कोयले का इस्तेमाल और कार्बन उत्सर्जन के मामले में चीन-भारत समेत विभिन्न एशियाई देश आगे हैं। विश्व की 39 फीसद कार्बन डाईआॅक्साइड गैस कोयले से पैदा होती है। हाल में पेरिस जलवायु समझौते की रिपोर्ट में इसे लेकर बेहद चिंता जताई गई है।
बताया जा रहा है कि अमेरिका और यूरोप ने ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने के लिए तेजी से कदम उठाए। एशिया की गति धीमी है। एशियाई देशों के सामने रोजगार, करों से आमदनी और अर्थव्यवस्था से जुड़ी व्यावहारिक समस्याएं हैं, जिन्हें सरकारें सुलझा नहीं पा रही हैं।
भारत की स्थिति कितनी गंभीर है, यह जी-20 के रिपोर्ट कार्ड से पता चलता है। रिपोर्ट कार्ड में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इसके मुताबिक बढ़ते तापमान की वजह से वर्ष 1999-2018 के बीच भारत को 10 लाख करोड़ रुपए (14009 करोड़ डॉलर=1040308 करोड़ रुपए) से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है। यह देश की जीडीपी का करीब 0.26 फीसद होता है।
बढ़ते तापमान की चिंता
दुनिया में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का बड़ा स्रोत कोयला है। इसका उपयोग कम करने की कवायद पिछले कुछ साल से चल रही है। 2009 के बाद अमेरिका और यूरोप में कोयले का इस्तेमाल 34 फीसद कम हुआ है। र्इंधन, बिजलीघर और कुछ अन्य प्लांट चलाने में कच्चे माल के रूप में कोयले का इस्तेमाल 27 फीसद हो रहा है। 39 फीसद कार्बन डाईआॅक्साइड कोयले के र्इंधन से निकलती है।
इससे लाखों मौतें होती हैं। धरती के तापमान में बढ़ोतरी को दो फीसद तक सीमित रखने के लिए कोयले के उपयोग में कमी जरूरी है। इस समय विश्व के कुल 77 फीसद कोयले का उपयोग एशिया महाद्वीप में होता है। इसका दो तिहाई चीन और फिर भारत में हो रहा है। एशिया मेंं 25 फीसद बढ़ोतरी हुई है। चीन और भारत के साथ इंडोनेशिया, वियतनाम जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में कोयले का उपयोग बढ़ा है।
दुनिया भर का आधा इस्तेमाल चीन में
पूरी दुनिया में इस्तेमाल होने वाले कोयले का 52 फीसद चीन में उपयोग किया जा रहा है। भारत की हिस्सेदारी 25 फीसद से कम है। चीन के समान भारत में भी कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा रही है। वहां सरकार ने सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य भी तय किया है। चीन की तुलना में भारत के पास कोयला के कम विकल्प हैं। प्राकृतिक गैस के आयात की व्यवस्था का ढांचा पूरी तरह नहीं बना है। परमाणु बिजली क्षमता धीरे-धीरे बढ़ रही है। अगले साल प्रकाशित होने वाली चीन की नई पांच साल योजना में कोयले का उपयोग सीमित किया जा सकता है। एशियाई देशों के सामने गंभीर समस्याएं हैं। यूरोप, अमेरिका में कामयाब हो रही रणनीति के एशिया में कारगर होने में कई व्यावहारिक कठिनाइयां हैं।
भारत ने उठाए कदम
स्वयंसेवी संगठन ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर के अनुसार भारत में इस साल के पहले छह महीनों में कोयले से बिजली का 300 मेगावाट उत्पादन बंद कर दिया गया। कोई नया कोयला प्लांट नहीं बनाया गया है। देश की लगभग 75 फीसद बिजली कोयले से पैदा होती है।
ब्रिटेन ने साल के पहले छह महीनों में कोयले से बिजली बनाने वाले अपने 30 फीसद प्लांट बंद कर दिए। स्पेन ने जून में ऐसे सात बिजलीघर बंद किए हैं। कोयले से हर मेगावाट घंटा बिजली पैदा होने पर लगभग 33 किलो कार्बन डाईआॅक्साइड निकलती है। यह प्राकृतिक गैस के प्लांट से दोगुनी ज्यादा है। हालांकि, कोयले का उपयोग स्टील बनाने सहित कई उद्योगों में होता है, लेकिन दो तिहाई कोयला बिजली बनाने के लिए जलाया जाता है।
क्या कहती है जी-20 की रिपोर्ट
जी-20 के रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक बढ़ते तापमान की वजह से वर्ष 1999-2018 के बीच भारत को 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है। देश की जीडीपी पर यदि इसको आंका जाए तो यह करीब 0.26 फीसद होता है। रिपोर्ट कार्ड में भारत अमेरिका के बाद तीसरे नंबर पर है। इसके बाद चीन को होने वाला नुकसान 26 लाख करोड़ से अधिक है।
वहीं, चौथे नंबर पर मौजूद आॅस्ट्रेलिया को 18 लाख करोड़ से अधिक नुकसान बताया गया है। अमेरिका में नुकसान 38 लाख करोड़ रुपए से अधिक का है, जो उसकी कुल जीडीपी का करीब 0.35 फीसद है। 1999-2018 के बीच में बढ़ते तापमान की वजह भारत में प्रति दस लाख लोगों पर सालाना औसत मृत्यु दर 2925 रही है। जबकि इसी दौरान रूस में ये 2939, फ्रांस में 1122, इटली में 997 और जर्मनी में 537 रही है।
क्या कहते हैं जानकार
भारत सरकार बिजली के स्रोत के रूप में परमाणु ऊर्जा को सुरक्षित, पर्यावरण के लिए अनुकूल और आर्थिक रूप से ज्यादा सस्ता मानती है। मौजूदा क्षमता में नौ गुना की वृद्धि का लक्ष्य है। फिलहाल देश में परमाणु ऊर्जा से होने वाले नफा और नुकसान को लेकर बहस छिड़ी हुई है।
– दिलीप सिन्हा, पूर्व विशेष सचिव, अंतरराष्ट्रीय जलवायु नीति, भारत सरकार
भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा थोरियम रिजर्व है, जिसे मौजूदा परमाणु र्इंधन के सुरक्षित विकल्प के तौर पर देखा जाता है और लंबी अवधि के परमाणु संयंत्रों में उसकी गहरी रुचि भी है। अगर कभी इसके उत्खनन की योजना बनाई भी जाती है, तो भी उसके लिए 2050 से पहले ऐसा करना संभव नहीं होगा।
– मधुरा जोशी, जलवायु नीति विशेषज्ञ, नेशनल रिसर्च डेवेलपमेंट काउंसिल
बढ़ते तापमान से मौतें
जी-20 देशों की बैठक के दौरान सामने आई क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट 2020 में कहा गया है कि इन बीस साल के दौरान पूरी दुनिया में करीब 2.2 लाख लोगों की मौत की वजह धरती का बढ़ता तापमान बना है। भारत की ही बात करें तो हम जहां इससे होने वाले नुकसान में तीसरे नंबर पर हैं।
वहीं, मौतों के मामले में दूसरे नंबर पर हैं। वर्ष 2015 में हुए पेरिस समझौते में सभी देशों को मिलकर बढ़ते तापमान को कम करने की दिशा में काम करने की अपील की गई थी। इसके तहत दो डिग्री तक तापमान को कम करने का लक्ष्य रखा गया है। भारत 2005 में तय किए गए लक्ष्य को पाने के करीब पहुंच रहे हैं। इसके तहत कार्बन उत्सर्जन में 35 फीसद तक कमी करना है।