करीब दो महीने बाद मंगलवार को भले ही दिल्ली चल पड़ी हो लेकिन इस बीच यहां मजदूरों की हालत जर्जर हो गई। शिकागो विश्वविद्यालय की सर्वे रपट बताती है कि दिल्ली के मेहनतकश वालों पर पूर्णबंदी का विनाशकारी प्रभाव पड़ा है।
मजदूरों और कामगारों की स्थिति पर शिकागो विवि के दिल्ली स्थित ऊर्जा नीति संस्थान (ईपीआइसी इंडिया) की इस रपट सर्वे में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस अध्ययन में दिल्ली के विभिन्न इलाकों मसलन जहांगीरपुरी, पीतमपुरा, मोतीनगर, सरिता विहार आदि के कम आय वर्ग वाले क्षेत्रों को शामिल किया गया है। रपट का दावा है कि पूर्णबंदी के दौरान दस में से नौ मजदूरों और कामगारों की मसिक आय शून्य रही है। ज्यादातर गरीब और गैर-प्रवासी कामगारों की हफ्तेवारी आय में कम से कम 57 फीसद की गिरावट देखी गई।
मानसिक और भावनात्मक स्तर पर समस्याओं से लोग घिरे रहे। रपट यह भी बताती है कि पूर्णबंदी इंसानी आदतों में कई बड़े और लाभकारी परिवर्तन की सूत्रधार भी बनी है। जो काम प्रदूषण को लेकर लंबे समय तक नहीं किया जा सका था उसे पूर्णबंदी ने सफल कर दिया है। गैर अप्रवासी मजदूरों पर किए गए इस अध्ययन से पता चलता है कि लोगों ने मास्क का इस्तेमाल पहले के मुकाबले अधिक किया। जिससे वायरस के प्रभाव को कम करने में मदद मिली।
ईपीआइसी इंडिया के कार्यकारी निदेशक डॉ केन ली ने इस शोध में दावा किया है कि दो महीने के पूर्णबंदी के दौरान दिल्ली में ज्यादातर गरीब और गैर-प्रवासी कामगारों ने अपने साप्ताहिक आय में कम से कम 57 फीसद की गिरावट देखी है, जबकि कार्य दिवस में आकस्मिक तौर पर 73 फीसद की कमी हुई है। दस में से नौ लोगों यानि नब्बे फीसद पीड़ितों ने बताया कि उनकी साप्ताहिक आय पूर्णबंदी में शून्य हो गई। डॉ केन ली के मुताबिक, इससे इंसानी व्यवहार में बड़े पैमाने पर बदलाव आया।
इसके मुताबिक कोविड-19 को लेकर 25 मार्च के बाद मीडिया कवरेज में 56 फीसद का उछाल देखा गया। इस दौरान 80 फीसद लोगों ने इस बीमारी को लेकर चिंतित महसूस किया। डॉ ली के मुताबिक जिन लोगों पर यह सर्वे किया गया उसमें दिल्ली में ज्यादातर गैर-प्रवासी कामगारों में भूख से मौत नहीं हुई। बहुत से लोगों ने दिल्ली सरकार के खाद्य सहायता कार्यक्रम से लाभान्वित होने की सूचना दी। इस दौरान लोगों में मानसिक और भावनात्मक स्तर पर समस्याएं अधिक बढ़ गई। खाद्य पदार्थों का कम मिलना और अधिक महंगा होना एक अलग समस्या बनकर उभरी।
