देश में न्यायाधीशों और आबादी के बीच के अनुपात के कम रहने पर एक बार फिर चिंता जताते हुए प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) टीएस ठाकुर ने रविवार (8 मई) को कहा कि न्याय तक पहुंच एक मौलिक अधिकार है और सरकार लोगों को इससे वंचित नहीं कर सकती। हाल ही में नई दिल्ली में एक सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में इस मुद्दे पर भावुक हो जाने वाले प्रधान न्यायाधीश ने एक बार फिर यह मुद्दा उठाया। वह यहां हाई कोर्ट की सर्किट पीठ के शताब्दी समारोहों के मौके पर जानेमाने कानून विशेषज्ञों को संबोधित कर रहे थे।
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जस्टिस ठाकुर ने कहा कि एक ओर हम (न्यायपालिका) यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जजों की नियुक्ति जल्दी हो लेकिन नियुक्ति की प्रक्रिया से जुड़ी मशीनरी काफी धीमी गति से काम कर रही है। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट में नियुक्त के लिए करीब 170 प्रस्ताव अभी सरकार के पास लंबित हैं। उन्होंने कहा कि यह मामला हाल ही में प्रधानमंत्री के संज्ञान में लाया गया और यह अनुरोध किया गया कि नियुक्तियां जल्दी हों। उन्होंने कहा कि लोगों को न्याय से वंचित नहीं रखा जा सकता। उन्होंने कहा कि न्याय तक पहुंच एक मौलिक अधिकार है और सरकार लोगों को उनके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं रख सकती।
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जज और आबादी के अनुपात पर ठाकुर ने कहा कि लॉ कमिशन ने 1987 में देश में लंबित मामलों के प्रभावशाली ढंग से निस्तारण के लिए 44 हजार जजों का सुझाव दिया था। इसके बावजूद देश में फिलहाल सिर्फ 18 हजार जज हैं। ठाकुर ने कहा, ”लगातार तीस सालों तक हम कम संख्या में होने के बावजूद काम करते रहे। अगर आप बढ़ी हुई आबादी की बात करें तो हमें लंबित केसों को निपटाने के लिए 70 हजार जजों की जरूरत है।”
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इस मौके पर सम्मानित अतिथियों में से एक ओड़ीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा कि उनकी सरकार राज्य में न्यायिक बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए पर्याप्त वित्तीय मदद दे रही है। हम ओड़ीशा में न्याय मुहैया कराने की प्रणाली को विकसित करने और मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। सुप्रीम कोर्ट के कम से कम दस न्यायाधीश और कोलकाता, पटना और झारखंड हाई कोर्ट के कई न्यायाधीश इस शताब्दी समारोह में शामिल हो रहे हैं।