दिवाली से पहले आम लोगों को सीएनजी की कीमत से झटका लग सकता है। सरकार ने सस्ती घरेलू गैस (APM गैस) की आपूर्ति में 17-20 फीसदी की कमी कर दी है, जिससे सीएनजी फर्मों की लागत बढ़ेगी। इसके चलते सीएनजी की कीमत प्रति किग्रा 5 रुपये या उससे ज्यादा बढ़ सकती है। सस्ती घरेलू गैस (एपीएम) भारत के कुछ खास इलाकों से निकाली जाती है और इसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय दरों से कम होती है। कम कीमत होने से कंपनियों को अपनी लागत तय करने में मदद मिलती है, जिससे वे उपभोक्ताओं को कम कीमत पर सीएनजी दे पाती हैं। लेकिन हाल ही में APM गैस की आपूर्ति में 17-20 फीसदी की कमी हुई है, जिससे कंपनियों पर दबाव बढ़ा है। इसी कारण सरकार ने सस्ती गैस की आपूर्ति घटा दी है, जिससे सीएनजी की कीमतें बढ़ने वाली हैं।
शुरू हो सकता है महंगाई का एक नया दौर
भारत के कई हिस्सों से प्राकृतिक गैस को सीएनजी और पाइप वाली प्राकृतिक गैस (पीएनजी) में बदला जाता है। पुराने क्षेत्रों से मिलने वाली गैस की उत्पादन लागत सरकार द्वारा तय की जाती है, लेकिन अब इन क्षेत्रों से उत्पादन में सालाना पांच प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की जा रही है, जिससे शहरी गैस वितरण कंपनियों को गैस की आपूर्ति में कटौती करनी पड़ रही है। इस कटौती का प्रभाव सीधे उपभोक्ताओं पर पड़ेगा, जिससे महंगाई का एक नया दौर शुरू हो सकता है।
सूत्रों के अनुसार घरेलू रसोई के लिए गैस की आपूर्ति संरक्षित रखी गई है, जबकि सीएनजी के लिए कच्चे माल की आपूर्ति में कमी की गई है। पिछले मई में पुराने क्षेत्रों से प्राप्त गैस ने सीएनजी की 90 प्रतिशत मांग को पूरा किया था, लेकिन अब यह आंकड़ा घटकर 50.75 प्रतिशत रह गया है। यह गिरावट सीएनजी की कीमतों में बढ़ोतरी का संकेत देती है, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए एक गंभीर समस्या बन सकती है।
शहरी गैस खुदरा विक्रेताओं को इस कमी की भरपाई के लिए महंगी तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है, जिससे सीएनजी के दाम में बढ़ोतरी होना लगभग तय है। आयातित एलएनजी की कीमत 11-12 डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट है, जो पुराने क्षेत्रों से मिलने वाली गैस की कीमत (6.50 डॉलर प्रति यूनिट) से काफी अधिक है। यदि खुदरा विक्रेताओं ने कीमतें बढ़ाई, तो इसका असर सीधे उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा।
सरकार के पास एक विकल्प है कि वह सीएनजी पर उत्पाद शुल्क में कमी करे। वर्तमान में केंद्र सरकार सीएनजी पर 14 प्रतिशत उत्पाद शुल्क वसूलती है, जो लगभग 14-15 रुपए प्रति किलोग्राम बैठता है। अगर उत्पाद शुल्क में कमी की जाती है, तो खुदरा विक्रेताओं को बढ़ी हुई लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हालांकि, इस मुद्दे पर राजनीतिक गतिविधियां भी बढ़ रही हैं, खासकर जब महाराष्ट्र और दिल्ली में चुनाव नजदीक हैं।