कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को संसद में मोदी सरकार पर देश को “कमजोर” करने और पाकिस्तान और चीन को एक साथ लाने का आरोप लगाया। हालांकि आज की स्थिति में भले ही पाकिस्तान और चीन एक दूसरे के काफी करीब देखे जा रहे हों लेकिन एक समय में पाकिस्तान और चीन के बीच विरोध की दीवार थी।

पाक-चीन के बीच दीवार: दरअसल विभाजन के बाद पाकिस्तान ने 1947 के बाद के शुरुआती सालों में चीन के जनवादी गणराज्य को मान्यता दी थी। इसके बाद चीन से 1951 में राजनयिक संबंध भी स्थापित किए थे। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले दो कम्युनिस्ट-विरोधी सैन्य समझौते सीएटो (दक्षिण पूर्व एशिया संधि संगठन) और सेंटो (सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन) के पश्चिमी गठबंधन में पाकिस्तान शामिल हुआ।

इस गठबंधन की सदस्यता के पीछे का कारण यह था कि इसे गैर-सोवियत ब्लॉक के हिस्से के रूप में देखा गया। वहीं दूसरी तरफ माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीन खड़ा था। दरअसल पाकिस्तान का सीएटो और सेंटो में शामिल होने के पीथे वामपंथ को रोकना था। ऐसे में साफ था कि आज जिस हालत में चीन और पाकिस्तान के रिश्ते हैं, पहले विरोधाभासी थे।

हालांकि जहां पाकिस्तान चीन के खिलाफ वाले गठबंधन का हिस्सा था तो वहीं भारत के चीन के साथ कामकाजी संबंध थे। उस दौरान ‘हिंदी-चीनी भाई भाई’ जैसे नारे लगाये जाते थे। दोनों देशों का एक ही उपनिवेश-विरोधी, गुट-निरपेक्ष दृष्टिकोण था।

1962 से बदले भारत चीन के रिश्ते: भारत चीन के बीच रिश्तों में 1962 आते-आते खटास आ गई। और चीन भारत के हिंदी चीनी भाई-भाई के नारे को धता बताते हुए युद्ध छेड़ दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि बीजिंग ने इस्लामाबाद के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करने शुरू कर दिए। बता दें कि 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान को चीन से कूटनीतिक रूप से समर्थन मिला।

वास्तव में विश्लेषकों का मानना है कि 1962 में चीन से भारत को हार मिलने के बाद पाकिस्तान को भारत के खिलाफ आक्रामकता के लिए उकसाया गया था।