छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महिला की पुनर्विचार याचिका को सुनवाई करने के बाद खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि व्यभिचार में रह रही पत्नी भरण पोषण पाने की हकदार नहीं है। अपने फैसले में कोर्ट ने जहां भरण पोषण देने की मांग को खारिज कर दिया बल्कि निचली अदालत से भरण पोषण के मिले आदेश को भी रद्द कर दिया। इस याचिका में महिला ने अपने पूर्व पति से भरण पोषण की मांग की थी।
हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका में महिला ने अपने पूर्व पति से भरण पोषण के लिए 20 हजार रुपये की मांग कर रही थी। याचिकाकर्ता के अनुसार साल 2019 में दंपति का विवाह हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार हुआ था। शादी के कुछ साल बाद ही महिला के ससुराल पक्ष वालों ने उसे खाना न देकर प्रताड़ित किया। जबकि उसके पति को महिला को उसके पति का किसी और महिला से संबंध होने का शक था। जिसके वजह से महिला ने पति का साथ साल 2021 में छोड़ दिया और उसी महीने तलाक की अर्जी भी दे दी थी।
महिला का आरोप – पूर्व पति की 1 लाख आमदनी
महिला ने साल 2023 में अपने पति से तलाक ले लिया। जिसके बाद 2024 में निचली अदालत में दायर की गई अर्जी की सुनवाई पर भरण पोषण का आदेश हुआ। हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका में महिला ने दावा किया कि उसके पूर्व पति के पास आय का कई स्रोत है। जिससे वो 1 लाख रुपये कमाते हैं। जिसके आधार पर महिला ने 20 हजार रुपये भरण पोषण की मांग की।
कोर्ट में महिला के आरोपों पर पति ने जवाब देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का उसके भाई के साथ अनैतिक संबंध है। जिसका उसने विरोध किया तो महिला ने उससे झगड़ा किया और मामला दर्ज करने की धमकी दी। जिसके बाद महिला बिना किसी वजह के वैवाहिक घर से अपने घर चली गई। इसके साथ ही पति ने महिला के आमदनी वाले दावे को भी खारिज कर दिया। पति ने जवाब देते हुए कहा कि वह 17,131 रुपये कमाता है। इसके अलावा उसके पास आय का कोई और साधन नहीं है।
अपनी दलीलों में पति ने कहा कि महिला के व्यभिचार का आरोप पारिवारिक न्यायालय में साबित हो चुका हैं। जिसके बाद भी इस बात पर विचार किए बिना भरण-पोषण का आदेश पारित कर दिया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125(4) के तहत, यदि कोई महिला व्यभिचार में रह रही है और पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है या यदि वे आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं, तो वह अपने पति से अंतरिम भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है।
हालाँकि, महिला के वकील ने तर्क दिया कि “व्यभिचार में रहना” एक वर्तमान और सतत कृत्य है। महिला के वकील ने दलील को “दोनों पक्षों ने यह तथ्य स्वीकार किया है कि वे दोनों आखिरी बार मार्च 2021 तक एक ही छत के नीचे रहे थे। पति ने यह भी स्वीकार किया है कि वह अपने भाई और भाभी के साथ रह रही है। दोनों पक्षों की स्वीकारोक्ति और दलीलों से यह स्पष्ट है कि वह अपने भाई और भाभी के साथ रह रही है और व्यभिचारी जीवन नहीं जी रही है।”
विल न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के विपरीत हाई कोर्ट का फैसला
इसके बावजूद हाईकोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा “पारिवारिक न्यायालय द्वारा पति के पक्ष में दिया गया तलाक का आदेश इस बात का पर्याप्त सबूत है कि पत्नी व्यभिचार में रह रही थी। एक बार ऐसा आदेश लागू हो जाने के बाद, इस न्यायालय के लिए सिविल न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के विपरीत कोई अलग दृष्टिकोण अपनाना संभव नहीं है।”
हाईकोर्ट ने कहा, “इसलिए, न्यायालय का सुविचारित मत है कि पारिवारिक न्यायालय द्वारा दिया गया आदेश स्पष्ट रूप से यह साबित करता है कि पत्नी व्यभिचार में रह रही है और इस प्रकार, पत्नी याचिकाकर्ता (पति) से भरण-पोषण का दावा करने के लिए अयोग्य है।”
