कोयला खदानों को निजी क्षेत्रों के कारोबारी इस्तेमाल के लिए खोलने के बाद केंद्र सरकार ने अब खदानों की नीलामी की सूची तैयार करनी शुरू कर दी है। संभावना है कि मध्य भारत के खदानों- ओड़ीशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और झारखंड में स्थित कोयला संपदा की नीलामी प्रक्रिया शुरू की जाएगी। कोयला क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआइएल) के बारे में कभी कहा गया था कि इस कंपनी में दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी बनने की क्षमता है।
भारत की ऊर्जा जरूरतों का 80 फीसद कोयला सीआइएल देता है, लेकिन नीतिगत वजहों से 2017-18 से कोयला उत्पादन के लक्ष्य में लगातार कटौती की गई। सरकार कहती रही कि मांग घट रही है। अब जबकि, सीआरएल का एकाधिकार खत्म कर इस क्षेत्र के निजीकरण की राह सरकार ने पकड़ी है, निजी कंपनियों को देश में 301.56 करोड़ टन ‘काला सोना’ का आरक्षित भंडार लुभा सकता है।
कारगर नहीं हुआ एफडीआइ का सुझाव
केंद्र सरकार की एक उच्चस्तरीय समिति ने कोल सेक्टर के निजीकरण की सिफारिश की थी। उस समिति में कैबिनेट सचिव, आर्थिक मामलों के सचिव, राजस्व सचिव, कोयला सचिव व नीति आयोग के उपाध्यक्ष भी शामिल थे। समिति ने कोयला उद्योग की मूल नीतियों में परिवर्तन करते हुए निजीकरण की सिफारिश की थी। एक साल के रोडमैप के तहत कैप्टिव कोल ब्लॉक को बंद करते हुए सभी सुविधाएं व्यावसायिक खनन के लिए उपलब्ध कराने की भी सिफारिश की गई।
समिति ने सबसे बड़ी अनुशंसा यह की कि कोल इंडिया की वाशरियों का निजीकरण किया जाए, ताकि आयात कम हो सके। कोकिंग कोल की खदानें 20 साल के लिए निजी कंपनियों को दी जाए। साथ ही कोल इंडिया की घाटेवाली या नन आॅपरेशनल 222 खदानों को उत्पादन शेयर के आधार पर नीलाम किया जाए। इन उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने मौजूदा बजट में कोयला खनन में सौ फीसद विदेशी पूंजी निवेश (एफडीआइ) की इजाजत दी थी। मजदूर संगठनों ने विरोध किया और एफडीआइ में किसी कंपनी ने रुचि नहीं ली।
कानून संशोधन की कवायद
कोयला खनन को लेकर सरकार ने कानून में पहले ही संशोधन किया है। लोकसभा और राज्यसभा में विधेयक पारित कराया गया। जानकार आशंका जता रहे हैं कि इसमें राज्यों की भूमिका सीमित रहेगी और निजी कंपनियां ताकतवर बनेंगी। दरअसल, पिछले कुछ साल से कोयला उत्पादन की कमी का हवाला देते हुए खनन कानून में बदलाव पर लगातार चर्चा हो रही थी। खनिज और कोयला कानून में संशोधन को लोकसभा में जब कोयला व खनिज मंत्री प्रह्लाद जोशी ने पेश किया तो उन्होंने तर्क दिया, देश में इतना अधिक कोयला होते हुए हम आयात कर रहे हैं। इसलिए देशहित में खान और खनिज विकास विनियमन अधिनियम 1957 (सीएमएसपी – एमएमडीआर अधिनियम) में संशोधन जरूरी है।
इस संशोधन पर बहस के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हवाले से कोयला आयात को ‘पाप’ की संज्ञा दी थी। खान और खनिज विकास विनियमन अधिनियम 1957 और मोदी सरकार लारा लाए गए कोयला खान विशेष उपबंध अधिनियम में जिस तरह के संशोधन किए गए हैं, उसमें अब कोई भी निजी कंपनी कोयला को खुले बाजार में बेच सकती है और यहां तक की उसका निर्यात भी कर सकती है।
कोयला उत्पादन में कहां खड़ा भारत
कोयला भंडार के मामले में दुनिया में चौथे नंबर पर है भारत। अप्रैल 2019 के भारत सरकार के एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में 326495.63 मिलियन टन कोयला उपलब्ध है। देश भर में 2013-14 के 565.77 मिलियन टन कोयला खनन का आंकड़ा 2018-19 में 730.35 मिलियन टन हो गया है। अकेले कोल इंडिया ने 2013-14 के 462.41 मिलियन टन की तुलना में 2018-19 में अपना उत्पादन 606.89 मिलियन टन पहुंचा दिया। इस दौरान मांग में भी बढ़ोत्तरी होती चली गई। 2013-14 में जहां 738.92 मिलियन टन कोयले की मांग थी, वह 2018-19 में 969.47 मिलियन टन पहुंच गई।
कोल इंडिया के ‘कोल विजन 2030’ के मुताबिक, भारत में कुल कोयला की मांग 2020 तक 900 से 1000 मिलियन टन और 2030 तक न्यूनतम 1303 और अधिकतम 1908 मिलियन टन रहने का अनुमान है। अभी जो आवंटित कोयला खदान हैं, उनसे अभी ही 1570 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया जा सकता है।
कोल इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक ऐसी स्थिति में नए कोयला खदानों में खनन की जरूरत ही नहीं है।
क्या कहते हैं जानकार
कोयला और लौह अयस्क के भंडार की क्षमता और दूसरी जानकारियों के लिए सर्वेक्षण का काम बेहद आसान है। जब सरकार किसी निजी कंपनी को खदान का आवंटन करेगी तो उसके सर्वेक्षण का काम भी निजी कंपनी को ही दे दिया जाएगा। ऐसे में कंपनियां कोयला भंडार को लेकर कम आंकलन या भ्रामक आंकलन भी कर सकती हैं। – प्रियांशु गुप्ता, आइआइएम, कोलकाता</p>
भारत में जिन कोयला खदानों से अभी उत्पादन हो रहा है, वह अगले 15 साल तक की कोयला आपूर्ति के लिए पर्याप्त है। निजी कंपनियां अंधाधुंध खनन करेंगी। देशी-विदेशी निजी कंपनियां देर-सबेर कोल इंडिया जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को हाशिए पर पहुंचा देंगी।
-श्रीधर रामामूर्ति, अध्यक्ष, माइंस मिनरल एंड पीपल
आयात पर विरोधाभासी तर्क
भारत में बड़ी संख्या में ऐसे संयंत्र लगाए गए हैं, जिनको आयातित कोयले के आधार पर ही चलाए जाने की तकनीक का उपयोग किया गया है। इस संबंध में कोयला एवं खान मंत्री प्रह्लाद जोशी का संसद में दिया गया बयान महत्त्वपूर्ण है। जोशी के मुताबिक, ‘आयातित कोयले के आधार पर डिजाइन किए गए विद्युत संयंत्रों लारा आयातित कोयला एवं ब्लैंडिंग प्रयोजन हेतु आवश्यक उच्च ग्रेड के कोयले का देश में आयात किया जाता है क्योंकि इसे घरेलू कोयले से पूरी तरह प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता।’
जोशी के अनुसार कोयले की घरेलू उपलब्धता में वृद्धि से कोयले के आयात में जो वर्ष 2009-10 से 2013-14 के बीच 22.86 फीसद की वार्षिक चक्रवृद्धि दर थी, वह वर्ष 2014-15 से 2018-19 के बीच घट कर 1.96 रह गई। जाहिर है, देश में कोयला उत्पादन लगातार बढ़ा है, लेकिन अब नए कानून से कोयला को खुले बाजार में बेचने के दरवाजे खुल गए हैं।