पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को राहत प्रदान करते हुए उच्चतम न्यायालय ने ओडिशा में तालाबीरा 2 कोल ब्लॉक को हिंडाल्को कंपनी को आवंटित करने संबंधी मामले में सिंह को बतौर आरोपी तलब करने के निचली अदालत के आदेश पर आज रोक लगा दी।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल द्वारा आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत जरूरी मंजूरी के अभाव का उल्लेख करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री को तलब किए जाने की वैधता पर सवाल उठाए जाने के बाद शीर्ष अदालत ने समन पर रोक लगायी। सिब्बल ने यह भी कहा कि कोयला ब्लाक का आवंटन बिना किसी आपराधिक नीयत के एक प्रशासनिक गतिविधि थी।

समन पर रोक का शीर्ष अदालत का आदेश हिंडाल्को कंपनी के अध्यक्ष कुमार मंगलम बिरला, पूर्व कोयला सचिव पी सी पारिख और तीन अन्य पर भी लागू होता है।

न्यायाधीश वी गोपाला गौड़ा और सी नागप्पन की पीठ ने पूर्व प्रधानमंत्री की पैरवी करने वाले सिब्बल तथा मामले में अन्य वकीलों की जिरह को सुनने के बाद कहा, ‘‘हम सभी छह याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हैं। निचली अदालत का आदेश स्थगित रहेगा।’’

अदालत की कार्यवाही के दौरान 82 वर्षीय मनमोहन सिंह की बेटियां उपिन्दर सिंह और दमन सिंह वहां मौजूद थीं।

पीठ ने निचली अदालत में चल रही कार्यवाही पर भी रोक लगा दी और साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (डी) (3) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया।

आरोपियों के रूप में तलब अन्य लोगों में हिंडाल्को और उसके अधिकारी शुभेंदु अमिताभ और डी भट्टाचार्य शामिल हैं। विशेष सीबीआई न्यायाधीश भरत पाराशर ने सभी छह को आठ अप्रैल को अदालत के समक्ष हाजिर होने के लिए तलब किया था।

सिब्बल ने 35 मिनट तक चली कार्यवाही के शुरुआत में ही कहा, ‘‘मैं यह स्वीकार करूंगा कि मैं यह पता नहीं लगा पाया हूं कि इस मामले में याचिकाकर्ता ने क्या गैरकानूनी काम किया है।’’

उन्होंने कहा कि एक खदान का आबंटन गैरकानूनी कार्रवाई नहीं है। उन्होंने दलील दी कि प्रधानमंत्री की प्रशासनिक गतिविधियों को इस आधार पर त्रुटिपूर्ण नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा अपनायी गयी प्रक्रिया या सिफारिशों का अनुसरण नहीं किया।

इस संदर्भ में उन्होंने उच्चतम न्यायालय के उस पूर्व के फैसले का हवाला दिया जिसके जरिए सभी कोयला ब्लॉक आवंटनों को इस आधार पर निरस्त कर दिया गया था कि स्क्रीनिंग कमेटी की कार्यविधि गैरकानूनी थी।

सिब्बल ने कहा, जबकि ‘‘निचली अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि आपने स्क्रीनिंग कमेटी का अनुसरण नहीं किया और यह कानून के खिलाफ है।’’ उन्होंने साथ ही कहा कि प्रधानमंत्री को तलब करने का आदेश ‘‘जन तार्किकता’’ की कसौटी पर खरा नहीं उतरता।

उन्होनें यह भी कहा कि निचली अदालत का आदेश आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक लोक सेवक पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व अनुमति की जरूरत के प्रावधानों की भी अनदेखी करता है।

किसी अपराध के आवश्यक तत्वों का जिक्र करते हुए सिब्बल ने कहा कि ‘‘आरोपी व्यक्तियों द्वारा कोई गैर कानूनी कार्य को अंजाम देने के लिए किसी सांठगांठ का भी कोई उल्लेख नहीं है।’’

सुनवाई के दौरान पीठ ने सिंह के वकील से कहा कि वह एक लोकसेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अनुमति प्रदान करने संबंधी प्रावधानों पर उसे संतुष्ट करें। सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय के विभिन्न फैसलों का हवाला दिया और कहा, ‘‘यदि संदर्भित समय पर मैं कोयला मंत्री हूं तो भी मैं प्रधानमंत्री का दर्जा नहीं खो देता जिसे व्यापक शक्तियां प्राप्त होती हैं। आए दिन, मैं मंत्री के रूप में फैसले लेता हूं और सलाह को नामंजूर करता हूं तो क्या मुझे तिहाड़ जेल भेज दिया जाना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि एक निजी कंपनी को तालिबाड़ा कोयला खदानों के आवंटन के संबंध में आपराधिक कृत्य करने के लिए सांठ-गांठ होना जरूरी है। उन्होंने कहा, ‘‘आपराधिक साजिश कहां है? एक निजी सेक्टर की कंपनी को कोयला खदानों का आवंटन क्या अपराध है?’’

अपनी दलील में सिब्बल ने कहा कि कोई फैसला सही या गलत हो सकता है लेकिन इसे गैर कानूनी गतिविधि नहीं कहा जा सकता और निचली अदालत का आदेश लोक तार्किकता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। उन्होंने कहा, ‘‘अंतिम आवंटन नहीं हुआ था। इस फैसले की कोई सूचना नहीं थी। जब तक किसी फैसले की सूचना नहीं दी जाती वह फैसला नहीं बनता।’’

सिब्बल ने 16 दिसंबर 2014 के निचली अदालत के फैसले का भी जिक्र किया जिसके जरिए सीबीआई से पूर्व प्रधानमंत्री से सवाल करने को कहा गया था। उन्होंने कहा, ‘‘एक जज ऐसा नहीं कर सकता। यह उचित नहीं है।’’

उन्होंने कहा कि एक जज क्लोजर रिपोर्ट नकार सकता है या क्लोजर रिपोर्ट का संज्ञान ले सकता है लेकिन जांच की प्रकृति का फैसला नहीं कर सकता।

पूर्व प्रधानमंत्री ने 25 मार्च को शीर्ष अदालत में जाकर उनके खिलाफ जारी समन को रद्द करने और सीबीआई अदालत में आपराधिक कार्यवाही पर स्थगनादेश की अपील की थी।

सिंह ने इस आधार पर समन को रद्द किए जाने की अपील की थी कि 11 मार्च का निचली अदालत का आदेश बिना दिमाग लगाए जारी किया गया।

पूर्व प्रधानमंत्री ने आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाने का भी अनरोध किया था। उन्होंने तर्क दिया था कि कोयला मंत्री के रूप में लिये गये उनके निर्णय में अपराधिता का कोई तत्व नहीं था।

याचिका में यह भी कहा गया था कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह पता चलता हो कि सिंह ने ऐसा कोई कृत्य किया जो अपराध बनता हो। याचिका के अनुसार प्रधानमंत्री ने सिर्फ ओडीशा सरकार के प्रतिवेदन पर तालाबीरा-दो कोयला खदान हिण्डालको को आबंटित करने के मामले में सक्षम प्राधिकारी के रूप में निर्णय लिया था।

विशेष अदालत ने 11 मार्च को अपने आदेश में कहा था कि पहली नजर में यह स्पष्ट है कि इसमें आपराधिक साजिश थी जिसकी शुरुआत में बिड़ला, हिण्डालको और उसके दो अधिकारियों ने इसकी रूपरेखा बनायी और फिर पारेख और इसके बाद तत्कालीन कोयला मंत्री मनमोहन सिंह को इसमें शामिल किया गया।

अदालत ने कहा था कि हिण्डालको को कोयला खदान के आबंटन को सिंह की मंजूरी से पहली नजर में निजी कंपनी को अप्रत्याशित लाभ हुआ जिसकी वजह से सार्वजनिक उपक्रम नेवेली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन लि. को हानि हुयी।