सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का मानना है कि जजों को सोशल होना चाहिए। ये जरूरी है कि समाज से उनका जुड़ाव हो। ऐसा होने पर जो जजमेंट वो देते हैं वो कहीं ज्यादा सार्थक होते हैं। उनका कहना था कि जब कानून में सिद्धांतों का इस्तेमाल नहीं किया जाता तो वो फैसलों में साफ दिख जाता है। सीजेआई का कहना था कि हम सारे जज और वकील इस देश के सामान्य नागरिकों के जैसे ही हैं। संविधान हम सभी को सही रास्ता दिखाता है।
सीजेआई ने कहा कि संविधान में स्वतंत्रता, बराबरी जैसे मुद्दों पर जो प्रावधान किए गए हैं, वो हमारे देश को एक सूत्र में बांधते हैं। उनका कहना था कि इमरजेंसी के काले दौर में भी गुवाहाटी हाईकोर्ट ने जिस तरह का काम किया वो काबिले तारीफ था। सीजेआई का कहना था कि वो दौर ऐसा था जिसमें टफ जजों को भी टफ चीजों से दो-चार होना पड़ा। लेकिन उन्होंने कानून को जिंदा रखने के लिए किसी तरह का समझौता नहीं किया।
सीजेआई ने बताया, कैसे राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने दिखाया रास्ता
गुवाहाटी हाईकोर्ट के प्लेटिनम जुबली समारोह में सीजेआई ने उस लम्हे को याद किया जब राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने पिछले संविधान दिवस के मौके पर जूडिशरी को एक रास्ता दिखाया था। राष्ट्रपति ने कहा था कि समाज के सबसे कमजोर तबके को न्याय उपलब्ध कराना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। सीजेआई ने कहा कि उनकी बातों को सुनने के बाद हमें रास्ता दिखा और इस तरफ काफी काम किया गया।
सीजेआई का कहना था कि असम हमेशा किसी न किसी प्राकृतिक आपदा से जूझता रहता है। बाढ़ की समस्या यहां हर साल आती है। लोगों के दस्तावेज तक गुम हो जाते हैं। उन्हें मदद की दरकार होती है। सीजेआई ने माना कि गुवाहाटी हाईकोर्ट हर साल बहुत से ऐसे फैसले देता है जो आपदाओं के शिकार लोगों की मदद के लिए होते हैं। हमें इस बात को समझना चाहिए कि उनकी मदद करना सबसे बड़ा काम है। वो आपदा के मारे हैं। अपने घर से बेघर हो जाते हैं। उनको न्याय दिलाना हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए।
कानून और प्रशासनिक अड़ंगे में उलझकर लोग परेशान न हों
डीवाई चंद्रचूड़ का कहना था कि जूडिशरी को चाहिए कि वो देखे कि कानून और प्रशासनिक अड़ंगे में उलझकर लोग परेशान न हों। कानून का इस्तेमाल इस तरीके से किया जाना चाहिए जिससे वो समस्या को जड़ से खत्म करे। पीड़ित पक्ष को उसका हक दिलाने का काम करे।