Bihar Assembly Elections 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए माहौल पूरी तरह बन चुका है। इस बार के चुनाव में जेडीयू-बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए और राजद-कांग्रेस की अगुवाई वाले महागठबंधन के बीच जोरदार मुकाबला तय माना जा रहा है लेकिन इस चुनावी समर में छोटे राजनीतिक दलों की भी भूमिका अहम है।

इन राजनीतिक दलों में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की पार्टी जान सुराज पार्टी भी शामिल है।

जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है, बड़े राजनीतिक दलों के अलावा इन छोटे दलों के प्रदर्शन को लेकर भी बात होने लगी है। हमें यहां पर 2020 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को भी देखना होगा। उस विधानसभा चुनाव में 11 सीटों पर 1 हजार वोटों से भी कम और 26 सीटों पर एक से ढाई प्रतिशत के अंतर से हार-जीत का फैसला हुआ था।

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पिछले विधानसभा चुनाव में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर), लोक जनशक्ति पार्टी, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा, AIMIM और पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी ने भी कुछ सीटों पर चुनाव लड़ा और इससे चुनाव मुकाबले पर भी असर पड़ा।

पासवान मतदाताओं में असरदार हैं चिराग

छोटे राजनीतिक दलों में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) तेजी से उभर रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में इसका प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा। दलित समुदाय से आने वाले चिराग पासवान वैशाली, जमुई, खगड़िया, समस्तीपुर और बेगूसराय की लोकसभा सीटों में पासवान जाति के लोगों के बीच जाना-पहचाना चेहरा हैं। बिहार के दलित समुदाय में पासवान जाति की आबादी 5.31 प्रतिशत है। चिराग पासवान का नारा ‘बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट’ का है।

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इसके अलावा केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी भी दलित समुदाय से आते हैं और एनडीए के लिए चुनाव में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। मांझी का दलित समुदाय की मुसहर जाति के बीच प्रभाव है। दलित समुदाय में इस जाति की आबादी 3.08% है।

इसी तरह निषाद जाति के नेता और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री मुकेश सहनी की पार्टी VIP भी कुछ जगहों पर असर रखती है। मल्लाह जाति के मतदाता दरभंगा, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, सीतामढ़ी और मधुबनी में नदी के किनारे वाले इलाकों में अच्छी संख्या में हैं। सहनी इस बार निषाद, केवट और मल्लाह समाज में आने वाली अन्य जातियों को साथ लेकर महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं।

‘बिहार बदलाव यात्रा’ से पीके ने नापा बिहार

बिहार की राजनीति में एक बड़ी चर्चा प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की भी है। 2024 में बिहार में चार सीटों पर उपचुनाव हुए और इसमें पार्टी को लगभग 10% वोट मिले। एक सीट इमामगंज में इसे 20% तक वोट मिले। प्रशांत किशोर ने ‘बिहार बदलाव यात्रा’ के जरिए पूरे राज्य का दौरा किया है और वह लगातार लोगों से मिल रहे हैं। अपने भाषणों में प्रशांत किशोर बिहार की राजनीतिक व्यवस्था को बदलने की अपील करते हैं।

AIMIM लगाएगी RJD के मुस्लिम वोटर्स में सेंध?

इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली AIMIM ने पहली बार बिहार में 2020 में चुनाव लड़ा और पांच सीटें जीती। इनमें से अधिकतर सीटें मुस्लिम समुदाय की बड़ी आबादी वाले सीमांचल क्षेत्र में थीं। एआईएमआईएम का किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार में प्रभाव है और इससे आरजेडी को मुस्लिम वोटर्स के मामले में चुनौती मिल रही है। बीजेपी यहां “घुसपैठियों” के खिलाफ अभियान चला रही है।

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सांसद राजेश रंजन उर्फ ​​पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) का पूर्णिया, मधेपुरा, सुपौल, अररिया, कटिहार और किशनगंज के कुछ हिस्सों में असर है तो पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) की काराकाट, बक्सर, नालंदा और जहानाबाद में कुशवाह/कोइरी मतदाताओं (राज्य की आबादी का 4.27 प्रतिशत) के बीच मौजूदगी बरकरार है। यह भी एनडीए की प्रमुख सहयोगी है।

देखना होगा कि यह तमाम छोटे राजनीतिक दल क्या बिहार के चुनाव में किंग मेकर बनेंगे?

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