भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने गुरुवार को कहा कि भारत की सरकार मेडिकल सेक्टर पर तत्काल ध्यान नहीं दे रही है। उन्होंने कहा कि किसी और की विफलता की सज़ा अंततः चिकित्सा कर्मियों को भुगतनी पड़ती है। वर्ल्ड डॉक्टर डे के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा चिकित्सा संस्थानों और सरकार की संबंधित एजेंसियों को अपने प्रमुखों को आगे लाना चाहिए और इस विषय पर खुलकर बात करनी चाहिए। तभी हम अपने डॉक्टरों को 1 जुलाई (डॉक्टर्स डे) को खुश कर सकते हैं।
जस्टिस रमण ने कहा, ‘बहुत दुख की बात है कि ड्यूटी के वक्त हमारे डॉक्टरों पर हमले होते हैं। डॉक्टर किसी और की विफलता की सज़ा भुगत रहे हैं।’ उन्होंने डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की कमी का मुद्दा उठाते हुए कहा कि सरकार इस सेक्टर को प्राथमिकता नहीं दे रही है। यहां तक कि फैमिली डॉक्टर का कॉन्सेप्ट भी धीरे-धीरे ख़त्म हो रहा है। कॉर्पोरेट और निवेशक जो फायदा उठाते हैं उसके लिए डॉक्टरों को क्यों दोष दिया जाता है?
अयोध्या मामले की भी सुनवाई कर चुके हैं जस्टिस रमण
एक दिन पहले ही सीजेआई ने कहा था कि चुनाव किसी को उत्पीड़न से मुक्ति नहीं दिला सकते। उन्होंने न्यायपालिका में ‘सरकारी’ दखल को लेकर भी चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था, चुनाव तो 1947 के बाद से हो रहे हैं, लेकिन सरकार बदलना इस बात की पुष्टि नहीं करता कि आपको उत्पीड़न से मुक्ति मिल जाएगी। लोकतंत्र के असली मायने समझाते हुए उन्होंने कहा था कि सबका आत्मसम्मान बना रहना लोकतंत्र में सबसे ज़रूरी है।
जस्टिस रमण ने सोशल मीडिया का जजों पर प्रभाव को लेकर भी बात की और कहा कि बाहरी प्रभाव से न्यायिक सिस्टम को बचना चाहिए। जो बातें सोशल मीडिया पर जोर-शोर से उठाई जाती हैं, ज़रूरी नहीं हैं कि वह सच या सही हो। इसलिए अदालत को बाहरी दबावों से मुक्त होना चाहिए।
कोरोना को लेकर भी उन्होंने चिंता जताते हुए कहा था कि यह संकट कई दशकों तक का असर छोड़ सकता है। ऐसे में हमें एक मिनट रुककर यही सोचना चाहिए कि हमने किसी के लिए क्या किया। हमें आगे भी लोगों की मदद का प्रयास करना चाहिए।