता से अलग हो गए थे।

कमांडर अभिलाष को जीजीआर में पांच साल पहले पीठ में गंभीर चोट आई थी। तब उन्होंने स्वस्थ्य होने के बाद खूब मेहनत की और चोट से उबर कर शानदार वापसी की। अभिलाष टामी गोल्डन ग्लोब रेस पूरी करने वाले पहले भारतीय और पहले एशियाई बन गए हैं।कमांडर टामी की इस उपलब्धि पर नौसेना के प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार और भारतीय नौसेना के सभी कर्मियों ने उनकी सराहना की है और बधाई दी है। नौसेना ने अपने सोशल मीडिया मंचों पर उनकी उपलब्धि का ब्योरा और तस्वीरें जारी की हैं।

कमांडर अभिलाष ‘तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवार्ड’ के विजेता भी रहे हैं। अभिलाष टामी ने 22 मार्च 2022 को गोल्डन ग्लोब रेस 2022 में हिस्सा लेने की घोषणा की थी। इससे पहले 18 सितंबर 2018 को वह दक्षिणी हिंद महासागर में तूफान में फंस गए थे। तीन नावों में से दो नावें उस तूफान का सामना नहीं कर सकी। जिस नाव में अभिलाष थे, वह नाव बच गई।

अभिलाष इस तूफान में बच तो गए थे लेकिन उन्हें तब कई गंभीर चोटें आई थीं। तब वह आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के बीच आधे रास्ते में फंस गए थे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलाए गए अभियान में उन्हें बचा लिया गया था। उन्हें भारतीय नौसेना एक पोत से लाया गया और भारत में उनकी रीढ़ में टाइटेनियम की छड़ें डाली गईं।

कमांडर अभिलाष टामी की नाव का नाम बायनट है, जो 236 दिनों की यात्रा के बाद शनिवार को फ्रांस के तट पर पहुंची। इस दौड़ के नियमों के मुताबिक, इसमें हिस्सा लेते वक्त प्रतिभागी को सिर्फ 1968 में मौजूद रहे औजारों और तकनीक के इस्तेमाल करने की इजाजत होती है। ऐसे में पुराने उपकरणों के साथ दुनिया का चक्कर लगाना कितना कठिन होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।