भारत में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) एक अक्तूबर को अपनी स्थापना के 100वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। ब्रिटिश काल से चले आ रहे आयोग द्वारा आयोजित कराई जाने वाली प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा (सीएसई) में कई बदलाव हुए। इन बदलावों के लिए कई समितियां बनाई गईं जिनकी सिफारिशों पर यह बदलाव हुए। वर्तमान में सीएसई में प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार होता है लेकिन सीएसई हमेशा से इस तरीके से आयोजित नहीं होती थी। 1979 से पहले इस परीक्षा के लिए कोई प्रारंभिक परीक्षा नहीं होती थी।
देश के स्कूली शिक्षा सचिव रहे अनिल स्वरूप ने बताया कि कोठारी आयोग की सिफारिश के बाद वर्ष 1979 में सीएसई में बड़े बदलाव हुए। उन्होंने बताया कि इससे पहले भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) और भारतीय वन सेवा (आइएफएस) के लिए पांच पेपर देने होते थे। इनमें हायर के दो और लोअर तीन पेपर होते थे।
1979 में बदलाव के बाद प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा की शुरूआत हुई
भारतीय पुलिस सेवा के लिए लोअर के दो पेपर देने होते थे जबकि अन्य केंद्रीय सेवाओं के लिए लोअर के तीन पेपर होते थे। वर्ष 1979 में परीक्षा में हुए बदलाव के बाद परीक्षा देने वाले स्वरूप ने बताया कि इसके बाद से परीक्षा में प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा की शुरूआत हुई, जो अभी भी जारी है। साक्षात्कार तो पहले भी होता था लेकिन इस बदलाव में उसके भार को कम किया गया। स्वरूप ने बताया कि इसके साथ ही भाषा को लेकर भी बदलाव हुआ। बदलाव के बाद अंग्रेजी के अलावा भारतीय भाषाओं में भी परीक्षा होने लगी। इसकी वजह से पहले जहां प्रयागराज या दिल्ली के ही उम्मीदवारों का परीक्षा में वर्चस्व होता था, बाद में पूरे देश से उम्मीदवारों का चयन होने लगा।
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पहले जो परीक्षा केवल संभ्रांत वर्ग के लोगों तक ही सीमित थी, उस परीक्षा में सभी वर्गों के उम्मीदवार चयनित होने लगे। उन्होंने बताया कि परिवर्तन काफी हुए हैं और मैं समझता हूं ये ठीक भी है। जैसे-जैसे व्यवस्था परिवर्तित हो रही है वैसे-वैसे परीक्षा में भी परिवर्तन होना चाहिए। मेरा ये मानना है कि इसमें और अधिक परिवर्तन होना चाहिए। मेरा अभी भी मानना है कि आइएएस और आइपीएस की परीक्षा अलग-अलग होनी चाहिए। पहले अलग होती थी। अब सब को जोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि अपने 38 साल के अनुभव के आधार पर कह रहा हूं कि आइएएस के लिए जो गुण चाहिए, वह आडिट अकाउंट्स आफिसर के लिए जरूरी गुणों से बिल्कुल अलग होते हैं। आप एक ही परीक्षा से दोनों का चयन नहीं कर सकते। वर्ष 2011 में सीएसई में सिविल सेवा योग्यता परीक्षा (सीएसएटी) शामिल किया गया।
2015 में सीएसएटी योग्यात्मक बना दिया
इसमें गणित, तर्कशक्ति और अंग्रेजी समझ जैसे सवाल पूछे जाते थे। इसका मकसद था उम्मीदवारों की क्षमता और अभिव्यक्ति जांचना। हिंदी माध्यम और मानविकी विषय पढ़ने वाले विद्यार्थियों को लगा कि यह बदलाव उनके साथ नाइंसाफी है। इसके खिलाफ विरोध की शुरूआत धीरे-धीरे हुई और 2014 तक दिल्ली के मुखर्जी नगर में यूपीएससी के इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन देखने को मिला। इस आंदोलन के बाद सरकार ने 2015 में सीएसएटी योग्यात्मक बना दिया। अब इस पेपर में उम्मीदवारों को 33 फीसद अंक लाने होते हैं और योग्यता सूची में इन अंकों को शामिल नहीं किया जाता है। योग्यता सूची के लिए सामान्य अध्ययन पेपर एक के अंकों को ही जोड़ा जाता है।