कोरोना विषाणु संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए एक महीने से अधिक समय से देश में पूर्णबंदी लागू है। लगातार घर में रहने, बाहर नहीं खेलने और अपने दोस्तों से नहीं मिलने का असर बच्चों के व्यवहारों में देखा जा रहा है। उनमें चिड़चिड़ापन, उदासी, गुस्सा, तनाव, अल्पनिद्रा, उतावलापन, गुमसुम होना, खाना कम या ज्यादा खाना, भय, कुंठा, अकेलापन, कम बोलना आदि में से एक या एक से अधिक लक्षण देखे जा रहे हैं।
मनोचिकित्सकों का कहना है कि इन स्थितियों से बचने के लिए बच्चों को उनके पसंदीदा कार्यों में व्यस्त रखा जाए। उनकी दिनचर्या में खेल, पढ़ाई, टीवी, बातचीत, योग, व्यायाम, घर के कार्यों में हाथ बंटाना आदि शामिल किया जाए। सबसे जरूरी है कि अभिभावक उन्हें वर्तमान स्थितियों को सकारात्मक रूप से देखने के लिए प्रेरित करें।
मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर ओम प्रकाश के मुताबिक दसवीं और बारहवीं के जिन विद्यार्थियों की अभी परीक्षाएं पूरी नहीं हुई हैं, उनमें भी बेचैनी के लक्षण दिख सकते हैं।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली के मनोचिकित्सा विभाग के डॉक्टर जवाहर सिंह ने बताया कि बच्चों ने ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं देखी है, जिससे उनमें अपने दोस्तों या परिजनों से लगाव का कम होना और पढ़ाई में कम मन लगाने जैसे लक्षण भी देखे जा सकते हैं। वहीं, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रदीप सिंघल ने बताया कि टीवी पर कोरोना महामारी से संबंधित समाचारों को देखकर पांच साल से अधिक उम्र के बच्चों को तनाव, भय, रात में डरना या डरावने सपने दिखने जैसे लक्षण दिख सकते हैं।
इसलिए यह आवश्यक है कि बच्चों को टीवी समाचार कम से कम देखने दिए जाएं। अभिभावक उन्हें कोरोना से संबंधित सही जानकारी उपलब्ध कराने की कोशिश करें और उसके सकारात्मक पक्ष के बारे में भी जानकारी दे सकते हैं। जैसे पूर्णबंदी से हम साथ-साथ हैं। इससे उनमें तनाव और भय कम होगा।
डॉक्टर ओम प्रकाश का कहना है कि पूर्णबंदी के समय को अभिभावक अपने बच्चों में कठिन परिस्थितियों के बावजूद कैसे जिया जा सकता है या आगे बढ़ा जा सकता है, इसके बारे में बता सकते हैं। डॉक्टर प्रकाश ने बताया कि बच्चों को तनाव मुक्त रखने के लिए उन्हें लगातार व्यस्त रखें। उनकी एक दिनचर्या बनाएं, जिसमें खेल से लेकर टीवी देखने, पढ़ाई व योग आदि करने का समय भी शामिल हो। बच्चों से बातचीत का सिलसिला लगातार जारी रखें। उनकी घर के कार्यों में मदद लें। इससे वे व्यस्त रहने के साथ कुछ नया भी सीखेंगे। अगर बच्चे में तनाव के लक्षण अधिक दिखें, तो किसी मनोचिकित्सक से बात भी की जा सकती है।
डॉक्टर जवाहर सिंह का कहना है कि बच्चों के तनाव को दूर करने के लिए उन्हें कोरोना के बारे में जानकारी दें कि यह भी अन्य बीमारियों की तरह ही एक बीमारी है। इससे बचने के लिए अपने हाथों को साफ रखना और शारीरिक दूरी बनाकर रखना जरूरी है। डॉक्टर सिंह ने बताया कि बच्चों को दो-तीन दिन में उनके दोस्तों या उनके करीबी परिजन से बातचीत कराते रहना चाहिए। अगर कोई बच्चा अपने शिक्षक को पसंद करता है तो उनसे भी फोन से बातचीत कराई जा सकती है।
डॉक्टर राजेश सागर का कहना है कि घर का माहौल खुशगवार बनाकर बच्चों के तनाव, गुस्से या चिड़चिड़पन को दूर किया जा सकता है। बच्चों को उनकी हॉबी को आगे बढ़ाने के लिए कहना चाहिए। माता-पिता बच्चों के साथ घर में खेले जाने वाले खेल जरूर खेलें, इससे बच्चों में लगाव की भावना भी बढ़ती है। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को बताएं कि यह स्थिति कुछ समय के लिए ही रहने वाली है। जल्द ही सबकुछ पहले जैसा ही हो जाएगा।
बच्चे चंचल होते हैं और उन्हें एक जगह पर बंधकर रहना पसंद नहीं है। बीते महीने भर से उन्हें वही काम करना पड़ रहा है, जो उन्हें नापसंद है। इसलिए उनके अंदर चिड़चिड़ापन और गुस्सा आना स्वाभाविक है।
-डॉक्टर राजेश सागर, मनोचिकित्सा विभाग एम्स
स्कूल नहीं जाने से बच्चों की दिनचर्या प्रभावित हुई है। इससे उनके व्यवहार में गुस्सा, कुंठा और उदासी देखी जा सकती है। इसके अलावा महामारी की खबरें टीवी पर देखने के बाद भय, तनाव और अनिंद्रा जैसी समस्याएं उनमें देखने को मिल सकती हैं।
डॉक्टर ओम प्रकाश, एसोसिएट प्रोफेसर इहबास