सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार से कहा कि सशस्त्र बलों में अतिरिक्त रिक्तियों का सृजन किया जाए क्योंकि जवान अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ हिस्सा राष्ट्र को समर्पित करते हैं। न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाले पीठ ने सेना की कमान में पदोन्नति की मौजूदा नीति निरस्त करने के सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ रक्षा मंत्रालय की अपील पर सुनवाई पूरी करते हुए यह टिप्पणी की।

न्यायाधिकरण ने इस नीति को निरस्त करते हुए कहा था कि इससे संविधान के अनुच्छेद 14 में प्रदत्त समता के अधिकार का उल्लंघन होता है। अदालत इस मामले में बाद में अपना निर्णय सुनाएगी। पीठ ने सुनवाई पूरी करते हुए कहा- आप यह देखिए कि बड़ी संख्या में रिक्तियां हैं। उन्हें अतिरिक्त रिक्तियां प्रदान कीजिए। वे अपनी जिंदगी का सर्वश्रेष्ठ हिस्सा सेवाओं के लिए देते हैं।

सुनवाई के अंतिम क्षणों में एक वकील ने पीठ से कहा कि सेना में उच्च स्तर पर करीब दस हजार रिक्तियां हैं। केंद्र की ओर से अतिरिक्त महान्यायवादी मनिन्दर सिंह ने कहा कि सरकार कर्नल और उससे ऊपर के रैंक के सैन्य अधिकारियों के लिए 141 अतिरिक्त रिक्तियों का सृजन करने पर तैयार हो गई है और ये आने वाले समय में अधिकारियों के लिए उपलब्ध होंगी।

कुछ सैन्य अधिकारियों की ओर से मीनाक्षी लेखी ने आरोप लगाया कि सेना में पैदल सेना का वर्चस्व हो गया है क्योंकि 2009 की पदोन्नति नीति का मकसद पैदल सेना के अधिकारियों को महत्व देना और अन्य डिवीजनों के अधिकारियों के साथ भेदभाव करना है। इससे पहले शीर्ष अदालत ने सरकार से कहा था कि सेना में बखतरबंद कार्प्स, इंजीनियरिंग, पैदल सेना और तोप खाने जैसे विभिन्न प्रकोष्ठों के कर्नल और उससे ऊंचे पदों के सैन्य अधिकारियों की पदोन्नति में ‘बैच समानता’ के मामले में वस्तुस्थिति से अवगत कराया जाए।

केंद्र ने सेना की मौजूदा कमान पदोन्नति नीति का समर्थन किया था और कहा था कि चुनिंदा प्रकोष्ठों के सैन्य अधिकारियों को पदोन्नति के मामले में ‘युद्धक महत्व’ दिया गया था और इस पर कभी विवाद नहीं हुआ। पीठ ने रक्षा मंत्रालय की अपील पर सुनवाई के दौरान 25 मार्च को सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के दो मार्च के फैसले पर रोक लगा दी थी। कुछ सैन्य अधिकारियों ने दावा किया था कि नई पदोन्नति नीति से उन पर प्रतिकूल असर पड़ा है क्योंकि यह नीति सेना के अन्य प्रकोष्ठों की तुलना में पैदल सेना और तोपखाने के पक्ष में ‘मनमाना’ है।

इससे पहले अदालत ने रक्षा मंत्रालय को सशस्त्र बल न्यायाधिकरण में मामला ले जाने वाले सैन्य अधिकारियों के तर्को पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। लेफ्टिनेंट कर्नल पीके चौधरी सहित अनेक अधिकारियों का कहना था कि पक्षपातपूर्ण इस पदोन्नति की वजह से कर्नल और उससे ऊपर के रैंक के सभी अधिकारी प्रभावित होंगे। इनका कहना था कि 2009 की पदोन्नति नीति के कारण सेना के चुनिंदा प्रकोष्ठों के अधिकारियों को पदोन्नति में प्राथमिकता मिल रही है, इसलिए इसे निरस्त किया जाना चाहिए। दूसरी ओर सरकार ने अपनी अपील में पदोन्नति नीति को न्यायोचित ठहराते हुए कहा था कि नियोक्ता होने के नाते सेना को अपनी पदोन्नति अपनाने का अधिकार है और सशस्त्र बल न्यायाधिकरण को नीतिगत फैसले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था।