ग्रेटर त्रिपुरा का एक किशोर जो कभी दूध बेचकर अपना खर्च निकालता था और उधार की साइकिल से चलता था, वह आज देश के प्रभावशाली बैंकरों में से एक है। गरीबी से सबक सीखकर इस किशोर ने अपनी ही कंपनी बना ली। मंगलवार का दिन उसके लिए ऐतिहासिक पल था, जब बैंक के रूप में तब्दील उसकी माइक्रो फायनेंस कंपनी ने शेयर बाजार में बेहतरीन तरीके से पदार्पण किया। जी हां! यहां बात हो रही है बंधन बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और प्रबंध निदेशक (एमडी) चंद्रशेखर घोष की। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में उनकी कंपनी के शेयर का इश्यू प्राइस (शुरुआती कीमत) 375 रुपये रखा गया था, लेकिन यह 33 फीसद बढ़कर 499 रुपये तक पहुंच गया। घोष के लिए त्रिपुरा से शेयर मार्केट तक का सफर कतई आसान नहीं था। उनका जन्म पूर्वोत्तर राज्य के एक छोटे से गांव में वर्ष 1960 में हुआ था। वह छह भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उनके संयुक्त परिवार में कुल 15 सदस्य थे। घोष के पिता मिठाई की एक छोटी सी दुकान चलाते थे। इसी से परिवार का खर्चा चलता था। इकोनोमिक टाइम्स के अनुसार, घोष अपना खर्च निकालने के लिए दूध बेचने के साथ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करते थे।
एमए के लिए ढाका यूनिवर्सिटी में लिया था दाखिला: चंद्रशेखर ने वर्ष 1978 में स्टैटिस्टिक्स (सांख्यिकी) में मास्टर की डिग्री लेने के लिए ढाका यूनिवर्सिटी (बांग्लादेश) में दाखिला लिया था। पढ़ाई करने के बाद वह ढाका में ही महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था बीआरएसी से जुड़ गए थे। यह संस्था ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में काम करता था। इसी दौरान उन्हें महिलाओं की दयनीय हालत का पता चला और बंधन बैंक की नींव पड़ी। घोष को इस बात का एहसास हुआ कि आर्थिक मदद से ही महिलाओं की स्थिति में सुधार आ सकता है। बांग्लादेश से लौटने के बाद घोष पश्चिम बंगाल स्थित एक गैरलाभकारी संस्था विलेज वेलफेयर सोसाइटी से जुड़ गए थे। इस संस्था के साथ उन्होंने कई साल तक काम किया था। इस दौरान उनके दिमाग में गरीब महिलाओं की मदद के लिए माइक्रोफायनेंस संस्था खोलने का विचार आया था।
…जब साइकिल हो गई थी चोरी: जानेमाने अर्थशास्त्री तमल बंध्योपाध्याय अपनी किताब ‘बंधन: द मेकिंग ऑफ ए बैंक’ में चंद्रशेखर घोष के बारे में एक दिलचस्प वाकये का उल्लेख करते हैं। उन्होंने लिखा, ‘ढाका यूनिवर्सिटी में अध्ययन के दौरान घोष विश्वविद्यालय परिसर में स्थित मंदिर में रहते थे, क्योंकि उनके पास पर्याप्त पैसा नहीं थे। वह साइकिल का इस्तेमाल करते थे। एक दिन परिसर से ही उनकी साइकिल चोरी हो गई थी। ढाका यूनिवर्सिटी में स्टैटिस्टिक्स पढ़ाने वाले प्रोफेसर बुरहानुद्दीन ने उन्हें अपनी फिनिक्स साइकिल उधार में चलाने को दी थी। इससे घोष के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। हाल तक चंद्रशेखर घोष टोयोटा फॉर्च्युनर चलाते थे, अब उनके पास लैंड रोवर डिस्कवरी है।’
उधार के पैसों से बनाई कंपनी: घोष ने गरीब महिलाओं की मदद करने के उद्देश्य से वर्ष 2001 में बंधन-कोन्नगर नामक अपनी कंपनी बनाई थी। इसके लिए उन्होंने रिश्तेदारों से दो लाख रुपये उधार लिए थे। उन्होंने वर्ष 2009 में अपनी कंपनी ‘बंधन’ का नॉन-बैंकिंग फायनेंस कंपनी के तौर पर पंजीकरण कराया था। वर्ष 2014 में बंधन को बैंक का लाइसेंस मिला था। बैंक का दर्जा हासिल करने वाली बंधन पहली माइक्रोफायनेंस कंपनी थी। 31 दिसंबर, 2017 तक के आंकड़ों के अनुसार देश भर में बंधन बैंक की 887 शाखाएं और 430 एटीएम थे।

