पूरा भारत 14 जुलाई को होने वाले ISRO के चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग का इंतजार कर रहा है। ISRO ने एलभीएम-3 रॉकेट का सफल परीक्षण कर लिया है। ये रॉकेट चंद्रयान-3 को अंतरिक्ष में लेकर जाएगा। एलभीएम-3 रॉकेट के सफल परीक्षण के बाद ही ISRO प्रमुख एस सोमनाथ ने चंद्रयान-3 मिशन की तारीख की घोषणा की थी।
इसरो का यह मिशन इसलिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि साल 2019 में चंद्रयान-2 मिशन आंशिक रूप से ही सफल हो पाया था। चार साल पहले चंद्रयान-2 मिशन के दौरान विक्रम लैंडर के क्रैश लैंडिंग के कारण चांद से संपर्क साधने का सपना पूरा नहीं हो पया था। ISRO ने इस मिशन के लिए अपनी पिछली गलतियों से भी सीख ली है।
पिछली बार की कौन सी गलतियां?
एस. सोमनाथ ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि चंद्रयान-3 को बनाते वक्त उन सभी बातों का खासा ख्याल रखा गया है जिसके कारण मिशन के दौरान गड़बड़ हो सकती है। उनके अनुसार, इस बार पिछली बार के सक्सेज बेस्ड अप्रोच की जगह फेलियर बेस्ड डिज़ाइन पर तैयार किया गया है। इस मिशन में सभी संभावित गड़बड़ी को दूर किया गया है।
गलती नंबर 1
ISRO प्रमुख के अनुसार, पहली सबसे बड़ी चुनौती थी कि विक्रम लैंडर का स्पीड कम करने के लिए जो पांच इंजन लगाए गए थे, उन्होंने जरुरत से अधिक थ्रस्ट पैदा कर दिया। इस वजह से जब लैंडर को स्थिर होना चाहिए था ताकि वह तस्वीर ले सके तभी वह अस्थिर हो गया था। अधिक थ्रस्ट होने की वजह से क्राफ्ट तेजी से मुड़ने लगा और अपने निर्धारित रास्ता से भटक गया। जिसे समय रहते नियंत्रित नहीं किया जा सका और विक्रम लैंडर चांद की सतह से टकरा कर टूट गया।
गलती नंबर 2
एस सोमनाथ ने चंद्रयान-2 के दौरान होने वाली तीसरी गलती का जिक्र करते हुए बताए कि विक्रम लैंडर चांद की सतह पर उतरने के लिए अनुकूल जगह की खोज कर रहा था। लैंडिंग के लिए अनुकूल जगह नहीं मिली थी जबकि लैंडर चांद की सतह के बहुत करीब आ गया था। चंद्रयान-2 में लैंडिंग स्पॉट 500 मीटर गुना 500 मीटर के क्षेत्रफल तक ही सीमित था और उसे खोजने के लिए लैंडर अपनी रफ़्तार बढ़ा रहा था, तभी अधिक स्पीड होने के कारण वह चांद की सतह पर क्रैश लैंडिंग कर दिया जिसके कारण उसका संपर्क इसरो से टूट गया।
सुधार नंबर 1
इसरो प्रमुख ने बताया कि चंद्रयान-3 में इस गलती को सुधार लिया गया है। इस बार लैंडिंग साइट के लिए 500×500 मीटर के छोटे से जगह के बदले 4.3 किमी x 2.5 किमी के बड़े जगह को टारगेट किया गया है। इसका यह मतलब हुआ की इस बार लैंडर को ज्यादा जगह मिलेगी और वो आसानी से सॉफ्ट लैंडिंग कर पाएगा।
सुधार नंबर 2
इस बार ईंधन की क्षमता भी बढ़ाई गई है ताकि अगर लैंडर को लैंडिंग स्पॉट ढूंढने में मुश्किलात का सामना करना पड़ा तो उसे वैकल्पिक लैंडिंग साइट तक आसानी से ले जाया सके। चंद्रयान-2 की तरह ही चंद्रयान-3 में भी स्वदेशी रोवर ले जाया जाएगा। चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के बाद रोवर चांद पर मौजूद केमिकल और तत्वों का अध्यन करेगा।
चंद्रयान 3 और इसरो का भविष्य
इसरो प्रमुख ने बताया कि अगर यह मिशन सफल होता है तो चंद्रमा पर होने वाली अगले मिशन की नींव पड़ेगी। उन्होंने बताया कि भारत जापान के साथ मिलकर अगला मून प्रोजेक्ट तैयार करेगा। उन्होंने कहा कि अगले मून मिशन के लिए इसरो और जापान ऐरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) के बीच में बातचीत चल रही है, जल्द ही इसके बारे में जानकारी साझा की जाएगी।