दुनियाभर में जनसंख्या विस्फोट को लेकर लंबे समय से बहस जारी है। खासकर चीन और भारत जैसे एशियाई देशों में, जहां की आबादी अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका और ओसियानिया जैसे महाद्वीपों से भी ज्यादा है। चीन में तो 1978 में तत्कालीन राष्ट्रपति डेंग शाओपिंग ने ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ (माता-पिता को एक बच्चा पैदा करने की छूट की नीति) लाकर जनसंख्या बढ़ोतरी पर किसी तरह नियंत्रण लगाने की कोशिश की। लेकिन इसके चलते देश में जन्म दर घटने लगी और बुजुर्ग आबादी में वृद्धि दर्ज की जाने लगी, जिसके बाद चीन को अपने जनसंख्या नियंत्रण के कदमों को वापस लेना पड़ा है। इस बीच चीन के फैसलों से भारत में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की योजनाओं पर सवाल उठने लगे हैं।
बता दें कि चीन में करीब तीन पीढ़ियां ऐसी निकल गई हैं, जहां बच्चों के पास माता-पिता को छोड़कर अपने भाई, बहन, चाचा, मामा या कोई दूसरा सगा रिश्तेदार नहीं रहा। यानी चीन में युवाओं का एक बड़ा तबका धीरे-धीरे खत्म हो गया। इस समस्या को देखते हुए 2016 में चीन ने अपनी नीति में बदलाव किया और पहले लोगों को दो बच्चे पैदा करने (टू चाइल्ड पॉलिसी) की इजाजत दे दी गई। इसके बावजूद 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, चीन की आबादी में 1950 के दशक के बाद पिछले दशक में सबसे धीमी गति पर वृद्धि हुई। अब इसे देखते हुए चीन ने टू चाइल्ड पॉलिसी में भी रियायत दी है और ‘थ्री चाइल्ड पॉलिसी’ लाने का फैसला किया। यानी युवाओं की संख्या बढ़ाने के लिए हर माता-पिता तीन बच्चे पैदा कर सकते हैं।
चीन की तर्ज पर भारत में लंबे समय से जनसंख्या बढ़ोतरी पर लगाम लगाने की मांग की जाती रही है। सरकारों से समय-समय पर इसके लिए कानून बनाने की मांग भी की गई है। भारत की ओर देखें तो इस वक्त यहां आबादी 137 करोड़ लोगों के आसपास मानी जाती है। यानी दुनिया का हर 6 में से एक व्यक्ति भारतीय है। ऐसे में देश में पिछले काफी समय से एक जनसंख्या नियंत्रण बिल लाने की मांग उठती रही है।
मोदी सरकार के नेताओं ने भी उठाई है कानून बनाने की मांग: जुलाई 2019 में भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने एक बिल पेश किया था, जिसमें प्रावधान थे कि जिन लोगों के दो से ज्यादा बच्चे होंगे, उनके लिए सरकार से मिलने वाली सुविधाओं (राशन, बीमा, घर, टैक्स, स्वास्थ्य सेवाओं के फायदों) को कम कर दिया जाए। इसके बाद फरवरी 2020 में शिवसेना सांसद अनिल देसाई ने भी एक विधेयक पेश किया था, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 47ए को बदलने की मांग की गई। इसके तहत सरकार को छोटे परिवारों को रोजगार, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में फायदे पहुंचाने चाहिए और छोटे परिवारों के फॉर्मूले को ही आगे बढ़ाना चाहिए। वहीं, दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों और बड़े परिवार रखने वालों से हर तरह की छूट वापस ले लेनी चाहिए। भाजपा नेता गिरिराज सिंह भी इसे लेकर डर जता चुके हैं।
क्या कहती हैं साइंटिफिक रिसर्च?: इन मांगों के बीच हालिया पेंच अंग्रेजी मेडिकल जर्नल लांसेट की स्टडी में आया था। भारत की कुछ सर्वे एजेंसी भी लांसेट के जैसे दावे कर चुकी हैं, पर भारत के लिए विदेशी मैगजीन बिल्कुल ‘इम्पोर्टेड कार’ जैसी हैं। यानी ज्यादा कीमती। तो इस रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ने में समझ आता है कि भारत में जनसंख्या विस्फोट के बारे में जो डर जताया जा रहा है, वह थोड़ा ज्यादा ही है। इसकी मुख्यतः कुछ वजहें हैं-
पहली- भारत में पहले ही महिला साक्षरता दर और रोजगार बढ़ने से बच्चों के जन्म में पहले के मुकाबले कमी आई है। क्योंकि ज्यादातर युवा अब बच्चे पैदा करने में पहले के मुकाबले ज्यादा समय और देरी लगा रहे हैं।
दूसरी- लांसेट की स्टडी 2017 से लेकर 2100 तक की जनसंख्या वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। इसमें बताया गया है कि साल 2100 तक भारत की आबादी 109 करोड़ ही रह जाएगी। यानी अब के मुकाबले करीब 28 करोड़ कम। भारत की आबादी 2048 तक लगातार बढ़ेगी और अपने उच्चतम 160 करोड़ तक पहुंचेगी। हालांकि, इसके बाद देश में बच्चों के पैदा होने की संख्या लगातार कम होगी।
क्यों कम होगी भारत की जनसंख्या?: लांसेट ने जिस तकनीक का इस्तेमाल किया है, उसमें 15 साल से लेकर 49 साल तक की महिलाओं की प्रजनन दर को लिया गया है। इसकी वजह यह है कि महिलाएं में आमतौर पर इसी उम्र में प्रजनन क्षमता रहती है। इसमें अन्य मानकों को भी शामिल किया गया है। ये हैं शिक्षा, गर्भनिरोधकों की मौजूदगी और साक्षरता हैं। यानी इन कुछ कारकों की वजह से भारत में बच्चे पैदा होने की दर में कमी आएगी।
किसी भी देश में टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) या कुल प्रजनन दर अगर 2.1% है, तो यानी उस देश में जितने लोगों की मौत हो रही है, उतनी ही नई जनसंख्या पैदा हो रही है। यानी अगर किसी देश का TFR 2.1 फीसदी से नीचे है, तो उस देश में मरने वाले लोगों के बदले पैदा होने वाले बच्चों की संख्या कम है। जो कि आबादी के घटने के संकेत हैं। मौजूदा समय में भारत का TFR 2.4 (वर्ल्ड बैंक के मुताबिक- 2.24%) फीसदी है। यानी भारत में जितने लोगों की मौत हो रही है, फिलहाल उससे ज्यादा तेजी से लोग पैदा हो रहे हैं। इसका सीधा मतलब है कि अभी कुछ और साल भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ेगी और 2048 तक भारत की जनसंख्या 160 करोड़ की पीक तक पहुंच जाएगी।
पर 2048 के बाद भारत की TFR तेजी से घटेगी और 2100 तक यह 1.29 फीसदी पर ही रह जाएगी। साफ है कि इस समय जिस देश में प्रति महिला 2-3 बच्चे पैदा होते हैं, यह संख्या 2100 तक घटकर महज 1 बच्चे तक ही सीमित हो जाएगी। इसकी वजह से मौतों के मुकाबले पैदा होने वालों की संख्या कम होने लगेगी और देश की जनसंख्या भी तेजी से घटेगी।
दूसरे देशों के क्या रहेंगे हाल?: चीन में इस वक्त जनसंख्या 140 करोड़ के आसपास मानी जाती है। चीन अधिकतम आबादी 2024 तक 143 करोड़ पहुंचेगी और 2100 तक चीन में सिर्फ 73 करोड़ लोग रह जाएंगे। यानी भारत के मुकाबले चीन की वर्कफोर्स काफी सीमित होगी। पाकिस्तान जिसकी आबादी मौजूदा समय में तेजी से बढ़ते हुए 21.4 करोड़ तक पहुंच चुकी है। 2048 में पाकिस्तान में भी आबादी सर्वाधिक 31.4 करोड़ तक पहुंचेगी और इसके बाद 2100 तक घटते हुए 24.8 करोड़ तक आ जाएगी।
2100 तक किस देश में कितनी होगी आबादी?: प्रजनन दर घटने के साथ ही 2100 में जहां भारत 109 करोड़ की आबादी के साथ सबसे बड़ा देश होगा, वहीं दूसरे नंबर पर अफ्रीकी देश नाइजीरिया होगा, जहां प्रजनन दर तेजी से बढ़ेगी। यहां आबादी 79 करोड़ से कुछ ज्यादा होगी। तीसरे नंबर पर 73 करोड़ से कुछ आबादी के साथ चीन होगा। चौथे नंबर पर 33.6 करोड़ की आबादी के साथ भारत होगा। इसके अलावा पांचवे नंबर पर 24.8 करोड़ की आबादी के साथ पाकिस्तान का नंबर होगा।