CJI DY Chandrachud: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने बार एसोसिएशन की तरफ से आयोजित विदाई भाषण में अपने डीयू के दिनों को भी याद किया। उन्होंने कहा कि पिता की सलाह के बाद ही दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक वैकल्पिक सब्जेक्ट (subsidiary subject) हिंदी को चुना था। सीजेआई ने कहा कि मेरे ज्यादातर दोस्त फिलॉसफी ले रहे थे, जो एक ऐसा सब्जेक्ट था जिसे आप एक शाम पढ़कर पास कर सकते थे। लेकिन मेरे पिता ने मुझसे हिंदी विषय लेने के लिए बोला। मैं केवल बंबईया हिंदी को जानता था। उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए काफी मुश्किल भरा फैसला था।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन्हें हिंदी सीखने के दौरान महादेवी वर्मा, जयशंकर त्रिपाठी, निराला, रामधारी सिंह दिनकर और मुंशी प्रेमचंद जैसे महान लेखकों की रचनाओं के बारे में जानकारी हुई। लगभग 30 साल बाद, जब मुझे इलाहाबाद हाई कोर्ट जाना था तो मुझे एहसास हुआ कि यह कितना जरूरी थी। अक्सर इंग्लिश में एडवोकेसी प्लीज, योर लॉर्डशिप पर खत्म होती है।

उन्होंने कहा कि वकीलों को मेरी भाषा की कमजोरियों का अच्छी तरह से पता था, लेकिन उन्हें लगा कि मैं उन तक एक ऐसी भाषा में पहुंचा हूं जो उनके दिल के करीब है। यह उन सबकों में से एक है जो मैंने सीखा है, उन क्षेत्रों में लोगों तक पहुंचने की कोशिश करना जो उनके जीवन में बदलाव लाते हैं।

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पुणे में फ्लैट वाला एक किस्सा भी सुनाया

सीजेआई ने पुणे में फ्लैट वाला भी एक किस्सा सुनाया। इसमें उन्होंने बताया, ‘उन्होंने (पिता वाईवी चंद्रचूड़) पुणे में एक छोटा सा फ्लैट खरीदा था। मैंने उनसे पूछा, ‘आप पुणे में फ्लैट क्यों खरीद रहे हैं? आप वहां कब रहने वाले हैं?’ उन्होंने मुझसे कहा, ‘मुझे पता है कि मैं वहां कभी नहीं रहने वाला। मुझे नहीं पता कि मैं आपके साथ कब तक रहूंगा। लेकिन जज के तौर पर अपने कार्यकाल के आखिरी दिन तक इस फ्लैट को अपने पास रखिए।’

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मैंने पूछा कि ऐसा क्यों है। उन्होंने कहा, ‘अगर आपको लगता है कि आपकी नैतिक ईमानदारी या बौद्धिक ईमानदारी से समझौता किया गया है, तो मैं आपको बताना चाहता हूं कि आपके सिर के ऊपर छत है। कभी भी खुद को वकील या जज के तौर पर समझौता करने की इजाजत न दें क्योंकि आपके पास अपना कोई ठिकाना नहीं है।’

सीजेआई का नाम धनंजय क्यों रखा

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस कार्यक्रम में सीजेआई के परिवार के लोग भी शामिल हुए। अपनी मां को याद करते हुए उन्होंने कहा कि जब मैं बचपन में बीमार रहता था तो मुझे ठीक करने के लिए मेरी मां रात-रात भर जागा करती थीं। उन्होंने आगे कहा कि जब मैं बड़ा हो रहा था तो उन्होंने मुझसे कहा था, ‘मैंने तुम्हारा नाम धनंजय रखा है, लेकिन ‘धन’ का मतलब भौतिक संपत्ति नहीं है, मैं चाहती हूं कि तुम ज्ञान अर्जित करो।’