सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आंध्र प्रदेश के एक जोड़े के बीच सुलह कराई जो कि पिछले 21 सालों से कड़वी कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। मामले में पत्नी ने जेल की अवधि बढ़ाने की मांग करने वाली अपनी याचिका वापस ले ली है। बता दें कि पत्नी ने पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया था।

चीफ जस्टिस एन वी रमना, बेंच की अध्यक्षता कर रहे थे, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल थे, बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बातचीत की और पति-पत्नी के बीच सुलह के लिए विशेष प्रयास किए। चूंकि महिला शीर्ष अदालत की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी बोलने में सहज नहीं थी, CJI ने तेलुगु में बातचीत की और साथी जज को अपने बयान भी बताए। अदालत ने महिला को बताया, “अगर आपका पति जेल जाता है तो आपको मासिक मुआवजा बंद हो जाएगा क्योंकि वह अपनी नौकरी खो देगा।” गुंटूर जिले में एक राज्य सरकार के कर्मचारी पति की ओर से पेश वकील डी रामकृष्ण रेड्डी ने कहा कि सीजेआई ने तेलुगु में महिला को कानूनी स्थिति के बारे में बताया और स्पष्ट किया कि जेल की अवधि बढ़ाने से किसी को भी मदद नहीं मिलेगी।

रेड्डी ने सीजेआई के हवाले से कहा, “अगर हम जेल की अवधि बढ़ाते हैं तो आपको क्या फायदा होगा… आपको मासिक मुआवजा छोड़ना पड़ सकता है।” महिला ने सीजेआई की सलाह को धैर्यपूर्वक सुना और तुरंत अपने पति के साथ रहने के लिए तैयार हो गई, बशर्ते कि उसका और उनके इकलौते बेटे का पालन-पोषण उसके पति द्वारा ठीक से किया जाए।

शीर्ष अदालत ने तब दोनों पति-पत्नी को दो सप्ताह में अलग-अलग हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा कि वे एक साथ रहना चाहते हैं। पत्नी अब अपने पति के खिलाफ दहेज उत्पीड़न के मामले को वापिस लेगी साथ ही अदालत से तलाक की अपनी याचिका भी वापस लेगी।

मालूम हो कि IPC की धारा 498A के तहत दहेज उत्पीड़न का अपराध केवल आंध्र प्रदेश में एक कंपाउंडेबल अपराध है और शेष भारत में, पार्टियां ऐसे मामलों को अपने दम पर सुलझा नहीं सकती हैं।

बता दें कि शीर्ष अदालत आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ महिला की अपील पर सुनवाई कर रही थी।इससे पहले निचली अदालत ने 2002 में पति को आईपीसी की धारा 498ए (दहेज प्रताड़ना) के तहत दोषी ठहराया था और जुर्माना लगाने के अलावा एक साल की जेल की सजा सुनाई थी।

इस जोड़े ने 1998 में शादी कर ली थी और उनके रिश्ते में खटास आ गई, जिसके कारण 2001 में महिला ने आपराधिक मामला दर्ज किया।