भारत में केंद्र या राज्य सरकारों का कोई भी विकास कार्यक्रम गांवों को ध्यान में रखे बिना तैयार नहीं किया जा सकता। ग्रामीण विकास का सीधा संबंध देश की अर्थव्यवस्था से है। जब तक यहां के लोग शिक्षित और आर्थिक रूप से संपन्न नहीं होंगे, तब तक देश का विकास संभव नहीं। पिछले कुछ सालों से गांवों का परिदृश्य इतनी तेजी से बदला है कि वहां पर भी शहरों की तरह विकास-प्रक्रिया की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है।
देखा जाए तो विकास एजंसियों के लिए ग्रामीण विकास एक मिशन बनता जा रहा है। निजी क्षेत्र भी इसमें अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ग्रामीण प्रबंधन में स्नातक कर चुके विद्यार्थियों के लिए संभावनाओं के नए द्वार खुले हैं। ग्रामीण विकास से जुड़े पेशे की खास बात यह है कि इसमें अच्छी आमदनी के साथ-साथ समाज सेवा का भी अवसर मिलता है। इस सिलसिले में सरकार कई गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को धन मुहैया करवाती हैं, ताकि वे ग्रामीण क्षेत्रों का चहुंमुखी विकास कर सकें और गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य समस्या, आर्थिक कठिनाइयों, महिलाओं की समस्याएं आदि विषयों के बारे में लोगों को जागरूक कर सकें।
ग्रामीण प्रबंधक का कार्य
ग्रामीण विकास कार्यक्रमों को सही तरीके से लागू कराने की जिम्मेदारी ग्रामीण प्रबंधकों की होती है। इसके लिए पेशेवरों को कई ग्रामीण संगठनों एवं संस्थानों की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। उन्हें लोगों की समस्याओं और वहां की संस्कृति को समझने, योजना को लागू करने, परंपरागत बाजार को परखते हुए अन्य विभागों से तालमेल बैठाने की आवश्यकता होती है।
रोजगार की अपार संभावनाएं
इस क्षेत्र में बढ़ती संभावनाओं को देखते हुए पाठ्यक्रम की जो रूपरेखा तय की गई है, उसके लिए स्नातक होना आवश्यक है। कई संस्थानों ने प्रवेश परीक्षा में पात्रता के लिए न्यूनतम 50 फीसद अंक की सीमा भी रखी है। इसमें प्रवेश परीक्षा के आधार पर ही दाखिला मिल सकता है। प्रवेश परीक्षा एक तरह से स्क्रीनिंग परीक्षा होती है, इसके बाद अगला चरण साक्षात्कार का होता है।
आवश्यक योग्यता के अलावा विद्यार्थियों की ग्रामीण क्षेत्रों में रुचि होनी भी आवश्यक है, क्योंकि उनके कार्य करने का आधार भी वही होता है। ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं को समझने, उनके प्रति गंभीरता तथा कुछ करने की ललक विद्यार्थियों को आगे ले जाती है। इसके अलावा पेशेवरों के पास अच्छा संचार कौशल, स्थानीय भाषाओं की जानकारी, भीड़ को नियंत्रित करने की क्षमता, तार्किक कौशल, नेतृत्व, समस्या निर्धारण आदि गुण आवश्यक हैं।
रोजगार के व्यापक अवसर
पाठ्यक्रम कर लेने के बाद विद्यार्थी सरकारी विकास एजंसियों, गैर-सरकारी संगठनों, कारपोरेट क्षेत्र की सामाजिक विकास इकाइयों, राज्य संसाधन केंद्र में आसानी से रोजगार पा सकते हैं। विद्यार्थी चाहें तो इसे समाज सेवा के रूप में अपना सकते हैं। पहले से स्थापित एनजीओ ग्रामीण विकास की दिशा में बेहतरीन काम कर रहे हैं। सरकार इन्हें पर्याप्त धन उपलब्ध करा रही है, जिसके चलते ये संगठन काम का दायरा भी बढ़ा रहे हैं। विकास एजंसियों एवं संस्थानों में प्रशिक्षक, शोधकर्ता, कंसल्टेंट, योजना संयोजक, योजना निदेशक के रूप में काम के अवसर मिलते हैं। प्रतिभाशाली लोग संयुक्त राष्ट्र व दूसरी विदेशी विकास एजंसियों में काम कर सकते हैं।
वेतनमान
ग्रामीण प्रबंधन से संबंधित पाठ्यक्रम करने वाले विद्यार्थी को शुरुआती रूप से 12-15 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिल सकता है। जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता जाता है, पदोन्नति एवं वेतन में बढ़ोतरी होती जाती है। बड़ी विकास एजंसियां या कारपोरेट घराने तो ऊंचे वेतन के साथ रहने के लिए घर, चिकित्सा सुविधा, वाहन आदि की सुविधाएं भी देते हैं। एनजीओ भी वेतन देने के मामले में पीछे नहीं हैं। वहीं विदेशी संस्थाएं पेशेवरों को अपने यहां लाखों के पैकेज पर रखती हैं।
प्रमुख संस्थान
ग्रामीण प्रबंधन संस्थान, आणंद, गुजरात
’जेवियर समाज सेवा संस्थान, रांची, झारखंड<br>’भारतीय ग्रामीण प्रबंधन संस्थान, जयपुर, राजस्थान
’महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी
’इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय नई दिल्ली<br>’टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई
’चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, चंडीगढ़
- आशीष झा (करिअर परार्मशदाता)