बंबई हाईकोर्ट में वकील सोम शेखर सुंदरेशन को जज नियुक्त करने की कालेजियम की सिफारिश पर केंद्र सरकार ने छह महीने बाद भी अपनी स्वीकृति नहीं दी है, जबकि इसी हाई कोर्ट में नियुक्ति के लिए मई में कालेजियम ने जिन तीन नामों की केंद्र से सिफारिश की थी।
उनकी नियुक्ति की अधिसूचना सोमवार को जारी कर दी गई। शैलेश प्रमोद ब्रह्म, फिरदौश फिरोज पूनावाला और जितेंद्र शांतिलाल जैन को हाई कोर्ट का जज नियुक्त कर दिया गया है। सुंदरेशन की नियुक्ति की सिफारिश कालेजियम ने पिछले साल की थी। लेकिन केंद्र ने उसे अपनी आपत्ति के साथ वापस भेज दिया था।
इस साल 18 जनवरी को कालेजियम ने सुंदरेशन के बारे में केंद्र की आपत्ति को खारिज करते हुए दोबारा उनके नाम की सिफारिश की थी। कालेजियम ने कहा था कि केंद्र की कुछ नीतियों की सुंदरेशन द्वारा की गई आलोचना को उनके हाईकोर्ट जज बनने की राह में बाधा नहीं माना जा सकता। पर पहले की सिफारिश के लंबित रहते केंद्र सरकार ने मई में की गई सिफारिशों को स्वीकार कर अपने रुख में कोई बदलाव नहीं आने का संकेत दिया है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट कालेजियम ने एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से कहा था कि नियुक्ति में सिफारिश की तारीख को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। पहले की गई सिफारिश को देर से मंजूर करने से व्यक्ति की वरिष्ठता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कानून के अनुसार कालेजियम अगर किसी नाम की दोबारा सिफारिश करता है तो केंद्र उसे मानने के लिए बाध्य है।
सुंदरेशन को हाई कोर्ट जज बनाने की सिफारिश बंबई हाईकोर्ट कालेजियम ने अक्तूबर 2021 में की थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट कालेजियम ने फरवरी 2022 में अपनी स्वीकृति देते हुए केंद्र को सिफारिश भेजी थी। लेकिन नवंबर 2022 में केंद्र ने उनकी फाइल को अपनी कुछ आपत्तियों के साथ पुनर्विचार के लिए कालेजियम को वापस भेज दिया था।
कालेजियम ने तो इस व्यवस्था की भी आलोचना की थी कि भेजे जाने वाले नामों में से केंद्र कुछ को रोक लेता है और कुछ पर अपनी सहमति दे देता है। सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने भी इस मामले की सुनवाई करते हुए अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा था कि कालेजियम सोच विचार के बाद ही नाम भेजता है और केंद्र को उसकी सिफारिशों पर कुंडली मारकर नहीं बैठना चाहिए।
इस मुद्दे पर पूर्व कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने परोक्ष रूप से न्यायपालिका के साथ टकराव का रास्ता अपनाया था। पिछले दिनों जब उन्हें कानून मंत्रालय से हटाकर दूसरे विभाग में भेजा गया था तो यही चर्चा सुनाई पड़ी थी कि केंद्र ने न्यायपालिका के साथ टकराव टालने के लिए यह बदलाव किया था। उनकी जगह राजस्थान के दलित नेता अर्जुनराम मेघवाल को कानून मंत्री बनाया गया था। जो काफी सुलझे हुए नेता माने जाते हैं और राजनीति में आने से पहले नौकरशाह थे।