CJI Chandrachud: देश की सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश यानी सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल आज खत्म हो रहा है। देश के अगले सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना होंगे। डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल काफी दिलचस्प रहा है, क्योंकि उनका कार्यकाल करीब दो साल का रहा है। वहीं आज अपने लास्ट वर्किंग डे पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर फैसला सुनाया और विश्वविद्यालय के माइनॉरिटी स्टेटस को बरकरार रखा है।

सीजेआई की अध्यक्षता वाली 7 जजों की बेंच ने 4-3 के वोट से फैसला सुनाया है। इस संवैधानिक बेंच में सीजेआई के अलावा अगले सीजेआई जस्टिस खन्ना, सूर्यकांत, जेबी पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे। बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनके प्रशासन का अधिकार है।

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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के बड़े फैसले

आज सीजेआई चंद्रचूड़ का कार्यकाल खत्म हो गया है लेकिन अपने कार्यकाल में उन्होंने कई बड़े फैसले सुनाए हैं, जो कि भविष्य की अदालती कार्यवाही में एक नजीर बनने वाले हैं आइए जानते हैं कि वे फैसले कौन-कौन से हैं।

राम मंदिर फैसले वाली संवैधानिक बेंच में थे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर को लेकर जारी केस में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया था उसकी 5 जजों की संवैधानिक बेंच में एक जज जस्टिस चंद्रचूड़ भी थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण शुरू हुआ, जहां इसी साल 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी।

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इलेक्टोरल बॉन्ड का खात्मा

भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत राजनीतिक दलों की फंडिंग के लिए की थी। इस व्यवस्था के माध्यम से बीजेपी, कांग्रेस समेत सभी दलों ने करोड़ों रुपये हासिल किए थे लेकिन चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने इसे खारिज कर दिया था। बेंच का कहना था कि यह व्यवस्था पारदर्शी नहीं है। इसके चलते इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था का अस्तित्व ही खत्म हो गया था।

समलैंगिक विवाह पर बताया था रुख

भारत में भी समलैंगिक विवाह की मांग उठती रही है। इस अहम मामले की सुनवाई भी चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने की थी। उनकी बेंच ने समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने से इनकार करते हुए कहा था कि इस पर फैसला हम संसद पर छोड़ते हैं। यदि भविष्य में समाज को लगता है कि ऐसा करना जरूरी है तो वह फैसला लेगा।

आर्टिकल 370 की मांग पर लंबी सुनवाई

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के लिए खिलाफ दायर याचिकाओं पर भी चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने लंबी सुनवाई की थी। अदालत ने आर्टिकल 370 हटाने को संविधान के तहत ही माना था। इस केस में चीफ जस्टिस ने कहा था कि जजों ने संविधान और कानून के दायरे में रहकर ही फैसला लिया है।

दिल्ली बनाम केंद्र सरकार पर बड़ा फैसला

दिल्ली सरकार के प्रशासन और अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर विवाद एवं अंतिम निर्णय किसका मान्य होगा? इसको लेकर दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच लंबे वक्त तक टकराव रहा था। इसे लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में लंबी सुनवाई हुई थी। इस पर अदालत ने कहा था कि ऐसे मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार को ही फैसले का अधिकार है, जो उसके दायरे में आते हैं।

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धर्म बदलने को बताया था निजता का अधिकार

केरल के मशहूर हादिया मैरिज केस में फैसला सुनाने वाली बेंच का भी जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ हिस्सा थे। बेंच का कहना था कि यदि कोई युवती बालिग है तो यह उसका अधिकार है कि वह किससे विवाह करे। इसके अलावा यदि उसने अपना धर्म मर्जी से बदल लिया है तो उस पर भी कोई आपत्ति नहीं कर सकता। अदालत ने धर्म बदलने को निजता का अधिकार करार दिया था।

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर फैसला

केरल की प्रतिष्ठित सबरीमाला मंदिर में रजस्वला स्त्रियों के प्रवेश पर रोक के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट की जिस बेंच ने फैसला दिया था, उसमें चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शामिल थे। चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए अपनी राय दी थी कि यह ऐसा करना असंवैधानिक है। संविधान के कई अनुच्छेद इसे वर्जित करते हैं और इस तरह की प्रैक्टिस जारी रखना गलत है।

कॉलेजियम पर अहम थी चंद्रचूड़ की राय

राष्ट्रीय न्यायिक आयोग बनाम कॉलेजियम की बहस को लेकर भी चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का कहना था कि कॉलेजियम की व्यवस्था पूरी तरह से पारदर्शी है। उनका कहना था कि हमने ऐसे कदम उठाए हैं कि कॉलेजियम का सिस्टम पारदर्शी रहे। उनका कहना था कि हम किसी जज को सुप्रीम कोर्ट में

वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न पर क्या बोला था SC

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को लेकर भी फैसला सुनाया था। बेंच का कहना था कि ऐसा होना महिलाओं के मौलिक अधिकार का हनन है। अदालत ने कहा था कि इससे महिलाएं कैसे कामकाज के लिए प्रोत्साहित हो सकेंगी।