Chandrayaan-2: ‘चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ से पुन: संपर्क करने और इसके भीतर बंद रोवर ‘प्रज्ञान’ को बाहर निकालकर चांद की सतह पर चलाने की संभावनाएं हर गुजरते दिन के साथ क्षीण होती जा रही हैं। बीते सात सितंबर को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की प्रक्रिया के दौरान अंतिम क्षणों में ‘विक्रम’ का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था। यदि यह ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में सफल रहता तो इसके भीतर से रोवर बाहर निकलता और चांद की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देता।

लैंडर को चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए डिजाइन किया गया था। इसके भीतर बंद रोवर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है। सात सितंबर की घटना के बाद से एक हफ्ते से ज्यादा वक्त निकल चुका है और अब इसरो के पास एक हफ्ते से काफी कम वक्त बचा है।

 

Live Blog

14:34 (IST)16 Sep 2019
विक्रम की क्या है खासियत

‘विक्रम’ में तीन उपकरण-रेडियो एनाटमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फेयर एंड एटमस्फेयर (रम्भा), चंद्राज सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरीमेंट (चेस्ट) और इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी (इल्सा) लगे हैं।‘चंद्रयान-2’ मिशन पर 978 करोड़ रुपये की लागत आई है। भारत अब तक का ऐसा एकमात्र देश है जिसने चांद के अनदेखे दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर पहुंचने का प्रयास किया है। मिशन के ‘सॉफ्ट लैंंिडग’ चरण में यदि सफलता मिलती तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाता।

12:40 (IST)16 Sep 2019
हार्ड लैंडिग के बावजूद सब ठीक, साबुत लैंड हुआ विक्रम

इसरो के एक अधिकारी ने बताया था कि ‘चंद्रयान-2’ का लैंडर ‘विक्रम’ चांद की सतह पर साबुत अवस्था में है और यह टूटा नहीं है। हालांकि, ‘हार्ड लैंडिंग’ की वजह से यह झुक गया था। ‘विक्रम’ का शनिवार को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के प्रयास के अंतिम क्षणों में उस समय इसरो के नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया था जब यह चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर था। अधिकारी के मुताबिक, यहां इसरो के टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) में एक टीम इस काम में जुटी है।

11:32 (IST)16 Sep 2019
और क्या बोले हरोशे

नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी सर्जे हरोशे ने कहा है, ‘‘यह एक तरह से प्रतिष्ठा से जुड़ी परियोजना है जिसमें आम तौर पर काफी धन खर्च होता है और जब आपको असफलता मिलती है या कोई दुर्घटना होती है तो मीडिया का ध्यान केंद्रित होने के कारण काफी निराशा होती है।’’ हरोशे ने कहा, ‘‘जब मैंने अपनी रिसर्च की तो मुझे इसके परिणाम मिलने तक किसी की भी इसमें रुचि नहीं थी...और मुझे लगता है कि इस तरह की समस्याएं, इस तरह के हादसे तथा इस तरह की अप्रत्याशित घटनाएं अनुसंधान को धार देने का ही काम करती हैं।’’

10:45 (IST)16 Sep 2019
पढ़ें नोबल पुरस्कार विजेता भौतिक शास्त्री की राय

नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी सर्जे हरोशे ने कहा है कि समस्याएं, हादसे और अप्रत्याशित घटनाएं अनुसंधान को धार देने का काम करती हैं तथा भारत को चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ऐतिहासिक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के प्रयास के दौरान आई खामी के बाद आगे की ओर देखना चाहिए। 2012 में भौतिकी के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले 75 वर्षीय हरोशे ने कहा कि ‘चंद्रयान-2’ मिशन एक बड़ी वैज्ञानिक परियोजना है और इस तरह की परियोजनाओं में आम तौर पर सरकार का काफी योगदान होता है।

09:33 (IST)16 Sep 2019
क्या है भविष्य की राह?

सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि क्या इस झटके से भारत का चंद्र मिशन खतरे में पड़ गया है? अगर भारत इस मिशन में कामयाब होता तो अमेरिका, रूस, चीन के बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा मुल्क बन जाता। एक्सपर्ट मानते हैं कि इस मिशन को पूरी तरह नाकामयाब मानना इसरो के वैज्ञानिकों की उपलब्धियों को कमतर करके देखने सरीखा होगा। दरअसल, चांद की सतह से 100 किमी ऊपर ऑर्बिटर अभी भी चक्कर लगा रहा है । ऑर्बिटर बेहद अहम सूचनाएं भेज रहा है। यह 7 साल चंद्रमा के चक्कर लगाएगा। ऐसे में इससे मिलने वाली सूचनाएं इसरो के भविष्य के मिशन के लिए बेहद उपयोगी साबित होंगी। न केवल इसरो, बल्कि दुनिया की दूसरी अग्रणी स्पेस एजेंसियों के लिए भी इससे मिली जानकारियां बेहद महत्वपूर्ण साबित होने वाली हैं।

09:31 (IST)16 Sep 2019
कुछ सकारात्मक भी, चंद्रयान 2 का ऑर्बिटर देगा बेहतरीन परिणाम

इसरो के पूर्व प्रमुख ए एस किरण कुमार ने कहा है कि लैंडर ‘विक्रम’ और इसके भीतर मौजूद रोवर ‘प्रज्ञान’ से संपर्क टूट जाने के बावजूद ‘चंद्रयान-2’ का आर्बिटर ‘‘बेहतर परिणाम’’ हासिल करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि इस बार का आॅर्बिटर महत्वपूर्ण उपकरणों से लैस है जो एक दशक पहले भेजे गए ‘चंद्रयान-1’ की तुलना में अधिक शानदार परिणाम देने पर केंद्रित हैं। कुमार ने कहा कि पूर्व में नासा जेपीएल से ‘चंद्रयान-1’ द्वारा ले जाए गए दो उपकरणों की तुलना में इस बार के उपकरण तीन माइक्रोन से लेकर पांच माइक्रोन तक की स्पेक्ट्रम रेंज तथा रडारों, दोनों के मामलों में ‘‘शानदार प्रदर्शन’’ करने की क्षमता से लैस हैं।

08:59 (IST)16 Sep 2019
कैसे किया जा रहा संपर्क?


इसरो टेलीमेट्री, ट्रैंिकग एंड कमांड नेटवर्क में एक टीम लैंडर से पुन: संपर्क स्थापित करने की लगातार कोशिश कर रही है। अधिकारी ने कहा कि सही दिशा में होने की स्थिति में यह सौर पैनलों के चलते अब भी ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है और बैटरियों को पुन: चार्ज कर सकता है। इसरो के एक अन्य शीर्ष अधिकारी ने कहा कि चंद्र सतह पर ‘विक्रम’ की ‘हार्ड लैंडिंग’ ने इससे पुन: संपर्क को कठिन बना दिया है क्योंकि हो सकता है कि यह ऐसी दिशा में न हो जिससे उसे सिग्नल मिल सकें। उन्होंने चंद्र सतह पर लगे झटके से लैंडर को नुकसान पहुंचने की भी आशंका जतायी।

08:34 (IST)16 Sep 2019
14 दिन बाद संपर्क का क्यों नहीं फायदा?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों की तमाम कोशिशों के बावजूद लैंडर से अब तक संपर्क स्थापित नहीं हो पाया है। हालांकि, ‘चंद्रयान-2’ के आॅर्बिटर ने ‘हार्ड लैंडिंग’ के कारण टेढ़े हुए लैंडर का पता लगा लिया था और इसकी ‘थर्मल इमेज’ भेजी थी। भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिक लैंडर से संपर्क साधने की हर रोज कोशिश कर रहे हैं, लेकिन प्रत्येक गुजरते दिन के साथ संभावनाएं क्षीण होती जा रही हैं। इसरो के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘उत्तरोत्तर, आप कल्पना कर सकते हैं कि हर गुजरते घंटे के साथ काम मुश्किल होता जा रहा है। बैटरी में उपलब्ध ऊर्जा खत्म हो रही होगी और इसके ऊर्जा हासिल करने तथा परिचालन के लिए कुछ नहीं बचेगा।’’उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक गुजरते मिनट के साथ स्थिति केवल जटिल होती जा रही है...‘विक्रम’ से सपंर्क स्थापित होने की संभावना कम होती जा रही है।’’

08:20 (IST)16 Sep 2019
घटती जा रही उम्मीद

‘चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ से पुन: संपर्क करने और इसके भीतर बंद रोवर ‘प्रज्ञान’ को बाहर निकालकर चांद की सतह पर चलाने की संभावनाएं हर गुजरते दिन के साथ क्षीण होती जा रही हैं। बीते सात सितंबर को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की प्रक्रिया के दौरान अंतिम क्षणों में ‘विक्रम’ का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था। यदि यह ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में सफल रहता तो इसके भीतर से रोवर बाहर निकलता और चांद की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देता। लैंडर को चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए डिजाइन किया गया था। इसके भीतर बंद रोवर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है। सात सितंबर की घटना के बाद से एक हफ्ते से ज्यादा वक्त निकल चुका है और अब इसरो के पास एक हफ्ते से काफी कम वक्त बचा है।

07:42 (IST)16 Sep 2019
एंटिना को व्यवस्थित करने की कोशिश

इसरो के एक अधिकारी ने बताया था कि विक्रम को चंद्रमा की सतह के जिस स्थान पर उतरना था, उससे करीब 500 मीटर दूर (चंद्रमा की) सतह से वह टकराया। सूत्रों ने बताया कि इसरो की एक टीम यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या वे लैंडर के एंटिना इस तरह से फिर से व्यवस्थित कर सकते हैं कि संपर्क बहाल हो जाए। इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक चंद्रमा की सतह पर लैंडर के उतरने के दौरान आखिरी क्षणों में वेग घटने पर एंटिना की स्थिति में तब्दीली आ गई होगी।