भारत के अधिकांश हिस्सों में जहां जून में जानलेवा गर्मी पड़ी और गर्म हवाओं के थपेड़े से लोग बेहाल रहे। जुलाई में देश के अधिकांश हिस्सों में भारी बारिश से बाढ़ जैसे हालत बन गए हैं। फिलहाल समूचे उत्तर पश्चिम भारत में अत्यधिक भारी बारिश अपना कहर बरपा रही है। दूसरी ओर, अमेरिका और यूरोपीय देशों में भीषण गर्मी पड़ रही है। मौसम विज्ञानी और जलवायु वैज्ञानिक दोनों ही, एक बार फिर, चरम मौसम की घटनाओं में भारी वृद्धि के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आइपीसीसी) ने पहले ही चेतावनी दी थी कि गर्मी और मानसून की वर्षा भी बढ़ेगी और भारतीय उपमहाद्वीप में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में 20 फीसद की वृद्धि होगी। जून में कई दिन तक धरती का औसत वैश्विक तापमान औद्योगिक क्रांति से पूर्व के औसत तापमान के स्तर से 1.5 डिग्री तक पहुंच चुका था।

आइपीसीसी की स्थापना 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा की गई थी। आइपीसीसी की स्थापना को 1988 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा समर्थन दिया गया था। आइपीसीसी ने कहा कि इस साल नवंबर में होने वाली वार्षिक जलवायु वार्ता की तैयारी के लिए जब सब देशों के प्रतिनिधि जून की शुरुआत में बान में एकत्र हुए थे, तब कई दिनों तक औसत वैश्विक सतह हवा का तापमान पूर्व- औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक था।

हालांकि इससे पहले भी औसत तापमान अस्थायी रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गए थे, लेकिन एक जून से शुरू होने वाली उत्तरी गोलार्ध की गर्मियों में ऐसा पहली बार हुआ। समुद्र के तापमान ने भी अप्रैल और मई के कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए हैं। यह वह स्तर है, जिस तक तापमान को सीमित रखने का पेरिस समझौते में वादा किया था।

यह बात यूरोपीय यूनियन की वित्तीय मदद से चलने वाले कापरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने बतायी है। हालांकि लंबे समय से सुर्खियों में छाए 2015 में हुए पेरिस समझौते का मकसद था कि औद्योगिक क्रांति से पूर्व के धरती के औसत तापमान को आधार रेखा मानकर उसके सापेक्ष ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 -2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है। इस ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री को छू लेने की वजह से मौसम की भयावह घटनाएं पेश आ रही हैं।

भारत में मौसम की भयावह घटनाओं में वृद्धि का पैमाना हर गुजरते साल के साथ नई ऊंचाई छू रहा है। साल 2023 की शुरुआत अगर सर्दी की जगह अधिक गर्मी के साथ हुई, तो फरवरी में तापमान ने 123 साल पुराना कीर्तिमान ध्वस्त कर दिया। आगे पूर्वी और मध्य भारत में अप्रैल और जून में उमस भरी गर्मी की संभावना जलवायु परिवर्तन के कारण 30 गुना अधिक हो गई थी। उसी दौरान चक्रवात बिपरजाय अरब सागर में 13 दिनों तक सक्रिय रहा और लगभग दो हफ्तों की इस सक्रियता के चलते साल 1977 के बाद सबसे लंबी अवधि का चक्रवात बन गया।

जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून के तौर-तरीके में बदलाव आया है। भूमि और समुद्र दोनों के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे हवा में लंबे समय तक नमी बनाए रखने की क्षमता बढ़ गई है। इस प्रकार, भारत में बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं में जलवायु परिवर्तन की भूमिका हर गुजरते साल के साथ मजबूत होती जा रही है। यह हालत सिर्फ भारत ही की नहीं हैं, बल्कि पूरी दुनिया की कमोबेश यही स्थिति है।

जहां 220 करोड़ की आबादी वाले चीन के बेजिंग का शहर तापमान जून में 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा है। वहीं अमरीका में गर्म थपेड़ों ने लोगों को तड़पा दिया। कैनेडियन इंटर एजंसी फारेस्ट फायर सेंटर (सीआइएफएफसी) के अनुसार, कनाडा में इस साल अब तक 2,392 बार जंगल में आग लगी हैं और 4.4 मिलियन हेक्टेयर का इलाका जल चुका है, जो पिछले दशक के वार्षिक औसत से लगभग 15 गुना अधिक है। उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों का तापमान इस महीने मौसमी औसत से लगभग 10 डिग्री सेल्सियस ऊपर था।

जंगल की आग के धुएं ने कनाडा और अमेरिकी पूर्वी तट को खतरनाक धुंध में ढंक दिया, जिसमें 160 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन का अनुमान लगाया गया था। स्पेन, ईरान और वियतनाम में भी अत्यधिक गर्मी दर्ज की गई है, जिससे यह भय बढ़ गया है कि पिछले साल की जानलेवा गर्मी आम घटना बन सकती है। इसके लिए विशेषज्ञ ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

यूं तो पहले भी चरम मौसम की घटनाएं हुई हैं, लेकिन 2023 एक अनोखा वर्ष रहा है। अल नीनो ने आकार ले लिया है और यह वैश्विक तापमान को बढ़ा रहा है। अगली वजह है जंगल की आग जो कि इस बार तीन गुना बड़े क्षेत्रों में लगी है। इसका मतलब वायुमंडल में भी जंगल की आग से तीन गुना कार्बन उत्सर्जित हो रहा है और जमा हो रहा है।

तीसरी वजह है उत्तरी अटलांटिक महासागर का गर्म अवस्था में होना। चौथा कारण है जनवरी के बाद से अरब सागर असाधारण रूप से गर्म हो गया है, जिससे उत्तर-उत्तर-पश्चिम भारत में अधिक नमी आ गई है। पांचवीं वजह- ऊपरी वायुमंडल में हवा का बदला हुआ सर्कुलेशन जिसके चलते धरती की सतह के ठीक ऊपर के सर्कुलेशन पर असर डाल रहा है। इसके चलते उत्तर और मध्य भारत में बारिश भीषण बारिश हो रही है।