चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग ने सैन्‍य तैयारियों को रफ्तार देने की दिशा में बड़ी घोषणा कर भारत की चिंता बढ़ा दी है। ड्रैगन 2020 तक अपनी सेना पीपुल्‍स रिपब्लिक आर्मी (PLA) का पुनर्गठन करेगा, जिससे उसकी पूरी फौज ज्‍वाइंट ऑपरेशनल मिलिट्री कमांड के तहत आ जाएगी। संख्‍या में भारत से दोगुनी 23 लाख सैनिकों वाली चीनी सेना अभी सात मिलिट्री रीजन में बंटी हुई है, लेकिन पुनर्गठन के बाद यह चार स्‍ट्रैटिजिक जोन में बदल दी जाएगी।

चीन का शीर्ष नेतृत्‍व अपनी सेना को सोवियत संघ के स्‍टाइल में संगठित करना चाहता है, लेकिन अपनी सैन्‍य ताकत का प्रभाव वह अमेरिका की तरह पूरी दुनिया में फैलाना चाहता है। पाकिस्‍तान, श्रीलंका, नेपाल, म्‍यांमार और बांग्‍लादेश को बड़े पैमाने पर मदद देकर चीन इन सभी देशों में अपने सैन्‍य ठिकाने बनाना चाहता है, जिससे भारत को चारों ओर घेर सके। इनमें से कई देशों में उसे कामयाबी मिल चुकी है, जबकि कई देशों पर वह नजर गड़ाए बैठा है। एशिया के अलावा अफ्रीकी देशों में चीन तेजी से पैर पसार रहा है। चीन इस समय अदन की खाड़ी में एंटी पायरेसी पेट्रोलिंग कर रहा है और सैन्‍य साजो-सामान के लिए अफ्रीकी देश जिबूती के साथ बात कर रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि चीनी सेना अदन की खाड़ी में पहला मिलिट्री बेस बनाने की गुपचुप तैयारी कर रही है। यदि ऐसा संभव हो पाया तो हिंद महासागर चीन का यह पहला मिलिट्री बेस होगा।

चीन सेना के पुनर्गठन से बॉर्डर पर भारत को मिलेगी कड़ी चुनौती

वास्‍तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत-चीन के बीच करीब 4057 किलोमीटर विवादित क्षेत्र है। इस क्षेत्र में अभी तक भारत की पूर्वी सीमा के करीब चीनी सेना का चेंगदू मिलिट्री रीजन और उत्‍तर में लानझाओ मिलिट्री रीजन पड़ता है। पुनर्गठन के बाद इन दोनों मिलिट्री रीजन की जगह वेस्‍ट कमांड ले लेगा। इस क्षेत्र की पूरी निगरानी इसी एक कमांड के जिम्‍मे रहेगी। इससे चीनी सेना की ताकत और बढ़ जाएगी।

तीनों सेनाओं के बीच तालमेल में भारत रहा है नाकाम

जहां तक भारत की बात है तो वह सेना के तीनों अंगों के बीच बेहतर तालमेल स्‍थापित करने में नाकाम रहा है। 1999 के कारगिल युद्ध में भी यही कमी उभरकर सामने आई थी। 2001 में लालकृष्‍ण आडवाणी के नेतृत्‍व में नेशनल सिक्‍योरिटी सिस्‍टम में बदलाव की बात कही गई थी।

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