सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के एक समारोह में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने एक अनूठा किस्सा सुनाया। दरअसल वो अपने स्कूली दिनों की कहानी बता रहे थे। कैसे एक दिन उनसे स्कूल की असेंबली में तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का नाम पूछा गया था।
चंद्रचूड़ ने बताया कि उस समय भारत के प्रधान न्यायाधीश उनके पिता वाईवी चद्रचूड़ थे। शिक्षक ने पूछा तो उन्होंने अपने पिता का नाम बताया। समारोह में चंद्रचूड़ ने ये भी कहा कि उस समय उन्हें नहीं पता था कि कभी वो डॉ. जस्टिस डीवाई चंद्रचड़ के तौर पर भी जाने जाएंगे।
72 घंटे में दो जजों की नियुक्ति से दिखी कॉलेजियम की अहमियत
समारोह में सीजेआई ने कॉलेजियम की अहमियत को तफसील से बताया। जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कॉलेजियम की सिफारिश के 72 घंटे के भीतर दोनों की नियुक्ति पर सरकार ने मुहर लगाई। चंद्रचड़ का कहना था कि ये दिखाता है कि कॉलेजियम न केवल काम कर रहा है बल्कि पूरी शिद्दत से। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के मामले में सरकार भी एक पक्ष है। जिस तरह से दोनों न्यायाधीशों को पलक झपकते ही नियुक्ति मिली उसने सारे देश को दिखाया कि कॉलेजियम बेहतरीन तरीके से काम कर रहा है।
बार से आने वाले जज जिंदगी की हकीकत को ज्यादा बेहतर समझते हैं
सीजेआई ने जजों की नियुक्ति को लेकर अपने अनुभवों को और ज्यादा साझा किया। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के साथ हाईकोर्ट्स में अक्सर जो जज बनते हैं वो दो जगह से होते हैं। एक वो होते हैं जिन्हें बार से सीधे जज बनने का मौका मिलता है। ऐसे जजों से हमें कुछ नया सीखने को मिलता है। दूसरे जज वो होते हैं जो जिला अदालतों में काम करके हाईकोर्ट्स और फिर सुप्रीम कोर्ट का हिस्सा बनते हैं। ये एक विरासत को दिखाते हैं।
चंद्रचड़ का कहना था कि बार से आने वाले जज जीवन की हकीकत को कुछ ज्यादा ही बेहतर तरीके से समझते हैं। उनका कहना था कि जो भी जज सुप्रीम कोर्ट आता है वो एक सम्मान का हकदार होता है। यहां आने वाला हर जज एक आत्मीयता का बोध लेकर आता है। ये एक बेहतरीन बात है।